रसरंग में मुसाफ़िर हूं यारो लद्दाख: एडवेंचर और थ्रिल से भरपूर है चादर ट्रैक
समूचे उत्तर भारत में आजकल शीतलहर चल रही है। खूब कोहरा पड़ रहा है और पाला भी पड़ रहा है। ऐसे में जिंदगी ठहर-सी जाती है और अलाव व रजाई के इर्द-गिर्द ही सीमित रह जाती है। लेकिन बहुत सारे लोग ऐसे समय में भी घूमने निकलते हैं। पहाड़ों पर हिमपात हो रहा है और रुई-सी गिरती बर्फ का आनंद लेने का किसका मन नहीं करता? कुछ लोग इससे भी एक कदम आगे बढ़ाते हुए विंटर ट्रैक पर निकलते हैं, जहां वे कुछ दिन बर्फ में ही रहते है।
एडवेंचर के शौकीन लोगों का सबसे बड़ा सपना होता है चादर ट्रैक करना। यह ट्रैक लद्दाख में किया जाता है और केवल जनवरी व फरवरी में ही होता है। लद्दाख में इस समय तापमान शून्य से 30 डिग्री नीचे तक चला जाता है। नदियां व झीलें जम जाती हैं। जांस्कर नदी तो इस कदर जम जाती है कि दो-तीन महीनों तक इस पर पैदल भी चला जा सकता है। बर्फ की मोटी चादर पर ट्रैकिंग करने को ही चादर ट्रैक कहा जाता है।
चादर ट्रैक के लिए आपको सबसे पहले पहुंचना होगा लेह। सर्दियों में लेह जाने के सड़क मार्ग बंद हो जाते हैं, तो एकमात्र तरीका हवाई मार्ग ही बचता है। लेह में कम से कम दो दिन रुककर शरीर को आबोहवा के अनुकूल बनाना चाहिए। यहां आप किसी एजेंसी से चादर ट्रैक के बारे में बात कर सकते हैं, क्योंकि प्रतिकूल परिस्थितियों में अकेले चादर ट्रैक करना खतरनाक हो सकता है। अपना टैंट, राशन आदि सब अपने आप ढोना पड़ता है।
लेह से 35 किमी दूर निम्मू नामक स्थान है। यहां सिंधु और जांस्कर नदियों का संगम होता है। यहीं से आप जांस्कर वैली में प्रवेश कर जाते हैं। 30 किमी दूर चिलिंग गांव तक अच्छी सड़क बनी है। चिलिंग समुद्र तल से 3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां जांस्कर नदी जमी हुई दिखने लगती है। चिलिंग से कुछ किलोमीटर आगे जांस्कर सुमडो तक सड़क बनी हुई है। आप एक उपयुक्त स्थान पर सड़क छोड़कर नीचे नदी पर उतरकर चादर ट्रैक शुरू कर सकते हैं।
जांस्कर सुमडो पर कैम्पिंग के लिए काफी खुला स्थान है। यहां एक प्राकृतिक गुफा भी है, जिसका प्रयोग कभी-कभार स्थानीय लोग करते हैं। यहीं पर कैम्प लगाकर एक दिन आराम किया जाता है। नदी पास होने के कारण पीने का पानी उपलब्ध रहता है, लेकिन इसके लिए बर्फ की मोटी परत तोड़नी पड़ती है।
प्रॉपर ट्रैकिंग अगले दिन आरंभ होती है। बहता पानी कभी भी पूरी तरह नहीं जमता। उसकी ऊपरी परत जम जाती है और नीचे पानी बहता रहता है। टेम्प्रेचर कितना है, धूप कितनी पड़ रही है, इन सब कारणों से ऊपरी परत की मोटाई भी घटती-बढ़ती रहती है। कहीं पर यह काफी मोटी होती है और इसके टूटने का डर नहीं रहता। लेकिन कहीं-कहीं यह पतली होती है और इसके टूटने का डर रहता है। कहीं पर केवल किनारे पर ही बर्फ जमी रहती है और बीच में पानी बहता रहता है। कुल मिलाकर जबरदस्त एडवेंचर और थ्रिल से भरपूर होता है चादर ट्रैक।
जमी हुई नदी पर ट्रैकिंग करने के बाद एक स्थान पर नाइट स्टे के लिए रुका जाता है और अगले दिन फिर से ट्रैकिंग करते हुए पहुंच जाते हैं नेरक वॉटरफॉल पर। यह काफी बड़ा वॉटरफॉल होता है, जो पूरी तरह जमा रहता है। इससे कुछ ही दूरी पर नेरक गांव है, जो कुछ समय पहले तक दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ अलग-थलग गांव हुआ करता था। लेकिन अब लामायुरू से नेरक तक सड़क बन गई है, तो नेरक भी सड़क मार्ग से जुड़ गया है।
ये रखें सावधानियां
– माइनस 30 डिग्री टेम्प्रेचर और बर्फ की असमान मोटाई की वजह से चादर ट्रैक एक खतरनाक ट्रैक है। इसे अकेले बिल्कुल नहीं करना चाहिए। केवल अच्छी एजेंसियों के माध्यम से ही चादर ट्रैक करना चाहिए। उनके पास अनुभव होता है और अच्छे इक्विपमेंट होते हैं।
– चादर ट्रैक पर क्रैम्पोन यानी कील वाले जूते पहनकर नहीं चलना चाहिए। इससे बर्फ की लेयर कमजोर होती जाती है और आपके बाद आने वालों के लिए खतरनाक हो सकती है।
– यह हाई एल्टीट्यूड भी है और वातावरण में ऑक्सीजन की कमी भी रहती है। इसलिए दिल व फेफड़ों के मरीजों को इस ट्रैक पर नहीं जाना चाहिए।