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डिग्री कॉलेज व यूनिवर्सिटीज को बड़े बदलाव के लिए होना पड़ेगा तैयार, तीन वर्ष बाद भी मनचाहा विषय समूह में नहीं मिल पाएगा प्रवेश

देहरादून : उत्तराखंड में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लागू हुए तीन वर्ष हो चुके हैं। अभी तक एक भी विश्वविद्यालय चाहे वह केंद्र का हो या राज्य सरकार का, प्रचलित विषय समूहों को छोड़कर मनोनुकूल विषयों के साथ छात्र-छात्राओं को पढ़ाई की सुविधा नहीं दे पाया है। यही नहीं, वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करने को लेकर सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों ने खानापूरी की। गुणवत्ता को केंद्र में रखकर व्यापक मंथन के बाद विषयवार पाठ्यक्रम को अंतिम रूप दिया गया हो, ऐसा दिखाई नहीं दिया है। विषय समूहों और पाठ्यक्रम के मोर्चे पर जब यह तैयारी है तो आने वाले वर्षों में महाविद्यालयों को स्तरीय स्वायत्त संस्थानों और विश्वविद्यालयों के रूप में विकसित करना बड़ी चुनौती होगा। एनईपी के इस उद्देश्य को धरातल पर उतारने के लिए उच्च शिक्षा विभाग और शिक्षण संस्थानों, दोनों को पसीना बहाना पड़ेगा।

उत्तराखंड उन चुनिंदा राज्यों में रहा है, जिसने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को शुरुआती दौर यानी वर्ष 2020 से ही क्रियान्वित करने का संकल्प लिया। प्रदेश में पांच राज्य विश्वविद्यालयों, एक केंद्रीय विश्वविद्यालय, 23 निजी विश्वविद्यालयाें, 117 राजकीय महाविद्यालयों और 21 अनुदान प्राप्त अशासकीय महाविद्यालयों में इसे क्रियान्वित किया जा रहा है।

एनईपी के संकल्प से जुड़ने का राज्य को एक लाभ यह हुआ कि उच्च शिक्षा में शैक्षिक प्रशासन को सुधारने और राज्य विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में संसाधन जुटाने के लिए तेजी से कदम उठाए गए। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से समर्थ पोर्टल प्रारंभ किया गया। पोर्टल के रूप में ई-गवर्नेंस की पहल से एक प्रवेश, एक पाठ्यक्रम, एक परीक्षा और एक परीक्षाफल योजना को मूर्त रूप देना संभव हो पा रहा है। एक शैक्षिक कैलेंडर को भी क्रियान्वित किया जा रहा है।

एनईपी में 20 प्रतिशत पाठ्यक्रम को आनलाइन पढ़ाने का प्रविधान है। विश्वविद्यालयाें से लेकर महाविद्यालयों को इसके लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी समेत आवश्यक व्यवस्था करनी है। ई-गवर्नेंस और डिजिटल क्षेत्र में नवाचार को लेकर दिखाए गए उत्साह के बूते यह लक्ष्य अधिक दूर नहीं है।

प्रचलित विषय समूह को चुनने के लिए विद्यार्थी विवश

यद्यपि, प्रदेश में राजकीय हों या निजी, सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को एनईपी के अंतर्गत प्रत्येक छात्र-छात्रा को मनचाहा विषय समूह चुनने की सुविधा देनी है। इस सुविधा के साथ उन्हें स्नातक कक्षाओं में प्रवेश की सुविधा नहीं मिल रही है।

हालत यह है कि यह विकल्प नहीं मिलने से प्रचलित विषय समूह को चुनने के लिए विद्यार्थी विवश हैं। किसी भी विषय समूह के लिए तीन स्तर पर तैयारी की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय, महाविद्यालय एवं उच्च शिक्षा विभाग को उसी अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण, महाविद्यालयों में शिक्षकों एवं प्रयोगशालाओं की सुविधा की अनिवार्य व्यवस्था करनी है।

प्रदेश सरकार ने विषयवार पाठ्यक्रम के लिए समिति का गठन किया था। समिति की ओर से प्रस्तावित पाठ्यक्रम पर मुहर लग चुकी है, लेकिन शिक्षाविद भी मान रहे हैं कि एनईपी की भावना के अनुसार वैश्विक प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम को लेकर व्यापक मंथन नहीं किया गया। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष डा प्रशांत सिंह का कहना है कि एनईपी में उच्च शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन होना है। महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को नई चुनौतियों के लिए स्वयं को तैयार करना पड़ेगा।

  • राज्य विश्वविद्यालय-5
  • निजी विश्वविद्यालय-23केंद्रीय विश्वविद्यालय-01
  • डीम्ड विश्वविद्यालय-03
  • राजकीय महाविद्यालय-117
  • अनुदानित अशासकीय महाविद्यालय-21
  • महाविद्यालय, जिनके पास भूमि और भवन हैं-89
  • महाविद्यालय, जिनके भवन निर्माणाधीन हैं-16
  • महाविद्यालय, जिनके भवन निर्माण की कार्यवाही गतिमान-06
  • महाविद्यालय, जिनके लिए भूमि प्राप्त करने की कार्यवाही गतिमान-06
  • नैक प्रत्यायन करा चुके राजकीय महाविद्यालय-39

शिक्षा निदेशालय एवं राजकीय महाविद्यालयों में पदों का विवरण:

  • कुल स्वीकृत पद, कार्यरत, रिक्त
  • 4536, 3762, 774

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