सात समंदर पार न्यूयॉर्क के डच की रहने वाली ट्राइका ऋषिकेश के स्लम बस्ती के बच्चों की मददगार बनीं हैं। 14 वर्षों से वह स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क संगीत और शिक्षा में मदद कर रही हैं। वह बच्चों को भोजन भी उपलब्ध कराती हैं। सात अप्रैल को उन्होंने मायाकुंड में एक सेंटर भी खोला है। जिसमें आसपास के करीब 23 बच्चों ने पंजीकरण किया है। ट्राइका ने बताया कि वह न्यूयॉर्क के डच में संगीत शिक्षिका है। वर्ष 2009 में जब वह भारत घूमने आई तो उन्होंने यहां स्लम बस्ती के बच्चों की स्थिति देखी। उन्होंने मन बनाया कि वह इन बच्चों की मदद करेंगी। वर्ष 2010 में उन्होंने स्वर्गाश्रम जौंक में एक कमरा किराये पर लिया और एक सेंटर खोला। यहां वह स्लम बच्चों को पढ़ाने में जुट गई। इस केंद्र को करीब 14 वर्ष बीत गए हैं। वर्तमान में यहां 13 बच्चे पढ़ रहे हैं। अब उन्होंने मायाकुंड में भी एक नया सेंटर खोल दिया है। जहां 23 बच्चों ने पंजीकरण कराया है।
इन सेंटरों में वह जरूरतमंद बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही संगीत की शिक्षा दे रही हैं। इसके लिए उन्होंने दो स्थानीय युवतियों को नियुक्त किया है। उन्होंने बताया कि वह मायाकुंड में पर्यावरण संरक्षण के लिए भी काम कर रही हैं। सेंटर में वह इको ब्रिक्स के रूप में कार्य कर रही हैं। इस अभियान के तहत बच्चे प्लास्टिक की बोतलें एकत्रित कर उनमें चिप्स के पैकेट जैसे अकार्बनिक कचरा भर देते हैं। बोतल में ये चीजें तब तक भरते रहते हैं जब तक बोतल ईंट की तरह कठोर न हो जाए। फिर इन बोतलों की मदद से विभिन्न प्रकार का सामान तैयार किया जा रहा है। इसके लिए वह एक बच्चे को एक बोतल के बदले पांच रुपये उपहार स्वरूप भेंट करती हैं।
ट्राइका ने बताया कि जब उन्हें समय मिलता है तो वह स्वर्गाश्रम में आती हैं। इसके अलावा वह ऑनलाइन माध्यम से सेंटर की जानकारी लेती हैं। उन्होंने सेंटरों में जो सहयोगी नियुक्त किए हैं उनके साथ वह सोशल मीडिया पर जुड़ी रहती है।