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पिता का संघर्ष यादकर निशा ने बरसाए मुक्के, जीता स्वर्ण; पायल-आकांक्षा ने जीते स्वर्ण पदक

फाइनल से पहले बड़ी बहन और एशियाई यूथ मुक्केबाजी की पदक विजेता ललिता से निशा ने फोन पर यही कहा, मैं मर भले ही जाऊं, लेकिन स्वर्ण पदक नहीं छोड़ूंगी। मुझे यह स्वर्ण पापा के लिए जीतना है। उन्होंने हमारी मुक्केबाजी के लिए बहुत त्याग किया है। मैं जीती तो पापा बहुत खुश होंगे। निशा ने यही करके दिखाया और येरेवान (आर्मेनिया) में खेली गई जूनियर विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 52 भार वर्ग का स्वर्ण जीत लिया। भारत ने चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण, नौ रजत और पांच कांस्य पदक जीते। निशा के अलावा पायल (48) और आंकाक्षा (70 किलो) में स्वर्ण जीते। निशा ने कुछ माह पहले ही एशियाई जूनियर मुक्केबाजी में भी स्वर्ण जीता। यहां उन्होंने फाइनल में ताजिकिस्ताान की अब्दुल्लाओएवा फारिनोज को 5-0 से पराजित किया। पायल ने आर्मेनिया की पट्रोसियान और आकांक्षा ने रूस की ताइमाजोवा को हराकर स्वर्ण जीते। चुरू (राजस्थान) की निशा के पिता विनोद कुमार दूसरों की जमीन पर खेती कर परिवार चलाते हैं। निशा तीन बहनों में सबसे छोटी हैं और तीनों बहनें मुक्केबाज हैं। विश्व चैंपियनशिप में पदक जीत चुकीं अर्जुन अवॉर्डी बॉक्सर कविता चहल उनकी मौसी हैं। कविता ही तीनों को भिवानी बॉक्सिंग क्लब लेकर गईं। ललिता इस बार 70 भार वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन बनी हैं, जबकि मझली बहन नेहा ने राजस्थान के लिए राष्ट्रीय खेल में 57 भार वर्ग में कांस्य जीता है।

ललिता बताती हैं कि मौसी (कविता) और पिता की वजह से वे तीनों मुक्केबाज बन पाईं। पिता ने कर्ज लेकर उन्हें मुक्केबाजी कराई, लेकिन कभी अपने संघर्ष को जाहिर नहीं होने दिया। वे तीनों को भिवानी में किराए के मकान और खाने के लिए पैसे भेजते रहे और जरूरतें पूरी करते रहे। यही कारण था कि निशा हर हाल में पापा के लिए स्वर्ण जीतना चाहती थी।

अंतिम दिन छह मुक्केबाजों को मिला रजत
चैंपियनशिप के अंतिम दिन विनी (57), श्रृष्टि (63), मेघा (80) को फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। पुरुषों में साहिल (75), हेमंत (+80), जतिन (54) को भी फाइनल में हार मिली। कुल 12 भारतीय मुक्केबाज चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे।

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