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पहाड़ पर हाथियों को चढ़ने से रोकेगी मिर्च, सिटरस की खेती

चंपावत। जिले में मैदान के अलावा हाथी अब पहाड़ की चढ़ाई भी लांघ रहे हैं। सूखीढांग के पास आमखर्क से लेकर चूका से दो किमी खड़ी चढ़ाई पर स्थित खर्राटाक गांव में हाथी पिछले दिनों तोड़फोड़ और फसल को भी बर्बाद कर चुके हैं। अब वन्यजीव संस्थान और वन विभाग संयुक्त रूप से हाथियों को गांव और आबादी से दूर रखने के लिए नई तकनीक पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि मिर्च और सिटरस प्रजाति की खेती को बढ़ावा देने के साथ मधुमक्खी के छत्तों के जरिये इस पर रोकथाम मुमकिन है। चंपावत और नैनीताल जिले में फैले 269 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले नंधौर अभयारण्य में हाथियों की काफी संख्या है। पांच साल पहले पूर्णागिरि मार्ग पर गैडाखाली के पास के गांव में सोलर फेंसिंग के जरिये हाथियों को रोकने की कोशिश की गई लेकिन कुछ समय बाद ये फेंसिंग बेअसर रही। ऊंचाई वाले स्थानों पर भी हाथी के पहुंचने से पर्वतीय क्षेत्र के लोग चिंतित हैं। हाथी नेपाल सीमा से लगे इन गांवों में आबादी पर हमला करने के साथ खेतों में खड़ी फसल को भी बर्बाद करते रहे। वैज्ञानिकों का कहना है कि नंधौर से पूर्णागिरि मार्ग होते हुए नेपाल तक हाथियों का गलियारा था। आबादी और निर्माण बढ़ने से इस गलियारा में आंशिक अवरोध आया है। इस कारण हाथी चूका के अलावा पहाड़ी गांवों तक दस्तक दे रहे हैं।

मिर्च, सिटरस, लेमनग्रास की खेती से हाथियों का खतरा कम होता है। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। कीनिया में मधुमक्खी की फेंसिंग लगाकर इस दिशा में सफल प्रयोग किए गए हैं। यहां भी मधुमक्खी पालन का उपयोग किया जा रहा है। नाक, आंख में काटने से हाथियों में खतरा होता है। वन विभाग के साथ मिलकर वन्य जीव संस्थान इस दिशा में काम कर रहा है। – डॉ. नवीन जोशी, वैज्ञानिक, वन्य जीव संस्थान, देहरादून।

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