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सत्ता, सियासत और सिंधिया

22 साल पहले विदेश से एमबीए की डिग्री हासिल करने वाले एक 31वर्षीय युवा ने जब राजनीति में कदम रखा था तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि यह चेहरा प्रदेश और देश की राजनीति में अपने कुशल नेतृत्व से ऐसी छाप छोड़ेगा कि वह सत्ता और सियासत में नजीर बन जाएगी। दूरदर्शिता, संचारक, निर्णय लेने की शक्ति, ईमानदारी, प्रतिबद्धता के साथ ही जनता को प्रेरित करने वाले एक सच्चे जननायक की छावि लोगों के दिलों- दिमाग में बस जाएगी। ऐसा ही एक नाम है- ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया।
देश महात्वाकांक्षी नेताओं से भरा पड़ा हुआ है। लेकिन चिंता का विषय यह है कि अच्छे नेतृत्व के गुणों से मेल खाने वाले बहुत कम लोग हैं। वास्तव में कई राजनीतिक नेताओं में एक अच्छे नेता के कुछ सबसे आवश्यक गुणों में जैसे ईमानदारी, जवाबदेही की गंभीर कमी दिखती है। यह कोई संयोग नहीं है कि राजनेता शब्द के कई नकारात्मक अर्थ हैं। लेकिन अनुभव हमें बताता है कि केवल कुछ ही ऐसे हैं जो नेतृत्व के सिद्धांतों के करीब आते हैं और एक सफल राजनीतिक नेता के मजबूत संकेतक दिखाते हैं।
ज्योतिरादित्य भी उस “स्याह राजनीति का एक धवल चेहरा हैं“। जो मौजूदा परिवेश में भारतीय राजनीति के प्रमुख चेहरों में से एक हैं। सियासत के खुले आसमान में चमकते सितारे की तरह नजर आने वाले सिंधिया आज प्रदेश और देश की राजनीति में नित-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। ज्योतिरादित्य यानी आत्मविश्वास से भरा, दमकता और चमकता हुआ चेहरा, जो लोगों के दिलों-दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।
30 सितंबर 2001 में पिता माधवराव सिंधिया के आकस्मिक निधन के बाद दुर्घटनावश राजनीति में आने वाले ज्योतिरादित्य ने लोगों के दिलों-दिमाग पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। राजपरिवार में जन्म लेने और विदेश में पढ़ाई करने वाले ज्योतिरादित्य ने शहर-गांव और कस्बों के लोगों के साथ अपना रिश्ता जोड़कर उसे दिल से निभाया है।
पिता की मृत्यु के बाद 2002 में गुना संसदीय क्षेत्र के उप चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी बने। 24 फरवरी को अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, भाजपा के देशराज सिंह यादव को 4 लाख 50 हजार मतों के अंतर से हराकर पहली बार लोकसभा में पहुंचकर अपने राजनीतिक कॅरियर का धमाकेदार आगाज किया। इसके बाद 2004, 2009 और 2014 के आम चुनावों में भी उन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी।
यूपीए सरकार में रहते हुए उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। 2007 में राज्य मंत्री बनें। बाद में कैबिनेट फेरबदल में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में ऊर्जा मंत्रालय मिला। 2008 में संचार मंत्री बनें। 2009 में उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। 28 अक्टूबर 2012 में मनमोहन सरकार में ऊर्जा मंत्री बने।
2020 में मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर हुआ, जब उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने का निर्णय किया। उनका यह निर्णय प्रदेश की राजनीति में परिवर्तकारी साबित हुआ। कांग्रेस की सरकार गिर गई। इसके बाद, वे भाजपा की ओर से राज्यसभा के सदस्य चुने गए। करीब 7 साल बाद सात जुलाई 2021 में मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। नागरिक उड्डयन एवं इस्पात जैसे मंत्रालयों को संभाला। उन्होंने अपने विभागों में कई महत्वपूर्ण और नीतिगत निर्णय लेकर अपनी कार्यक्षमता का बेहतरीन प्रदर्शन कर देश में नजीर पेश की।
इस भूमिका में उन्होंने भारतीय विमानन उद्योग के विकास के लिए कई अभूतपूर्व कदम उठाए। उनके प्रयासों से उड्डयन क्षेत्र में अनेक सुधार हुए हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और कार्य कुशलता ने उन्हें भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण नेताओं में स्थापित कर दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नेतृत्व का महान व्यक्ति सिद्धांत नेतृत्व का सबसे पुराना सिद्धांत है। नेतृत्व का यह सिद्धांत कहता है कि नेता पैदा होते हैं, बनाए नहीं जाते। एक नेता जन्म से ही नेता होता है। वह व्यक्ति, जो अपने जन्म से ही अपने जीवन के हर पहलू में नेतृत्व करने की क्षमता रखता है। एक नेता में नेतृत्व का गुण होता है और जिसके पास यह गुण नहीं होता वह नेता नहीं हो सकता। नेतृत्व के इस सिद्धांत के अनुसार, सफल नेता नेतृत्व के सभी आवश्यक गुणों जैसे सकारात्मकता, आत्मविश्वास, जिम्मेदारी, रणनीतिक सोच आदि के साथ पैदा होते हैं। ज्योतिरादित्य इस कसौटी पर खरे उतरते हैं और वे जन्मजात ही नेता हैं।
उनकी नेतृत्व क्षमता आमजन को वशीभूत कर देती है। इसका प्रमाण है चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत। शानदार जीत का इनाम देते हुए मोदी जी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही सिंधिया को कैबिनेट मंत्री बनाकर संचार जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय देकर विश्वास जताया है।
कारण स्पष्ट है कि सिंधिया में बेहतरीन नेतृत्व शक्ति और अद्भूत प्रशासनिक क्षमता देखने को मिलती है। आधुनिक युग के श्रेष्ठ टेक्नोक्रेस्ट हैं। छल, कपट, द्वेषभाव, झूठ, प्रपंच और जात-पात से परे वे निष्पक्ष और स्वतंत्र राजनीति में भरोसा करते हैं, वे जो कहते हैं वो करते हैं और पारदर्शिता में विश्वास रखते हैं। यही वजह है कि जो भी उनसे एक बार मिलता है उनका मुरीद हो जाता है।
उसकी एक और खास वजह है कि वे अपने राजपरिवार की तीन शताब्दी की जनसेवा की विरासत को बखूबी संभाल रहे हैं और अंचल के लोगों से अपने पारिवारिक रिश्तों को मजबूती के साथ निभा रहे हैं।
सिंधिया की सबसे बड़ी खासियत है कि वे सम्मान के साथ समझौता नहीं करते हैं। यही कारण है कि जब उनके सम्मान पर चोट हुई तो उन्होंने कांग्रेस को सबक सिखाते हुए कमलनाथ की सरकार को गिरा दिया और उन्हें सड़क पर ला दिया।
गौरतलब है कि 1993 में पिता माधवराव भी कांग्रेस से अलग हुए थे। उस दौर में माधवराव भी कांग्रेस में घुटन महसूस कर रहे थे। इसी के चलते उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया था। ठीक इसी प्रकार 1967 में जब मध्य प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार थी, तब कांग्रेस में उपेक्षित होकर राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ से जुड़ गई थीं। राजमाता ने जनसंघ के टिकट पर ही गुना लोकसभा सीट से चुनाव जीता था।
सिंधिया परिवार ने सदैव -“अभिमान नहीं सम्मान“ – राजनीति में इस मूल मंत्र को अपनाया। जब भी सम्मान पर चोट हुई सिंधिया परिवार ने सत्ता की चूलें हिलाकर रख दीं।
क्या कोई सोच सकता है? कि जिसके पास सत्ता का पॉवर हो, अकूत संपति हो, सामर्थ्य हो, बावजूद इसके उनकी सबसे बड़ी अमानत है संस्कार, सेवा और अपनतत्व की भावना। यही वजह है कि लोगों के मन से श्रीमंत और महाराज की छवि को मिटाने के लिए गरीब से गरीब को गले लगाते हैं युवाओं से हाथ मिलाते हैं। उनकी करिश्माई शख्सियत के लोग कायल हो जाते हैं।
करिश्माई प्रदर्शन और आकर्षक व्यक्तित्व के चलते प्रधानमंत्री मोदी ने समय-समय पर सिंधिया का मान बढ़ाया है। सिंधिया की ऊंची उड़ान को देख मोदी भी हैरान हो गए थे। उन्होंने 10मार्च को आजमगढ़ (उप्र) में कैलाशवासी माधवराव सिंधिया की जयंती पर 16 एयरपोर्ट की सौगात देते हुए कहा था कि ग्वालियर में रिकॉर्ड समय में एयरपोर्ट का निर्माण एक नजीर है। तीव्र गति से विकास कैसे होता है, यह ज्योतिरादित्य सिंधिया से सीखा जा सकता है। सिंधिया स्कूल के समारोह में प्रधानमंत्री ने ज्योतिरादित्य से अपना नाता जोड़ते हुए उन्हें “गुजरात का दामाद“ कहा था। जबकि मुरैना में उन्होंने “सिंधिया ब्रांड ग्वालियर“ कहकर उनके बढ़ते कद का अहसास कराया था। जाहिर है कि सिंधिया की शैली प्रधानमंत्री को खासी रास आ रही है।
भाजपा के दूसरे सबसे कद्दावर नेता अमित शाह ने भी उनके संसदीय क्षेत्र में सिंधिया को महाराज संबोधित करते हुए कहा था कि हम सबमें विकास के लिए सबसे समर्पित कोई व्यक्ति है तो वह आपके महाराज हैं। मैं यह कहकर जाता हूं कि सिंधिया जी पर मोदी जी का वरदहस्त है। यही नहीं… भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, सुमित्रा महाजन, उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती व शिवराज सिंह चौहान सभी सिंधिया की तारीफ करते नहीं थकते हैं।
सिंधिया का सत्ता में प्रभाव बढ़ रहा है, संगठन में उन्होंने अपनी मजबूत पकड़ बना ली है, तो वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब भी पहुंच रहे हैं। उन्होंने खुद को भाजपा की नीति और रीति में पूर्ण रूप से ढाल लिया है। यही वजह है कि राज्य की राजनीति में सिंधिया एक बड़़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। आने वाले दिनों में उनकी सियासी हैसियत औैर भी बढ़ने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
अमीर कजलबाश ने कहा था कि “मिरे जुनूॅ का नतीजा जरूर निकलेगा, इसी सियाह समुंदर में नूर निकलेगा“।
आपको बता दें कि 2020 में भाजपा से जुड़ने के बाद सिंधिया ने अपने कार्य और प्रभाव से जनता के साथ अपने मजबूत संबंधों के आधार पर अपनी खास पहचान बनाई है। इसीलिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनकी तारीफ करते नहीं थक रहा है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भाजपा में प्रधानमंत्री चाहे कोई भी रहा हो या भविष्य में बने, ज्योतिरादित्य की दादी यानी राजमाता सिंधिया के त्याग और बलिदान को नहीं नकार सकता। राजमाता ने ही जनसंघ और भाजपा की नींव रखी, यदि वो न होतीं तो वर्तमान भाजपा की कल्पना नहीं की जा सकती थी।
सिंधिया का कांग्रेस से भाजपा में आगमन एक महत्वपूर्ण घटना रही है, जिसने भारतीय राजनीति में नई दिशा दी है। आने वाले वर्षों में, उनके राजनीतिक कॅरियर पर नजर रखना दिलचस्प होगा, क्योंकि वे अपने नए दल में भी अपनी छाप छोड़ते जा रहे हैं। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सत्ता, सियासत और सिंधिया एक दूसरे के पूरक हैं।

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