सोनिया गांधी की पसंद थे, फिर राष्ट्रपति बनने से कैसे चूके डॉ. कर्ण सिंह
महज 18 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखने वाले डॉ. कर्ण सिंह ने एक अख़बार की बेबसाइट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कई बड़े खुलासे किये हैं। साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बताया कि साल 2006 में जब देश के नए राष्ट्रपति के लिए नाम फाइनल हो रहे थे तो उस वक्त किस तरह से आखिरी दौर में उनका नाम कट गया था। उन्होने यह भी बताया, उस वक्त वे यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की पसंद थे, मगर तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने कुछ ऐसी बात कही, जिससे डॉ. कर्ण सिंह के नाम पर सहमति नहीं बन सकी। इसके अलावा डॉ. सिंह ने भारत पाकिस्तान की 1971 की लड़ाई को लेकर भी एक बड़ी बात कही। इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तानी राष्ट्रपति और इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव से जुड़ा एक किस्सा भी साझा किया। डॉ. कर्ण सिंह ने खास बातचीत में इन मुद्दों पर अपनी राय रखी.
2006में राष्ट्रपति बनने से कैसे चूक गए?
– यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने दो नाम दिए थे। एक शिवराज पाटिल और दूसरा मेरा। बैठक में दोनों नामाें पर चर्चा हुई। तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा, समाजवादी देश में महाराजा यानी डॉ. कर्ण सिंह को राष्ट्रपति कैसे बना सकते हैं। इसके बाद मेरा नाम आखिरी दौर में कट गया। यह अलग बात थी कि मैंने अपने नाम के आगे कभी महाराज या युवराज जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।
अनुच्छेद-370 हटाने और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने पर क्या राय है?
– 1846 में हमारे पूर्वजों ने जम्मू-कश्मीर रियासत बनाई थी। इसमें जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित और बाल्टिस्तान प्रांत थे। तब और आज की परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाना गले नहीं उतरता। सरकार जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करे। महाराजा हरि सिंह ने भारत से संधिपत्र पर दस्तखत किए थे। अनुच्छेद-370 का प्रावधान किया गया। यह विशेष अधिकार था। तब जम्मू कश्मीर में ज्यादा संसाधन नहीं थे। हालांकि, यह अस्थायी प्रावधान था। बाद में, 70 साल तक व्यवस्था चलती रही। अब समय की आवश्यकता के मुताबिक बदलाव हुआ है।
अनुच्छेद-370 हटने के बाद आतंकी घटनाओं में कमी आई है?
– आतंकी घटनाएं होती रहेंगी। स्थानीय स्तर पर भी आतंकियों के समर्थक मौजूद हैं। हुर्रियत का तमाशा बंद हो गया है। पत्थरबाजी पर अंकुश लगा है। व्यवस्था पहले से बेहतर हुई है।
पीओके कैसे वापस ले सकते हैं?
– दिल हमेशा बड़ा रखो। बात पीओके लेने की है, तो वह बिना युद्ध के संभव नहीं है। मणिपुर में आग लगी है, मगर जम्मू-कश्मीर में वैसी स्थिति नहीं है। दुनिया भी जानती है कि पाकिस्तान आतंकी शिविर चला रहा है। हमें डरना नहीं चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी के समय दोनों देशों के बीच पटरी से उतरे संबंध अभी तक ट्रैक पर नहीं आ सके हैं।
संसद में तनातनी पर आपकी क्या राय है?
– मौजूदा दौर के नेताओं की वाणी बहुत कठोर हो गई है। संसद और बाहर कटुवचन बोले जा रहे हैं। संस्कृति का ख्याल नहीं रखा जा रहा। सत्ता पक्ष व विपक्ष आपस में ऐसे मतभेदों को न पनपने दें, जो शत्रुता में बदल जाएं।
विपक्ष कहता है-संविधान खतरे में है, आपको भी ऐसा लगता है?
– संविधान में सौ से ज्यादा बदलाव हुए हैं। बहुत सी रचनात्मक बातें हुईं। संविधान खत्म नहीं हो सकता। आज दरगाह-मंदिर के मुद्दे पर तनाव बढ़ रहा है। इन मुद्दों से हमारी संस्कृति पर दाग लगता है। लोगों ने देश का विभाजन देखा है। ध्रुवीकरण की राजनीति ने आग में घी डालने का काम किया है। धर्म के नाम पर दुश्मनी बहुत खतरनाक है।
समान नागरिक संहिता लागू होना संभव है?
– देश में समान नागरिक संहिता लागू होना संभव नहीं है। मुस्लिमों में शिया, सुन्नी, सूफी व बोहरा समुदाय हैं। पहले धार्मिक समानता लाओ। कुरीतियां दूर करें। अलग धर्म हैं, अलग रीति-रिवाज हैं। उत्तर और दक्षिण की अलग संस्कृति है।
पूरे देश में एक साथ चुनाव संभव है?
– नहीं। जब एक राज्य में एक साथ चुनाव कराना आसान नहीं है, तो पूरे देश में एक साथ कैसे होंगे। सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम कैसे करेंगे। उत्तर पूर्व में उग्रवाद है, कई राज्य नक्सल प्रभावित हैं, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद है। एक देश-एक चुनाव का देश के फेडरल ढांचे पर असर पड़ सकता है।