उत्तराखंड में मोटे अनाज से बढ़ी किसानों की आय, IIS काशीपुर के अध्ययन में खुलासा; पढ़िए रिपोर्ट
भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) काशीपुर की ओर से 2100 से अधिक किसानों पर किए एक अध्ययन से पता चला कि उत्तराखंड में 75 फीसदी किसानों की वार्षिक आय 10 से 20 फीसदी के बीच बढ़ गई है। संस्थान ने कोदो कुटी (मिलेट्स) की फसल के उत्पादन जोर दिया है। आईआईएम में आयोजित कार्यक्रम में चार वरिष्ठ प्रोफेसरों और पांच डेटा संग्राहकों ने छह महीने के अध्ययन- उत्तराखंड में बाजरा उत्पादन, इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव और विपणन चुनौतियों का एक अनुभवजन्य विश्लेषण, जारी किया। इसमें कहा गया कि राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर बाजरा-आधारित उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है। केंद्र और राज्य सरकार के हालिया प्रयास से बाजार में बाजरा फसलों की मांग बढ़ी है, लेकिन अधिकतर किसान लाभ कमाने के बजाय स्वयं के लिए बाजरा उगा रहे हैं। अध्ययन के मुख्य अन्वेषक, संस्थान के सहायक प्रो. शिवम राय ने बताया कि स्वयं उपभोग के लिए बाजरा उगाने वाले अधिकतर किसान इसे चावल और गेहूं की तरह धन फसल के रूप में उपयोग नहीं कर रहे हैं।
बताया कि सर्वेक्षण के लिए राज्य के प्रमुख पहाड़ी क्षेत्रों पिथौरागढ़, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, चमोली और अन्य से नमूने एकत्रित किए गए। बाजरा को स्थानीय समुदाय के लिए मुख्य भोजन माना जाता है।
उधर मुख्य वक्ता जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के प्रोफेसर डॉ. पुष्पा लोहानी और डॉ. जितेंद्र क्वात्रा ने कहा कि राज्य सरकार ने हाल ही में मडुवे का एमएसपी 35.78 रुपये किग्रा करने की घोषणा की है। किसानों को इसकी जानकारी नहीं है। बताया कि भारत में मिलेट्स उगाने का इतिहास हड़प्पा सभ्यता में मिलता है जो भारत में हरित क्रांति तक जारी रही लेकिन हरित क्रांति के बाद किसान गेहूं-चावल उगाने पर ज्यादा जोर देने लगे और हमने प्राचीन व पौष्टिक भोजन खो दिया। उन्होंने बताया कि हरित क्रांति के बाद बाजरा की खेती का क्षेत्र 40 से घटकर 20 फीसदी रह गया। धारवाड़ में बाजरा किसानों पर कर्नाटक विवि की ओर से किए एक शोध से पता चलता है कि बावजूद इसके किसानों ने मोटे अनाज से अपनी आय में दोगुनी वृद्धि की है।