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भगवान श्री कृष्ण के अनुसार हमेशा सभी को सुनने की ताकत रखनी चाहिए, जीवन में मिलती है सफलता

श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ हम सभी बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं। अगर किसी इंसान को अच्छा और नेक बनना है, तो वह गीता उपदेश पढ़ सकता है जोकि संस्कृत भाषा में लिखा गया था। इसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक है, जिसे भगवान श्री कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र की रणभूमि में दिया गया था। दरअसल, महाभारत के युद्ध में अर्जुन अपने सगे संबंधियों और गुरुओं के खिलाफ लड़ने से पहले गहरे नैतिक संकट में पड़ गए थे। अपने प्रियजनों को युद्ध के लिए तैयार देखकर, अर्जुन अत्यंत दुखी और व्याकुल हो गए थे। उन्होंने अपने मित्र और सारथी श्री कृष्ण से इस विषय पर चर्चा की। इस पर श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया। श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि एक क्षत्रिय के रूप में यह उनका कर्तव्य है कि वह राज्य को बेहतरीन राजा प्रदान करे और अन्याय को रोके। श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह भी सिखाया कि कर्म करना मनुष्य का धर्म है, जबकि उसके फल की चिंता करना नहीं। इस उपदेश के बाद अर्जुन ने अपने संदेह को छोड़कर युद्ध करने का निर्णय लिया। जिसके बाद महाभारत का यह युद्ध 18 दिनों तक चला, जिसमें पांडवों को कौरवों पर विजय प्राप्त हुई।

श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण का उपदेश केवल युद्ध के मैदान में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन देने वाला है। श्री कृष्ण कहते है किसी को सुनने से ज्यादा उसे समझने की कोशिश कीजिए क्योंकि हर कोई उतना कह नहीं पाता जितना वह महसूस करता है।

“यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।”

अर्थात, “जो मुझे सभी जगह देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है, उसके लिए मैं कभी अदृश्य नहीं होता और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है।” इस श्लोक का भावार्थ यह है कि हमें दूसरों में स्वयं को और स्वयं में दूसरों को देखने की कोशिश करनी चाहिए।

“विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पंडिता: समदर्शिन:।।”

हमें दूसरों को केवल सुनने के बजाय, उनके मनोभावों, उनकी स्थिति और उनके अनुभवों को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

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