मोदी है तो मुमकिन, मोहन है तो यकीन: सुरेश सोनी ने दिखाया दम, मोहन यादव का हाथ पकड़ा, दत्तोपंत ठेंगड़ी संस्थान के निर्माण की आधारशिला रखवाने में हुए कामयाब
संघ के वरिष्ठ नेता, चिंतक, विचारक और लेखक सुरेश सोनी का आत्मविश्वास और जोश फिर नजर आया, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। सोनी जिस अंदाज से उद्बोधन दे रहे थे, उससे यह लिखने में संकोच नहीं है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में उनकी भूमिका सीमित हो गई थी और उन्हें विस्मृत कर दिया था, लेकिन डॉ. मोहन यादव के आने के बाद उनकी अहमियत फिर से स्थापित हो गई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण दंत्तोपंत ठेंगड़ी संस्थान के लिए 84 हजार वर्गफीट भूखंड का आवंटन, उसका ले-आउट तैयार करना, भूमि पूजन कर निर्माण कार्य के लिए सारे रास्ते तय करना यह केवल सुरेश सोनी के ही बस की बात थी। राष्ट्रीय हिन्दी मेल के इस प्रतिनिधि ने सोनी के जुनून को दूसरी बार परखा है, जिसमें यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि आज भी वही दम है, जो 20 साल पहले था। यह न केवल सुरेश सोनी के प्रभाव को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि उनका हिन्दूत्व और शोध के प्रति समर्पण कभी कम नहीं हुआ। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के नवीन परिसर भवन के भूमि-पूजन और कार्य आरंभ के अवसर पर संबोधित करते हुए कहा कि ऋषि स्वरूप व्यक्तित्व के श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने दीपक के समान स्वयं जलकर विचारों का प्रकाश समाज को प्रदान किया। कृषि, श्रमिकों की स्थिति और स्वदेशी के क्षेत्र में उनका विचार उज्जवल नक्षत्र के समान हैं, जो समाज को निरंतर मार्गदर्शन प्रदान करते रहेंगे। विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य के रूप में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। वे हिंदुत्व को राष्ट्रीयता से आगे विश्व बंधुत्व के रूप में देखते थे। उनका मानना था कि चराचर जगत में हिंदुत्व के विचार का विस्तार मनुष्य, समाज, राष्ट्र और मानवता तक है। वर्तमान समय में उनके विचार अधिक समसामयिक हो जाते हैं, सम्पूर्ण विश्व विभिन्न समस्याओं में मार्गदर्शन और उनके समाधान के लिए भारत की ओर आशा की दृष्टि से देख रहा है। भारत अपनी यह भूमिका प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा के आधार पर ही निभा सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परम्परा के विभिन्न आयामों पर शोध की आवश्यकता अधिक बढ़ जाती है, शोध के क्षेत्र में शासन के साथ-साथ समाज को भी योगदान देना होगा। विचारक एवं लेखक सुरेश सोनी ने कहा कि श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी भारतीय ऋषि प्रज्ञा की अभिव्यक्ति थे। जीवन के सभी क्षेत्रों में भारतीय दर्शन को केन्द्र में रखना उनकी विशेषता थी। व्यक्तिगत जीवन से लेकर विश्व शांति के विषय उनके विचारों की परिधि में थे। विस्मरण और सही जानकारियां न होना भारतीय अकादमिक जगत की समस्या है। मैकाले की शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आत्मकेन्द्रितता, भोगवाद जैसे जीवन मूल्यों के स्थान पर त्याग, संयम, समर्पण जैसे भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना और भारतीय दृष्टिकोण को विकसित करना भारतीयता को समझने के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि शिक्षा, संस्कृति और शोध को भारत केन्द्रित करने की दिशा में समग्र प्रयास करने की आवश्यकता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के अनुसार उत्पादन में प्रचुरता, वितरण में समानता और उपभोग में संयम के त्रिसूत्र के आधार पर समाज और राष्ट्र का निर्माण करना होगा। इस उद्देश्य से शोध को दिशा देने की आवश्यकता है। सोनी ने कहा कि प्रकृति में जितना महत्व मनुष्य का है, उतना ही जीव जगत, वनस्पति, पर्वत और जल संरचनाओं आदि का भी है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जो जितना विवेकशील है, प्रकृति के संधारण और सभी के हितों के संरक्षण में उसका दायित्व भी उतना अधिक है। इस दृष्टि से प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में मनुष्य का दायित्व बहुत अधिक बढ़ जाता है, यही भारतीय दृष्टि से देखने की प्रक्रिया है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान इस भारतीय मूल दृष्टि से बहु आयामी शोध गतिविधियों का विस्तार करेगा और मध्यप्रदेश, सम्पूर्ण देश में मौलिक शोध का प्रमुख केन्द्र बनेगा। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृढ़ नीति और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की प्रतिबद्धता से मध्यप्रदेश भारतीय प्राचीन ज्ञान परंपरा के आधार पर शोध का प्रमुख केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। ‘मोदी हैं तो मुमकिन और मोहन हैं तो यकीन’— इस विचार को साकार करते हुए भोपाल को दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान जैसी सौगात मिली है। यह न केवल शिक्षा, संस्कृति और शोध को भारत- केंद्रित बनाने की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि सुरेश सोनी के शोध के प्रति जुनून का भी प्रमाण है। उनकी प्रेरणा और समर्पण ने इस ऐतिहासिक पहल को संभव बनाया, जिससे मध्यप्रदेश मौलिक शोध का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरेगा।