जैन बोर्ड के गठन के बाद अब ब्राह्मणों में हड़कंप
विशेष संपादकीय: विजय कुमार दास (मो. 9617565371)
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने 0.27 प्रतिशत जैनियों के लिए जैन बोर्ड का गठन करने की घोषणा कल सिंग्रामपुर में मोहन कैबिनेट महत्वपूर्ण माना जा सकता है लेकिन जिस राज्य में हिन्दुओं की कुल संख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 94.80 प्रतिशत है उनमें पहले से ही आरक्षण की रफ्तार सामान्य वर्ग के लोगों को असुरक्षित समाज का हिस्सा मानने के लिए बाध्य करता है। परन्तु इसके बावजूद भी मुस्लिम, क्रिश्चिन, बुद्धिस्ठ, जैन, सिख और कुछ अलग अलग समाजों की उपस्थिति भले ही कम हो लेकिन किसी न किसी रूप में राजनीति की हिस्सेदारी में इसका अपना महत्व है। और इसी के चलते यदि आपने मप्र में जैन समाज को जिनकी पॉपुलेशन बमुश्किल दो-ढाई लाख होगी उस वर्ग के लिए जैन बोर्ड का गठन करने का फैसला किया है तो फिर उस समाज के लिए भी जिसने भाजपा की विचारधारा को मजबूत करने के लिए अपने जीवन को ही दांव पर लगा दिया उनमें हड़कंप मचना स्वाभाविक है क्योंकि, सभी अलग-अलग घटकों और मठों से आए ब्राह्मणों की संख्या भी जैनियों की तरह है, लेकिन ब्राह्मण पूरे मप्र के लिए एक गाइडिंग फोर्स है जिसकी चिंता राइडिंग फोर्स को करनी ही पड़ेगी, ऐसा कोई जिला नहीं होगा, ऐसा कोई शहर, ऐसा कोई गांव नहीं, ऐसा कोई विषय नहीं और ऐसा कोई सामाजिक सरोकार नहीं होगा जहां आपको ब्राह्मणों की जरूरत महसूस न हो। लेकिन यह बात मुख्यमंत्री डॉ. यादव के लिए भी खोज का विषय बन सकती है कि आज मप्र में हर वर्ग का ब्राह्मण उपेक्षित, बेरोजगार और असुरक्षित है। चाहे राम मंदिर आंदोलन के प्रेरणास्रोत वैष्णव ब्राह्मण, मंदिर के पुजारी, कथावाचक, कर्मकांडी सबके सब आज अपने लिए चिंतित नहीं है बल्कि वे उस समाज और आने वाले पीढ़ी के लिए चिंतित है जो आरक्षण के चलते पूरी तरह उपेक्षित और लाचार होगी, वे चिंतित हैं कि सरकार जैनियों के लिए जब जैन बोर्ड का गठन कर सकती है पिछड़ों को आरक्षण पर आरक्षण दे सकती है तो फिर ब्राह्मणों की आने वाली पीढिय़ों को सुरक्षित रखने के लिए कोई कदम उठाएगी अथवा नहीं। यह लिखने में संकोच नहीं है कि, मप्र में एक जमाना ऐसा भी था जब ब्राह्मण वाद का ही बोलबाला होता था। लेकिन आज जमाना ऐसा है जब ब्राह्मणों की उपेक्षा इस कदर कर दी गई कि ब्राह्मणों की एक सभा में आरक्षण के मुद्दे को लेकर जब बात उठी तो पूर्व मुख्यमंत्री ने सीना ठोंकते हुए यहां तक कह दिया कि कोई माई का लाल ऐसा नहीं जो आरक्षण को खत्म कर सके। यह बात ओर है कि ब्राह्मणों के श्राप का असर था कि उक्त मुख्यमंत्री की सरकार अगले चुनाव में बुरी तरह हार गई थी। इस बात से इंकार नहीं कि संविधान को कोई बदल नहीं सकता जब तक हमारे देश में लोकतंत्र है लेकिन कमजोर वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के कोटे के नाम पर जब जातियों को संरक्षित रखने पर पारदर्शिता की राजनीति नहीं की जाएगी तो कहीं न कहीं से यह आवाज उठेगी कि, हमारा क्या होगा? इस विशेष संपादकीय का लब्बोलुआब यह है कि मप्र में सरकार किसी की भी हो ब्राह्मणों से सब कुछ लेने में हिचक नहीं होती लेकिन जब बात देने की आती है तो यह कह दिया जाता है कि ब्राह्मणों में एकता नहीं है, ब्राह्मण आपस में ही बंटे हुए हैं या फिर कोई छोटा सा झुनझुना पकड़ा कर ब्राह्मणों को बहलाने की कोशिश कर दी जाती है। इसलिए मुख्यमंत्री डॉ. यादव से ब्राह्मणों की अपेक्षाएं कम नहीं होनी चाहिए इस उम्मीद पर कि आने वाले कुछ ही दिनों में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ब्राह्मण बोर्ड का गठन करने की घोषणा करें और नए मुख्य सचिव अनुराग जैन जिनके आते ही जैनियों में सुरक्षा भाव पैदा हो गया ठीक वैसा ही आत्म-सम्मान और संरक्षण का भाव ब्राह्मणों में भी पैदा हो जाए तो चौंकिएगा मत, लेकिन चौंकिएगा तब जब भाजपा में ब्राह्मण नेता वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी, गोपाल भार्गव, विष्णुदत्त शर्मा, राजेन्द्र शुक्ला, डॉ. नरोत्तम मिश्रा, हितानंद शर्मा, रीति पाठक, संजय पाठक सबके सब आपस में बंट जाए…।