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सीबीआई ईडी जांच करे तो पता चलेगा 7000 करोड़ प्रतिवर्ष के बजट में बंदरबांट, इकबाल-सुलेमान-प्रियंका दास के जमाने में NHM में होता रहा बड़ा घोटाला

मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाले के बाद भाजपा के मामा नेता पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कार्यकाल विश्व में सबसे बड़ा विवादित और भ्रष्टाचार में लिप्त कांड के रूप में रेखांकित किया गया। समय के अंतराल के साथ व्यापम घोटाले के बाद इसी 18 वर्ष के कार्यकाल में टेंडर घोटाले भी हुए, शराब घोटाले भी हुए, डीन भर्ती घोटाला भी हुआ और नर्सिंग घोटाले से 60000 नर्सिंग छात्रों के भविष्य को अंधकार में भी धकेला गया, यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि, तमाम घोटालों के विवादों में रही शिवराज सरकार में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान स्वयं तो बच गए लेकिन उनके केन्द्र में मंत्री बनने के बाद भी आज तक उनके कार्यकाल के कुछ शिखर के नौकरशाहों के खिलाफ सीबीआई -ईडी तथा लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई पूरी शिद्दत के साथ चल रही है। इसी श्रृंखला में यदि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत संचालित लिंक रोड -3 पर एनएचएम का भवन भी घोटालों और विवादों के घेरे में आ गया है ऐसा लिखा जाए तो गलत कुछ नहीं होगा, क्यों कि कल इसी एनएचएम के खिलाफ मप्र के नए मुख्य सचिव अनुराग जैन को एक लंबी-चौड़ी शिकायत किसी एक्टिविस्ट ने की है। शिकायत में कहा गया है कि 28 करोड़ की लागत से निर्मित भवन में एमडी का चेम्बर भी टपकने लगा है। सूत्रों का मानना है कि, पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस, अतिरिक्त मुख्य सचिव मो. सुलेमान जिनके अधिनस्थ विभाग था तथा प्रियंका दास जिनकी छवि बिना काम के नौकरशाही की थी इन तीनों ने मिलकर एनएचएम में प्रतिवर्ष 7000 करोड़ का बंदरबांट कर दिया जिसकी किसी ने आज तक जांच करने की हिम्मत इसलिए नहीं जुटाई क्योंकि ये तीनों नौकरशाह अद्भुत किस्म में ऐरोगेंट और भ्रष्टाचार पर आंख मूंदकर सरकार चलाने में तथा मुख्यमंत्री की आंखों में पट्टी बांधकर फैसले करवाने में महारथ हासिल कर चुके थे। बता दें कि, देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एनएचएम को भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य स्थापित किया था। प्रधानमंत्री ने यह स्वास्थ्य मिशन कमजोर और वंचित वर्गों को ध्यान में रखते हुए चलाया था जिसमें विशेष रूप से सभी राज्यों में शिशु मृत्युदर कम करने, मातृ मृत्युदर और कुपोषण को कम करने तथा परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किया था। मप्र में एनएचएम को प्राप्त होने वाली 7000 करोड़ की राशि में 40 प्रतिशत राशि मप्र सरकार देती है। 32 हजार पीएससी और सीएससी के अंतर्गत 5 हजार में से 2 हजार डॉक्टर, 4 हजार एएनएम, 9995 सीएचओ और प्रति नियुक्ति पर मनमाने ढंग से भरे हुए तमाम उपसंचालकों द्वारा संचालित होने वाला एनएचएम मप्र में जब से आया है तब से भ्रष्टाचार का शिकार है। यूं कहा जाए कि, मातृ मृत्युदर, शिशु मृत्युदर, कुपोषण और परिवार नियोजन के आंकड़ों में मप्र 2005 पर जहां पर था ये सारे इंडीकेटर्स आज भी वहीं पर हैं यह जानकर मुख्य सचिव अनुराग जैन भी चौंक गए होंगे। मतलब 7 हजार करोड़ का बंदरबांट जांच का विषय क्यों नहीं बना, आश्चर्य एवं चौंकाने वाला वाक्या है। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस, अतिरिक्त मुख्य सचिव मो. सुलेमान तथा मेरी मर्जी जैसा मैं चाहूं वाली नौकरशाह प्रियंका दास ने एनएचएम को भी व्यापम घोटाले के बराबर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, ऐसा माना जाए तो चौंकिएगा मत और चौंकिएगा तब जब सीबीआई ईडी इन तीनों नौकरशाहों से तीन दिन तक लगातार पूछे कि, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पोषित केन्द्र की सर्वश्रेष्ठ कमजोर वर्ग के लिए बनाई गई एनएचएम में भी बंटाधार होता रहा और आप कंबल ओढ़कर घी पीते रहे, ऐसा क्यों हुआ? और इसका उत्तर वर्तमान प्रमुख सचिव संदीप यादव एवं प्रबंध संचालक सलोनी सिडाना को देना पड़े

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