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आखिर देश में क्यों आ रहे हैं इतने भूकंप, सबसे पहले मानवीय हानि कम करने के गंभीर प्रयासों की जरूरत

भू-वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीय प्रायद्वीप के यूरेशियन प्लेट से टकराने के फलस्वरूप धरती हिलती-डुलती है और भूकंप आते हैं। इसके अलावा धरती के भीतर की ऊर्जा के दबाव से भी भूकंपन होता है। लेकिन इसके प्रभाव-क्षेत्र में इंसानी बसाहट होने से परिणाम दुखद होते हैं। ऐसे में, इस संबंध में किए जाने वाले शोधों के लिहाज से यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि भूकंपन की आवृत्ति कितनी है? उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023 के 365 दिनों में से 34 दिन देश में कहीं-न-कहीं भूकंप की घटनाएं होती रही हैं। यहां तक कि पिछले वर्ष का पहला व अंतिम दिन भी भूकंप से प्रभावित रहा है।

भूगर्भ विशेषज्ञों ने भारत के करीब 59 फीसदी भू-भाग को भूकंप संभावित क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया है। पिछले वर्ष एक जनवरी को दिल्ली से हरियाणा तक 3.8 तीव्रता के भूकंप के झटके रात 1.30 बजे दर्ज किए गए। पिछले वर्ष के अंतिम दिन 31 दिसंबर को भी दोपहर 2.30 पर 3.6 तीव्रता के झटके मध्य प्रदेश के सिंगरौली में महसूस किए गए। यहां 26 दिसंबर को भी कुछ झटके आए थे। मई को छोड़कर शेष सभी महीनों में देश के 14 राज्यों के 30 शहरों में 2.0 से 6.6 तीव्रता के झटके आए, परंतु कोई बड़ी जन-हानि नहीं हुई। दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर), मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तरकाशी एवं मणिपुर क्रमशः नौ, पांच, चार एवं दो बार झटकों से प्रभावित हुए। देश के उत्तर तथा उत्तर-पूर्वी एवं मध्य क्षेत्र में ज्यादा झटके आए। कुछ भूकंप के क्षेत्र काफी व्यापक भी रहे। 24 जनवरी को दोपहर 2.30 पर 30 सेकंड तक दिल्ली-एनसीआर में 5.3 तीव्रता के झटके आए। इन झटकों का प्रभाव उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा तथा राजस्थान के कुछ भागों में देखा गया।19 फरवरी को मध्य प्रदेश के धार, बड़वानी, अलिराजपुर सहित कई जिलों में दोपहर 12.45 पर छह सेकंड तक तीन से चार तीव्रता के झटके आते रहे। इसका केंद्र धार जिले में 10 किलोमीटर की गहराई में बताया गया। दो अप्रैल को प्रातः जबलपुर, नर्मदापुरम एवं पचमढ़ी में 3.6 तीव्रता के झटके दर्ज किए गए। नर्मदापुरम में 21 मार्च की रात को भी कुछ झटके आए थे। 21 मार्च को दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में रात 10.20 पर 6.6 तीव्रता का कंपन हुआ था। तीन अक्तूबर को दोपहर में फिर दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में कंपन हुआ। इस भूकंप की तीव्रता 5.3 से 6.3 रेक्टर पैमाने पर आंकी गई।

इसी दिन नेपाल में भी शाम को चार से पांच तीव्रता के झटके आने से कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए एवं 10 लोग घायल हुए। गुजरात के कच्छ एवं राजकोट में 30 जनवरी एवं दो फरवरी को 4.3 तीव्रता के झटके आए, परंतु कोई हानि नहीं हुई। मणिपुर के उखरूल व विष्णुपुर में चार फरवरी व 16 अप्रैल को हल्के झटके दर्ज किए गए।

छत्तीसगढ़ के गौरला-पेंड्रा-मरवाही और कोरबा जिले के गांवों में 13 अगस्त की रात एवं सरगुजा तथा अनूपपुर में 28 अगस्त को भूकंप आया। कलबुर्गी (कर्नाटक), जोरहाट (असम), बीकानेर (राजस्थान), बिजनौर व अयोध्या (उत्तर प्रदेश) में क्रमशः 18 जनवरी, 18 मार्च, 25 मार्च, तीन अप्रैल व पांच नवंबर को हल्के झटके आए।

हिमालयी क्षेत्र एवं दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते भूकंपों के संदर्भ में भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि छोटे-छोटे कंपनों से भूगर्भीय ऊर्जा निकल जाती है एवं बड़े भूकंप का खतरा कम हो जाता है। हिमालय के नीचे स्थित ‘यूरेशियन प्लेट’ के ‘इंडियन प्लेट’ से टकराने से 200 किलोमीटर दूर स्थित दिल्ली-एनसीआर में कुछ भ्रंश (फाल्ट) बन गए हैं, जिनके कारण इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा झटके आ रहे हैं।

दूसरी ओर, मध्यभाग के संदर्भ में भूकंप वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां भी ‘टेक्टोनिक प्लेट्स’ में हो रही हलचल से झटके आ रहे हैं। खंडवा एवं नर्मदा नदी से जुड़े जिले ज्यादा संवेदनशील बताए गए हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भी नर्मदा व सोन नदी घाटी वाले जिलों में ज्यादा खतरा बताया है। इन जिलों में पिछले तीन वर्षों में 38 झटके दर्ज किए गए हैं। बढ़ता भूकंप देश के लिए एक नया खतरा बनकर उभर रहा है। अतः गंभीरता से ध्यान देकर ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए कि जानमाल की हानि कम-से-कम हो।

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