महिलाओं को कपड़ों के आधार पर आंकना रूढ़िवादी सोच को दर्शाता है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि महिलाओं को उनके कपड़ों के आधार पर आंकना या उनसे तलाक मिलने पर दुखी होने की उम्मीद करना महिला विरोधी पूर्वाग्रह और लैंगिक रूढ़िवादी सोच को दर्शाता है. जस्टिस देवन रामचंद्रन और जज एमबी स्नेहलता की बेंच ने एक फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. इसमें एक मां को बच्चों की कस्टडी देने से मना कर दिया गया था.
फैमिली कोर्ट ने कई कारणों का हवाला देते हुए महिला को बच्चों की कस्टडी देने से मना कर दिया था. इसमें कहा गया था कि वह भड़काऊ कपड़े पहनती है, अपने तलाक का जश्न मनाती है. उसका एक डेटिंग ऐप पर अकाउंट है. वहीं, केरल हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों और दलीलों से असहमति जताई. साथ ही इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामलों को अपने विवेक और अपने अधिकार क्षेत्र के अनुसार तय करना हमारा संवैधानिक दायित्व है.
‘पितृसत्ता और पूर्वाग्रह समाज में गहराई से समाए हुए हैं’
हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट पर किसी भी रूप में स्त्री द्वेष या लैंगिक भेदभाव का दोषी होने का संदेह नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने बच्चों की मां को सुरक्षा देते हुए बच्चों की इस इच्छा को भी ध्यान में रखा. बच्चे का कहना है कि वह पूरा समय उनके साथ रहना चाहता है और छुट्टियों में अपने पिता से मिलने के लिए तैयार है. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों ने उसे यह एहसास दिलाया है कि ‘पितृसत्ता और पूर्वाग्रह समाज में गहराई से समाए हुए हैं. ये हमारे विचारों और कार्यों को निर्देशित करते हैं.’
पीठ ने कहा, ‘दुर्भाग्य से हम अनजाने में ऐसी प्रथाओं का पालन करना जारी रखते हैं, जिसके लिए निश्चित रूप से निरंतर शिक्षा और गहन आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता होती है.’ पीठ ने कहा कि जानबूझकर या अवचेतन रूप से, समाज महिलाओं की स्वायत्तता को प्रतिबंधित करता है और उनकी पसंद का परीक्षण करता है. उनसे कपड़ों की पसंद सहित कुछ मानकों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है.
कोर्ट ने कहा, ‘ऐसे अलिखित मानदंड अंततः लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देते हैं और महिलाओं के लिए बाधाएं पैदा करते हैं. इसमें नियंत्रण पुरुषों के हाथ में होता है. दुर्भाग्य से, समय के साथ ‘ड्रेस कोड’ महिलाओं को उनके पूरे जीवन में प्रभावित करते हैं. महिलाओं के कपड़ों को उत्तेजक बताना और उन्हें नैतिकता सिखाना शुरुआती स्कूली दिनों से ही जीवन में सक्रिय बाधा बन जाता है.’
महिला को पहनावे के आधार पर आंकना अनुचित- HC
फैमिली कोर्ट का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने मां को भ्रष्ट आचरण वाला करार दिया था. क्योंकि पति ने आरोप लगाया था कि वह भड़काऊ कपड़े पहनती है. उसने डेटिंग ऐप पर अपनी तस्वीरें पोस्ट की थीं. पीठ ने कहा, ‘हमें पारिवारिक न्यायालय के निष्कर्ष तथ्यात्मक रूप से भी सही नहीं लगते. फिर भी, हम यह याद दिलाना आवश्यक समझते हैं कि वस्त्र आत्म-अभिव्यक्ति का एक रूप है, या सामान्य सौंदर्य बोध की अभिव्यक्ति है, जो किसी व्यक्ति की पहचान का एक हिस्सा है.’
हाईकोर्ट ने कहा कि ‘किसी भी सभ्य समाज में किसी महिला को केवल उसके पहनावे के आधार पर आंकना या उसकी शालीनता के आधार पर निष्कर्ष निकालना अक्षम्य और अनुचित है.’ पीठ ने कहा कि महिला द्वारा चुने गए वस्त्र उसकी अपनी पसंद के होते हैं, जिस पर नैतिकता थोपी या उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, खासकर अदालतों द्वारा.
पीठ ने कहा कि संविधान बिना किसी लैंगिक भेदभाव के सभी को समान अधिकार प्रदान करता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसे ऐसे समय में ऐसी टिप्पणी करनी पड़ रही है, जब देश अपने संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. अदालत ने यह भी कहा कि वह पारिवारिक न्यायालय की लैंगिकवादी टिप्पणियों को स्वीकार नहीं कर सकती, जैसे कि महिलाओं को विनम्र, आज्ञाकारी होना चाहिए और तलाक होने पर उन्हें दुख महसूस करना चाहिए.