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जड़ों को नहीं सींचेंगे तो पहचान का हो जाएगा संकट : सकलानी

पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ रहे पलायन पर अंकुश लगाने के लिए एनसीईआरटी निदेशक डॉ. दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना बेहद जरूरी है। जड़ों को नहीं सींचेंगे तो जीवित रहने और पहचान का संकट हो जाएगा। उन्होंने रविवार को सकलानी बंधु संगठन की ओर से आयोजित मिलन समारोह में यह कहा। चकराता रोड टैगोर विला स्थित सदाशिव मंदिर परिसर में आयोजित समारोह में डॉ. सकलानी ने कहा कि नौकरी और व्यवसाय के लिए देश व विदेश के किसी भी कोने में रहें, लेकिन अपने मूल गांव से हमेशा जुड़े रहें। इस समारोह में ‘सकलानी वंश अवध से उत्तराखंड तक’ पुस्तक का विमोचन किया गया। इसके बाद उन्होंने कहा कि यह पुस्तक भावी पीढि़यों के लिए अहम दस्तावेज साबित होगी। संगठन के अध्यक्ष मुनीराम सकलानी ने कहा कि संगठन संस्कृति के उन्नयन और गांवों से पलायन रोकने पर जोर दे रहा है। पुस्तक के बारे में कहा कि यह वंशावली है। इसमें सकलानी जाति का 475 वर्षों का इतिहास समेटा गया है। कहा, वर्ष 1630 में उनके मूल पुरुष नागदेव अपने पैतृक गांव डौंडिया खेड़ा, उन्नाव, उत्तर प्रदेश (तत्कालीन कन्नौज रियासत) से उत्तराखंड में आ कर बसे। कहा कि जल्द ही नागेंद्र सकलानी के जीवन पर डॉक्यूमेंट्री बनाई जाएगी। कोषाध्यक्ष जयदेव सकलानी ने कहा कि समाज को इंजीनियरिंग और मेडिकल क्षेत्र में दो-दो मेधावी बच्चों की कोचिंग की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। इसका कर्नल प्रभात सकलानी, वीरेंद्र सकलानी, पूर्व अध्यक्ष ओपी सकलानी ने समर्थन किया। मिलन समारोह का संचालन परमानंद सकलानी ने किया। इस दौरान संगठन उपाध्यक्ष डॉ. मनोहर लाल सकलानी, अधिवक्ता ओपी सकलानी, मुकुल मोहन सकलानी, प्रो. अतुल सकलानी, पद्मेंद्र सकलानी, मीरा, हेमचंद्र, कुशलानंद, जय कृष्णा, विनीत, निशीथ आदि मौजूद रहे।

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