रणबीर आलिया बेटी राहा को कभी अकेला नहीं छोड़ते एक्ट्रेस ‘मॉम्स गिल्ट’ से पीड़ित रही, नैनी से बच्चे के मन पर ताउम्र असर
हालिया इंटरव्यू में बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने मां बनने के बाद की जिम्मेदारियों की बात कही है। आलिया ने बताया कि राहा के जन्म के बाद उन्होंने और रणबीर ने फैसला किया कि वे बच्ची को कभी अकेला या सिर्फ हेल्प के भरोसे नहीं छोड़ेंगे। आलिया ने यह भी बताया कि चाहे जितना भी जरूरी काम हो, उन दोनों में से कोई एक हमेशा राहा के साथ मौजूद रहता है।
जब आलिया शूटिंग में व्यस्त होती हैं तो रणबीर बच्ची को संभालते हैं और जब रणबीर बाहर होते हैं तो ये जिम्मेदारी आलिया खुद उठाती हैं। सुविधा होने के बावजूद वे अपनी बच्ची को सिर्फ बेबी सिटर के भरोसे नहीं छोड़ते।
अपराधबोध में दबती माएं, आलिया ने कराई काउंसिलिंग
नवंबर, 2022 में बेटी राहा के जन्म के बाद आलिया ‘मॉम्स गिल्ट’ से जूझ रही थीं। दरअसल, यह एक तरह का इमोशनल कंडीशन होती है, जिसमें नई मां बनी महिला को बताया जाता है कि वह अच्छी मां नहीं है। या फिर अपने बच्चे को ठीक तरीके से केयर नहीं कर पा रही है।
जिसकी वजह से मांएं अपराधबोध में दबती चली जाती हैं और खुद को दोषी भी मानने लगती हैं। एक इंटरव्यू में आलिया ने बताया कि इस एंग्जाइटी से निकलने के लिए उन्हें काउंसिलिंग और थेरेपी का सहारा लेना पड़ा।
बाद में उन्होंने इस अपराध-बोध से निकलने और बच्ची की ठीक तरह से देखभाल के लिए रणबीर के साथ जिम्मेदारियों को बांटने का फैसला किया।
जब मम्मी-डैडी दोनों काम करें तो बच्चे की जिम्मेदारी किसकी?
समाज में आम रूढ़िवादी चलन है कि बाहर के काम, नौकरी पुरुष करेंगे। जबकि घर संभालने और बच्चे पालने की जिम्मेदारी महिलाओं की होगी।
हालांकि मौजूदा वक्त में वर्क फोर्स में महिलाओं की भागीदारी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। वे इकोनॉमी में बड़ा योगदान कर रही हैं।
लेकिन इनके मुकाबले पुरुषों के घर के काम में हाथ बंटाने की दर धीमी ही रही है। जिसकी वजह से कई बार यह सवाल उठता है कि जब मम्मी-पापा दोनों काम करेंगे तो बच्चे की देखभाल कौन करेगा। यही सवाल अलिया और रणबीर से भी पूछा गया और इसी वजह से आलिया ‘मॉम्स गिल्ट’ में गईं।
नैनी-बेबीसीटर से बच्चों को साइकोलॉजिकल नुकसान
दुनिया भर के वर्किंग पेरेंट्स अपनी गैर-मौजूदगी में बच्चों की देखभाल के लिए प्रोफेशनल नैनी या बेबी सिटर की मदद लेते हैं। लेकिन कई रिसर्च में यह बात साबित हुई है कि कम उम्र में बच्चों को पूरी तरह से नैनी या बेबी सिटर के सहारे छोड़ने उनके सोशल और साइकोलॉजिल डेवलपमेंट में रुकावट पैदा कर सकती है।
‘पेरेंट्स डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट के अनुसार बच्चे जितना अपनी फैमिली (मम्मी-पापा, अंकल-आंटी या दादा-दादी) के साथ सीख पाते हैं, प्रोफेशनल नैनी उतनी असरदार साबित नहीं होती।
स्टोरी में आगे बढ़ते हुए नैनी और बेबी सिटर के बीच के अंतर को समझ लेते हैं-
नैनी- बच्चे की पूरी देखरेख करने वाली प्रोफेशनल। निश्चित योग्यता रखने वाली ही नैनी बन सकती हैं।
बेबी सिटर- कम समय के लिए बच्चों का ध्यान रखते हैं। प्रोफेशनल या नॉन प्रोफेशनल कोई भी बेबी सिटर बन सकता है।
फैमिली मेंबर को बेबी सिटर बनाना बेहतर विकल्प
यूके की इकोनॉमिक एंड सोशल रिसर्च काउंसिल की मैगजीन में एक स्टडी छपी। यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड की इस स्टडी के मुताबिक जिन बच्चों के अपने दादा-दादी और नाना-नानी के साथ घनिष्ठ संबंध होते हैं, उन बच्चों का इमोशनल बिहेवियर ज्यादा संतुलित होता है। वह पढ़ाई में ज्यादा अच्छा परफॉर्म करते हैं।
यानी दादी-नानी के साथ वक्त बिताने से बच्चे सुपर स्मार्ट बनते हैं। साथ ही इससे ग्रैंडपेरेंट्स की सेहत पर भी काफी सकारात्मक असर पड़ता है।
दूसरी ओर, अगर बेबी सिटर या नैनी ने देखरेख के दौरान जरा सी भी बेरुखी अपनाई तो बच्चे के मन पर इसका नकारात्मक असर ताउम्र रह सकता है। बड़े होने के बाद यह ‘चाइल्ड-हुड ट्रॉमा’ का भी रूप ले सकता है।
यही वजह है कि पेरेंटिंग कोच किसी फैमिली मेंबर को बेबी सिटर बनाने की सलाह देते हैं। मम्मी-पापा की गैर-मौजूदगी में बेबी सिटर के बतौर फैमिली मेंबर प्रोफेशनल नैनी के मुकाबले बच्चों के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं।