चीन ने भारत में कैसे घटाए हीरे के दाम ₹1.50 लाख से घटकर ₹30 हजार हुई कीमत; क्यों फीकी पड़ी डायमंड की चमक
नोएडा में रहने वाली सॉफ्टवेयर इंजीनियर श्रेया का पिछले साल रोका हुआ। शादी अगस्त 2024 में होनी थी। श्रेया के मंगेतर अभिषेक ने जुलाई 2023 में ही शादी के लिए डायमंड की पूरी ज्वेलरी खरीद ली। ये सोचकर की दिनों-दिन कीमत बढ़ती ही है।
हालांकि, एक साल बाद अब उस ज्वेलरी की कीमत 23% तक घट चुकी है। डायमंड की कीमत लगातार घटने से अभिषेक जैसे कई लोगों का घाटा हुआ है।
जवाबः हीरे की कीमत इंटरनेशनल मार्केट में तय होती है। दुनिया में हीरा कारोबारियों के सबसे बड़े नेटवर्क ‘रैपापोर्ट’ की वेबसाइट पर ये कीमत अपडेट होती है। ‘रैपापोर्ट’ के मुताबिक, पिछले एक साल में नेचुरल हीरे की कीमत में करीब 23% की गिरावट आई है।
मध्य प्रदेश के हीरा कारोबारी राजीव वर्मा के मुताबिक, जुलाई 2023 में जिस कटिंग और क्लैरिटी के एक कैरेट नेचुरल हीरा को वो 3 लाख रुपए में बेच रहे थे, अब उसकी कीमत 2.20 लाख से 2.30 लाख रुपए तक रह गई है।
वर्ल्ड डायमंड बिजनेस के एक्सपर्ट एडहन गोलान के मुताबिक, लैब में बने हीरे की कीमत नेचुरल हीरे की तुलना में 78% से 80% कम होती है।
राजीव बताते हैं कि दो साल पहले जुलाई 2022 में लैब में बने प्रति कैरेट हीरे की कीमत औसत 1.25 लाख रुपए थी, जो जुलाई 2024 में घटकर प्रति कैरेट 25 से 30 हजार रुपए रह गई है। यानी, 80% की गिरावट आई है। भारत में ज्वेलरी कारोबारी अपने-अपने हिसाब से मार्जिन लेते हैं।
जवाबः हीरे की कीमत कम होने की तीन मुख्य वजहें हैं…
1. नेचुरल हीरे को लैब वाले हीरे से कड़ी टक्कर: सूरत के हीरा कारोबारी अशोक गजेरा के मुताबिक, जब से लैब में हीरा बनाने की शुरुआत हुई, तभी से ऐसा ट्रेंड देखने को मिल रहा है। नेचुरल हीरे को लैब में बने हीरे से कड़ी टक्कर मिल रही है। बाजार में लैब में बने हीरे की सप्लाई बढ़ी है, जिसकी वजह से नेचुरल हीरे का कारोबार धीमा हुआ है।
डायमंड मार्केट के जाने-माने एक्सपर्ट पॉल जिम्निस्की के मुताबिक, 2015 में लैब में बने हीरे और नेचुरल हीरे की कीमत में 10% का अंतर था। दोनों हीरे की कीमत में ये अंतर अब बढ़कर 90% हो गया है।
2. भारत से कम हीरे खरीद रहा चीन: जेम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल यानी GJEPC के अध्यक्ष विपुल शाह के मुताबिक अचानक भारतीय बाजार में हीरे की कीमत घटने की वजह चीन से हीरे की मांग कम होना भी है। भारत से होने वाले हीरे के टोटल एक्सपोर्ट का करीब एक तिहाई हिस्सा चीन को भेजा जाता है।
अचानक चीनी कारोबारी भारत से हीरा खरीदने में दिलचस्पी नहीं लेने लगे हैं। अब चीन पिछले साल की तुलना में सिर्फ 15% हीरा ही खरीद रहा है। यह भी देश में हीरे की कीमत घटने की एक वजह है।
एक्सपर्ट्स चीन के कम हीरा खरीदने की दो वजह बताते हैं- 1. चीनी व्यापारियों ने भारत से सामान खरीदना कम किया है। 2022-23 में भारत ने चीन को सिर्फ 17.49 बिलियन डॉलर का टोटल सामान बेचा, जो पिछले साल से 11 बिलियन डॉलर कम था। लगातार ये गिरावट जारी है। 2. लैब में बने हीरे की वजह से अब चीन के ज्वैलरी मार्केट में असली हीरे को लेकर भरोसा कम हुआ है।
3. देश और विदेश में घटी हीरे की मांग: भारत का हीरा सिर्फ चीन ही नहीं, दुनिया के कई देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है। जून 2023 में 1,382.13 मिलियन डॉलर यानी 11,354.67 करोड़ रुपए के कटिंग और पॉलिश किए गए हीरे का एक्सपोर्ट किया गया था।
इस साल जून 2024 में हीरे का एक्सपोर्ट घटकर 1,017.87 मिलियन डॉलर यानी 8,496.87 करोड़ रुपए रह गया है। दुनिया में चल रही दो महत्वपूर्ण जंग और बड़े देशों में मंदी के संकेत को इसके पीछे की मुख्य वजह बताई जा रही है।
सवाल-3: हीरा असल में होता क्या है, ये कैसे बनता है?
जवाबः पृथ्वी की सतह से करीब 160 किलोमीटर नीचे ‘किंबरलाइट पाइप’ नाम की एक खास तरह की चट्टान पाई जाती है। जब मैग्मा पृथ्वी की गहरी दरारों से होकर बहते हुए किसी एक जगह जमा हो जाता है, तब ‘किंबरलाइट पाइप’ बनती है।
धरती के अंदर काफी ज्यादा प्रेशर और तापमान की वजह से कार्बन का क्रिस्टल धीरे-धीरे हीरा बन जाता है। कहा जाता है कि हीरा 100% कार्बन से बना होता है, उसे 763 डिग्री सेल्सियस पर ओवन में गरम किया जाए तो दुनिया का सबसे मजबूत पदार्थ हीरा जलकर कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बन जाता है। बर्तन में बिल्कुल भी हीरे की राख नहीं बचती है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जेमोलॉजी के मुताबिक, नेचुरल हीरा 99.95% कार्बन से बना होता है, जबकि 0.05% अन्य पदार्थ होते हैं। ये भले ही कम हों, लेकिन हीरे की चमक और उसके आकार को कम ज्यादा कर सकते हैं।
सवाल-4: लैब में बनने वाले हीरे और नेचुरल हीरों में क्या फर्क है?
जवाबः हीरे और जवाहरात पर रिसर्च करने वाली संस्था जेमोलॉजी इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका के मुताबिक, लैब में बना हीरा भी नेचुरल हीरे की तरह ही होता है। यह कुछ बर्फ जैसा ही है। पहाड़ों पर प्राकृतिक रूप से बर्फ जमा हो या फिर रेफ्रीजरेटर में जमा हो, लेकिन दोनों बर्फ ही होती है।
लैब में बनाया जाने वाला हीरा एक टेस्ट ट्यूब बेबी की तरह होता है, जैसे डॉक्टर खास तरीके से उसमें मेल-फीमेल सेल्स मिलाकर बच्चा बनाते हैं। वैसे ही लैब में साइंटिस्ट नेचुरल डायमंड का सीड यानी सैम्पल लेकर उससे डायमंड बनाते हैं। धरती के अंदर जैसे हाई प्रेशर और टेंपरेचर पर हीरा बनता है, उसी प्रोसेस को लैब में साइंटिस्ट नेचुरल डायमंड के सीड के जरिए दोहराते हैं। यह पूरा प्रोसेस 3 स्टेप में किया जाता है…
1. पहला स्टेप: सबसे पहले एक प्राकृतिक हीरे से एक पतली लेयर काटी जाती है। इसे ही नेचुरल डायमंड का सीड कहा जाता है। ये सीड 100% कार्बन का होता है, जिसे पॉलिश करके प्लाज्मा रिएक्टर में रख दिया जाता है।
2. दूसरा स्टेप: प्लाज्मा रिएक्टर के अंदर उतना ही तापमान और दबाव बनाया जाता है, जितना प्राकृतिक हीरे के बनने के लिए उसे जमीन के अंदर मिलता है। यह प्रोसेस दो तरीके से अपनाया जाता है…
1. कार्बन सीड को शुद्ध ग्रेफाइट कार्बन के साथ लगभग 1500 डिग्री सेल्सियस तापमान और हाई प्रेशर में मिलाया जाता है।
2. कार्बन के सीड को कार्बन युक्त गैस से भरे सीलबंद चैंबर में करीब 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है।
3. तीसरा स्टेप: प्लाज्मा रिएक्टर के अंदर कार्बन के कण टूटने लगते हैं और असली हीरे वाले सीड के ऊपर लेयर बनाने लगते हैं। इस तरह जैसे धरती के अंदर प्राकृतिक हीरा बनता है, वैसे ही एक खुरदुरा हीरा बनकर तैयार हो जाता है। इसके बाद कटिंग और पॉलिश कर निखारा जाता है।
जवाबः GJEPC के कार्यकारी निदेशक सब्यसाची रे के मुताबिक कीमत के कम होने का सीधा मतलब भारतीय हीरे की इंटरनेशनल मार्केट में डिमांड कम होना है।
जून 2023 में भारत ने 18,413.88 करोड़ रुपए के सभी तरह के ज्वेलरी और रत्नों को एक्सपोर्ट किया था यानी बेचा था। इस साल जून महीने में ज्वेलरी के कुल एक्सपोर्ट में 13.44% की गिरावट आई, जो अब घटकर 15,939.77 करोड़ रुपए रह गया।
अगर यही ट्रेंड रहा तो देश की इकोनॉमी को ज्वेलरी के एक्सपोर्ट से होने वाला फायदा कम हो जाएगा। इतना ही नहीं डायमंड इंडस्ट्री से जुड़े देश के 50 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे। यह कहना कि हीरे के कारोबार से सिर्फ बड़े बिजनेसमैन जुड़े हैं, यह सही नहीं है। वहीं, हीरा कारोबारी अशोक गजेरा का कहना है कि बाजार सुस्त होने से अकेले सूरत में काम करने वाले करीब 38,000 कर्मचारियों से लेकर छोटे और मध्यम बिजनेसमैन की आमदनी पर असर पड़ा है।