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अंचल के बंद उद्योगों की कब्र पर घोषणाओं के फूल बनकर न रह जाए रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव!

हम इतिहास क्यों पड़ते हैं? यदि इतिहास का महत्व समझ लें तो शायद भविष्य में गलतियां दोहराना न पड़े बस यही एक लाइन है, इतिहास पढ़ने की वजह है। इतिहास में हमें जो कुछ हुआ उसमें सफलता क्यों प्राप्त हुई या असफल क्यों हुए दोनों की वजह मिलती हैं। अंग्रेज़ी साहित्य के अध्ययन के समय भी मैंने तुगलक कि उन गलतियों के बारे में पढ़ा था जो उसकी असफलता का कारण बनी। और आज भी क्या कोई तुगलक़ वही इतिहास दोहरा रहा है वहीं असफलता का इतिहास? हम बात कर रहे हैं 28 अगस्त, 2024। के उस ऐतिहासिक दिन की जब ग्वालियर में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन होने जा रहा है। इस आयोजन को लेकर बड़े बड़े दावे और वादे किए जा रहे हैं। लेकिन इन वादों और दावों में से कितने जमीन पर अपना वास्तविक आकार ले पाएंगे यह एक यक्ष प्रश्न है? निस्संदेह यह एक भव्य आयोजन है। निस्संदेह इस आयोजन को लेकर बहुत बड़ी तैयारी की गई निस्संदेह। इस आयोजन में देश विदेश के तमाम उद्यमियों को लाने का प्रयास किया जा रहा है। ग्वालियर चम्बल अंचल के छोटे बड़े व्यापारी ही नहीं बल्कि हर एक नागरिक भी इन बड़े बड़े दावों और वादों। को देखकर अब इस आशा में बैठा है कि क्षेत्र में औद्योगिक विकास होगा। तो आर्थिक उन्नति होगी और युवाओं के बीच में फैली रोजगार की कैंसर रूपी समस्या खत्म हो जाएगी। लेकिन इस बात का डर भी है कि यह रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का भव्य महल उस लाक्षाग्रह की तरह साबित न हो जो ऊपर से तो खूबसूरत आडंबर से सुसज्जित हो लेकिन अंदर ही अंदर उसमें यह सब व्यवस्था कर रखी हो। कि इन युवाओं और उद्योगपतियों के सपने इसमें जलकर।खाक हो जाएं?

ऐसा दावा किया जा रहा है कि रीजनल इंडस्ट्री? कॉन्क्लेब में ग्वालियर चंबल अंचल को बडी सौगात मिल सकती है। इस आयोजन के माध्यम से सरकार का प्रयास है कि अंचल को आईटी और रक्षा उपकरणों के हब के रूप में विकसित किया जाए। इस रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव के दौरान ही देश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ग्वालियर चंबल अंचल की दस औद्योगिक इकाइयों और प्रदेश की अन्य जगह पर 17 औद्योगिक इकाइयों का। लोकार्पण और भूमि पूजन भी करने जा रहे हैं इन? कुल 27 इकाइयों के जरिए मध्य प्रदेश में करीब 1421 करोड की निवेश आने की संभावना बताई जा रही है। इस कॉन्क्लेव आयोजन के दौरान  ही यह संभावना भी बताई जा रही है की मुख्यमंत्री उद्योगपतियों को दोहरे करा। रोपण से राहत दे सकते हैं औद्योगिक क्षेत्रों में जहां उद्योग विभाग मेंटेनेंस शुल्क वसूलता है। तो वहीं नगरीय निकाय उनसे संपत्ति कर वसूलते हैं इस तरह से जो क्षेत्र उद्योगपतियों के लिए स्वर्ग होना चाहिए जिससे वे यहां निवेश में रुचि दिखाएं वही कर की मार्ग से नर्क के समान बन जाता है। इस दोहरे कर की मार पर व्यापारी और उद्योगपति वर्ग कई बार आपत्ति जताकर विरोध कर चुके हैं। लेकिन अभी तक उनको कोई राहत नहीं मिली है। मध्य प्रदेश में उद्योगपतियों को लाइसेंस और प्रदूषण शुल्क भी हर। साल जमा करना होता है जो एक परेशानी का।कारण होता है। ऐसी तमाम छोटी बड़ी समस्याएं हैं जो क्षेत्र में उद्योगों के विकास में रोडा अटकाती है और इन को हटाए बिना अंचल में उद्योगों का विकास कैसे होगा यह एक यक्ष प्रश्न है

प्राप्त जानकारी के अनुसार सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग एमएसएमई ने इस। कॉन्क्लेव में 300 स्टार्टअप को बुलाया है पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से निवेश आकर्षित करने के लिए आगरा के गवर्नमेंट एसोसिएशन फुटवियर एसोसिएशन होजेरी एसोसिएशन को भी इस। कॉन्क्लेव में बुलाया जा रहा है। पर्यटन हस्तशिल्प कुटीर उद्योग आईटी कौशल विकास एवं उच्च शिक्षा से संबंधित शैक्षणिक सत्र भी इस। रीजनल कॉन्क्लेव में आयोजित किए जाएंगे इस कॉन्क्लेव। में लगभग दो सौ पचास बायर सैलर मीट कराए जाने की बात भी ही जा रही है। ग्वालियर में चॉकलेट क्लस्टर बनाने की तैयारी की जा रही है। यह कोई नया प्रयास नहीं है क्योंकि ग्वालियर के छोटे बड़े चॉकलेट। निर्माण कर्ता पहले ही अपने प्रयासों से चॉकलेट निर्माण में एक बड़ी पहचान बना चुके हैं।उनकी बनी हुई चॉकलेट।मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड तक के बच्चों के मुंह में मिठास घोलने का काम करती है। इस सबके बावजूद इन चॉकलेट निर्माणकर्ताओं को हमेशा शासन की प्रशासन की गलत नीतियों के वजह से कड़वाहट क सामना करना पडता है। क्या चॉकलेट क्लस्टर बनने से चॉकलेट निर्माणकर्ताओं? के व्यापार में सरलता आएगी उन्हें उन्हें वह राहत मिल पाएंगी जिनकी वह सालों से अपेक्षा कर रहे हैं?

28 अगस्त, 2024 ग्वालियर में आयोजित रीजनल इंडस्ट्री। कॉन्क्लेव में बहुत कुछ होना है जो होने की बात कही जा रही है उसकी फेहरिस्त लंबी है लेकिन उसमें से धरातल पर कितने आएंगे? क्या उनकी फेहरिस्त भी लंबी हो पाएगी यह देखने वाली बात होगी? ग्वालिय अचंल क्षेत्र का औद्योगिक विकास से संबंधित अनुभव पिछले कुछ सालों में अच्छा नहीं रहा है। सिंधिया परिवार द्वारा क्षेत्र में हमेशा औद्योगिक विकास का प्रयास किया गया ग्वालियर जिले के ही ग्वालियर उपनगर बिरला नगर में बिड़ला परिवार द्वारा जेसी मिल की स्थापना की गई थी जिसमें हजारों मजदूर काम करते थे और लाखों लोगों का।रोजगार इससे जुड़ा हुआ था। लेकिन आज जेसी मिल की।क्या हकीकत है?आप सभी लोग जानते हैं। जब कुमार मंगलम बिड़ला ग्वालियर दौरे पर आए थे तब उनसे जेसी मिल्क के पुनः संचालन पर मैंने प्रश्न किया था तो उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया था। शायद शायद इस क्षेत्र के कटु अनुभव जो उनको।मिले और उन्हें जिस तरह से इस।मिल के संचालन में नुकसान हुआ उसका दर्द वह बयान करना नहीं चाहते थे! आज रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में जितने निवेश और जितने। लोगों को रोजगार की बात हो रही है उससे कहीं ज्यादा विशाल और रोजगार प्रदान करने वाली औद्योगिक इकाई जे सी मिल का यह हश्र क्यों हुआ? इसके पीछे जिम्मेदार कौन है? क्यों ग्वालियर में उद्योगों की दुर्दशा हुई उसके कारणों का अध्ययन किए बिना उनसे सीख लिए बिना यह नए निवेश की बड़ी बड़ी बातें करना? एक तरह से कंगूरे सजाने  है!

आमजन के बीच लोकप्रिय सिंधिया राजघराने में जन्मे बड़े महाराज के नाम से विख्यात स्व. माधवराव सिंधिया का जन्म जरूर राजघराने में हुआ लेकिन वह हर आम जन के दर्द को समझते थे। राजघराने में जन्म लेने वाले माधवराव सिंधिया ने राजशाही छोड़  जनमानस के नेता बने। और क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न कराने के लिए उन्होंने ऐतिहासिक काम किए।  उनके विचारों में विकास था और आचरण में लोकतंत्र। ग्वालियर-चंबल अंचल के विकास के लिए माधवराव सिंधिया हमेशा आगे रहने वाले जननेता थे। यहां के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मालनपुर एवं बानमोर औद्योगिक क्षेत्रों के विकास में योगदान दिया। जहां देश-विदेश की कई बड़ी कंपनियों ने निवेश किया।इसके अलावा स्थानीय लोगों को रोजगार दिलाने के लिए सिथौली में रेलवे स्प्रिंग कारखाना खुलवाया। लेकिन पिछले कुछ सालों में स्वर्गीय माधुरा सिंधिया के उन सपनों को न जाने किसकी नजर लग गई? ही बामोर और मालंपुर में स्थापित उद्योग धीरे धीरे बंद होते चले गए। आज मालनपुर की यह स्थिति है भी यहाँ आधे से ज्यादा उद्योग बंद हो चुके हैं। हॉट लाइन एमपी आयरन जैसे बड़े उद्योग जो लाखों लोगों को रोजगार देते थे।उनका हश्र आज किसी से छुपा नहीं है। मालनपुर का यह हश्र क्यों हुआ क्या? कारण रहे किन गलतियों के वजह से यहां उद्योगपतियों ने रुचि दिखाना बंद कर दी। किस वजह से अरबों रुपये खर्च कर लगाए गए बड़े प्लांट आज जंग खा रहे हैं? कौन सा दानव उद्योगों को खा गया? कौन था वह भस्मासुर इसका अध्ययन कर के सीख लेना भी जरूरी है। और अब होने जा रहे निवेश का भी कहीं यही हश्र। तो नहीं होगा यह एक यक्ष प्रश्न है?

एक उद्योगपति को किसी क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने के लिए क्या चाहिए सरकार की सकारात्मक नीतियां फालतू के करों से निदान, उचित कीमत पर उद्योग के लिए भूमि, योग्य और स्किल्ड कर्मचारी, आवागमन के लिए बेहतर सड़कें, उद्योगों के समुचित संचालन के लिए विद्युत की निर्वाध उपलब्धि, आवागमन के लिए परिवहन ( हवाई रेल सडक) की चौबीस घंटे सुविधा, उद्योगों की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ की समुचित व्यवस्था, ऐसे ही अन्य छोटी बड़ी तमाम आवश्यकताएं हैं जो उद्योगपतियों को किसी क्षेत्र में उद्योग लगाने के लिए निवेश करने के लिए एक सकारात्मक वातावरण बनाती हैं। इन में हम उद्योगों को क्या दे? पाएंगे और क्या नहीं दे पाएंगे? और क्यों नहीं दे पाएंगे?और क्यों देना चाहिए? इन सब बातों का अध्ययन और समाधान करने के बाद ही रीजनल इंडस्ट्री। कॉन्क्लेव में आज दिखाए जा रहे सपने। किए जा रहे दावे और वादे कल हकीकत में जमीन पर साकार रूप ले पाएंगे। आज इस रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव को सफल करने के जितने सपने इसके आयोजकों में हैं शासन के हैं प्रशासन के हैं। उससे ज्यादा सपने एक वह आम आदमी देख रहा है जो सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। जिसको छोटी मोटी नौकरी के लिए भी पलायन करना पड़ता है। जिसके परिवार में बेरोजगारी एक दंश है। और अंचल के हर एक आम आदमी के सपने पूरा करने के लिए इस। रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव को हू ब। हू सफल होकर धरातल पर उतरना ही होगा। और इसके लिए जो लोग दावे और वादे कर रहे हैं उनको आज 28 तारीख को किए दावे और वादों को पूरा करने के लिए आगे भी इसी तरह प्रयास करने होंगे।

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