एमपी हाई कोर्ट ने कहा-जब जान का खतरा ही नहीं तो शस्त्र लाइसेंस क्याें
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच में न्यायमूर्ति गुरुपाल की सिंह अहलूवालिया की एकलपीठ ने यह सवाल दागने के साथ शस्त्र लाइसेंस निरस्त किए जाने के विरुद्ध दायर याचिका हस्तक्षेप अयोग्य करार देते हुए रद कर दी।
हाई काेर्ट ने कहा कि जब जान का खतरा ही नहीं है तो फिर शस्त्र लाइसेंस की मांग क्यों की गई। न्यायमूर्ति गुरुपाल की सिंह अहलूवालिया की एकलपीठ ने यह सवाल दागने के साथ शस्त्र लाइसेंस निरस्त किए जाने के विरुद्ध दायर याचिका हस्तक्षेप अयोग्य करार देते हुए रद कर दी।
डेढ़ वर्ष उपरांत संभागायुक्त के समक्ष अपील दायर की
कोर्ट ने पाया कि शस्त्र लाइसेंस निरस्त कए जाने के आदेश के विरुद्ध डेढ़ वर्ष उपरांत संभागायुक्त के समक्ष अपील दायर की है। इसी तरह संभागायुक्त द्वारा अपील निरस्त किए जाने के तीन वर्ष बाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। ऐसे में सवाल उठता है कि जब याचिकाकर्ता को जान का खतरा ही नहीं है, तो वह शस्त्र लाइसेंस क्यों चाहता है।
कलेक्टर व लाइसेंस प्राधिकरण ने 2019 को निरस्त कर दिया
दरअसल, भोपाल निवरसी माजिद खान की ओर से याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि उसके पास बंदूक का 31 दिसंबर, 2019 तक का वैध लाइसेंस था। कलेक्टर व लाइसेंस प्राधिकरण ने यह लाइसेंस छह नवंबर, 2019 को निरस्त कर दिया।
शांति भंग होने की आशंका के मद्देनजर यह कदम उठाया था
कलेक्टर ने याचिकाकर्ता के विरुद्ध दो आपराधिक मामले दर्ज होने के कारण भविष्य में शांति भंग होने की आशंका के मद्देनजर यह कदम उठाया था। चूंकि आपराधिक प्रकरण दर्ज होना शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने का आधार नहीं हाे सकता, इसलिए लाइसेंस जारी किया जाए।