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फिल्म के लिए 28 दिन में 18 किलो वजन घटाया वीर सावरकर के लिए बेचनी पड़ी प्रॉपर्टी, कभी ऑस्ट्रेलिया में टैक्सी चलाते थे रणदीप

आज की स्ट्रगल स्टोरी में कहानी है एक्टर रणदीप हुड्डा की। रणदीप लंबे वक्त से फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की वजह से चर्चा में बने हुए हैं। हालांकि इस फिल्म को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा। वीर सावरकर के रोल में ढलने के लिए उन्होंने 32 किलो वजन कम किया था।

इस फिल्म की मेकिंग के दौरान उन्हें मुंबई स्थित अपनी प्रॉपर्टी तक बेचनी पड़ी। एक वक्त ऐसा भी आया कि फिल्म बंद करने की नौबत आ गई। लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ से ऐसा होने नहीं दिया। 2018 में वे फिल्म बैटल ऑफ सारागढ़ी में कास्ट हुए थे, लेकिन वो बन न सकी। इस कारण वे डिप्रेशन में चले गए। इस वक्त परिवार वालों को डर बना रहता था कि वे कहीं खुद के साथ कुछ गलत ना कर लें।

ये सारी बातें खुद रणदीप ने हमें मुंबई के आराम नगर स्थित अपने ऑफिस में बैठकर बताईं। उनके चेहरे पर फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की सफलता की खुशी दिख रही थी। थोड़ी औपचारिकता के बाद हमारी बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ

बचपन कैसा बीता?
जवाब में रणदीप ने कहा- एक सामान्य बच्चे की तरह मेरा भी बचपन बीता। हालांकि कभी यह नहीं सोचा था कि एक्टर बनूंगा। दूर-दूर तक मन में इसकी चाहत नहीं थी। मेरी स्कूलिंग हरियाणा के मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पोर्ट्स से हुई थी। शुरुआत में स्पोर्ट्स में बहुत दिलचस्पी थी। मैंने स्विमिंग में नेशनल लेवल तक कई अवॉर्ड्स जीते हैं।

कुछ समय बाद स्कूल के थिएटर ग्रुप से परिचय हुआ। एक-दो नाटक देखने के बाद मुझे भी एक्टिंग से प्यार हो गया। यहां प्ले में काम करने के साथ कुछ प्ले डायरेक्ट भी किए। लेकिन स्कूल से निकलने के बाद एक्टिंग से नाता छूट गया।

ऑस्ट्रेलिया से आपने ग्रेजुएशन पूरा किया है, वहां पर किस तरह का स्ट्रगल था?
रणदीप ने बताया- परिवार वाले चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मेरी इसमें दिलचस्पी नहीं थी। फिर मैंने मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया से मार्केटिंग में ग्रेजुएशन किया। दरअसल, एक दोस्त की देखा-देखी मैं भी मेलबर्न चला गया था। उस दोस्त ने कहा था कि वहां पर पढ़ाई के साथ अच्छी नौकरी भी मिल जाएगी और सब कुछ फर्स्ट क्लास रहेगा। हालांकि, वहां पहुंचने पर असलियत पता चली।

BBA की पढ़ाई खत्म करने के बाद मैंने टैक्सी चलानी शुरू कर दी, क्योंकि पढ़ाई के दौरान उधारी हो गई थी। वहां पर कुछ समय काम करने के बाद मैं 2000 में इंडिया वापस आ गया।

बचपन कैसा बीता?
जवाब में रणदीप ने कहा- एक सामान्य बच्चे की तरह मेरा भी बचपन बीता। हालांकि कभी यह नहीं सोचा था कि एक्टर बनूंगा। दूर-दूर तक मन में इसकी चाहत नहीं थी। मेरी स्कूलिंग हरियाणा के मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पोर्ट्स से हुई थी। शुरुआत में स्पोर्ट्स में बहुत दिलचस्पी थी। मैंने स्विमिंग में नेशनल लेवल तक कई अवॉर्ड्स जीते हैं।

कुछ समय बाद स्कूल के थिएटर ग्रुप से परिचय हुआ। एक-दो नाटक देखने के बाद मुझे भी एक्टिंग से प्यार हो गया। यहां प्ले में काम करने के साथ कुछ प्ले डायरेक्ट भी किए। लेकिन स्कूल से निकलने के बाद एक्टिंग से नाता छूट गया।

ऑस्ट्रेलिया से आपने ग्रेजुएशन पूरा किया है, वहां पर किस तरह का स्ट्रगल था?
रणदीप ने बताया- परिवार वाले चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मेरी इसमें दिलचस्पी नहीं थी। फिर मैंने मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया से मार्केटिंग में ग्रेजुएशन किया। दरअसल, एक दोस्त की देखा-देखी मैं भी मेलबर्न चला गया था। उस दोस्त ने कहा था कि वहां पर पढ़ाई के साथ अच्छी नौकरी भी मिल जाएगी और सब कुछ फर्स्ट क्लास रहेगा। हालांकि, वहां पहुंचने पर असलियत पता चली।

BBA की पढ़ाई खत्म करने के बाद मैंने टैक्सी चलानी शुरू कर दी, क्योंकि पढ़ाई के दौरान उधारी हो गई थी। वहां पर कुछ समय काम करने के बाद मैं 2000 में इंडिया वापस आ गया।

क्या इस फिल्म की मेकिंग के वक्त फाइनेंशियल चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
रणदीप ने कहा- जी हां, बहुत करना पड़ा। मैंने इस प्रोजेक्ट में अपना सब कुछ लगा दिया था। इसके बावजूद दिक्कतें बनी रहीं। पिता ने मेरे फ्यूचर के लिए मुंबई में 2-3 प्रॉपर्टी खरीदी थीं, जिसे मैंने बेच दिया और उस पैसों को फिल्म में लगाया। फिल्म को किसी ने सपोर्ट भी नहीं किया, लेकिन इसके बाद भी मैं रुका नहीं।

फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ को मिल रहे पॉजिटिव रिस्पॉन्स पर आपका क्या कहना है?
रणदीप कहते हैं- इस चीज से बहुत खुश हूं। फिल्म को जिस तरह का प्यार मिल रहा है, इसे देख मैं बहुत गदगद महसूस कर रहा हूं। रिलीज के इतने दिनों पर बाद भी लोग फिल्म के लिए तालियां बजा रहे हैं। बतौर फिल्ममेकर यह मेरी लिए बहुत बड़ी जीत है।

जब यह कहानी मेरे पास आई तब मुझे वीर सावरकर जी के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी, लेकिन जब मैंने उनके बारे में पढ़ा तब पता चला कि ऐसे नेक इंसान के साथ इतना अन्याय हुआ है। फिर मैं यह ढूंढने लगा कि उनके साथ इतना गलत क्यों हुआ। सब कुछ जानने के बाद मैंने इसको खुद की जिम्मेदारी मान ली और ठान लिया कि जन-जन तक सावरकर जी की सच्चाई बता कर रहूंगा। इस दौरान सारी परेशानियों को भी झेलने के लिए तैयार था।

शायद इसी वजह से जो भी तकलीफ झेलनी पड़ीं, आज उन सबका गम खत्म हो गया है। फिल्म के लिए दर्शकों के प्यार ने एक मरहम का काम किया है। ऑडियंस के प्यार ने मुझे डूबने से बचा लिया है।

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