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उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण पर किया बड़ा काम.अब इन्हे मिली डॉक्टरेट की उपाधि

अनामिका फिल्म्स डेवलेपमेंट सोसाइटी एवं पर्यावरण प्रबोधिनी डेवलपमेंट सोसाइटी नैनीताल की एक बैठक में सभी पदाधिकारी एवं सदस्यों ने सोसाइटी के अध्यक्ष श्री सुहृद सुदर्शन साह को वर्ल्ड कल्चर एवं एनवायरनमेंट प्रोटक्शन कमिशन भारत सरकार द्वारा, नेहरू ऑडिटोरियम नई दिल्ली में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित होने पर हर्ष व्यक्त किया गया तथा सभी लोगों ने उन्हें बधाई दी और भविष्य में भी इसी प्रकार पर्यावरण एवं संस्कृति के संवर्धन हेतु निरंतर कार्य करने का संकल्प लिया।
डॉ सुहृद सुदर्शन साह अध्यक्ष पर्यावरण प्रबोधिनी डेवलपमेंट सोसाइटी एवं अनामिका फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी नैनीताल द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों की समीक्षा की गई तथा पुनः सभी को सचिव द्वारा अवगत कराया गया कि पर्यावरण के क्षेत्र में वृक्षारोपण, बच्चों को आधुनिक वीडियो एवं ऑडियो का प्रशिक्षण , तेजपत्ता नर्सरी द्वारा उत्पादन कर गांव में तेज पत्ता पौधों का वितरण किया गया मनरेगा के तहत किया गया था उसके अतिरिक्त सोसाइटी द्वारा उत्तराखंड के 77 उद्यानों को माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिका कर पुनः उत्तराखंड सरकार को एक लंबी लड़ाई के पश्चात वापस दिलाया गया था सन 2003 में तत्कालीन सरकार द्वारा 77 उद्यानों को कौड़ियों के भाव 25 साल के लिए लीज में दे दिया गया था जिसमें केवल एक उद्यान जो की 345 एकड़ का था तथा जिसमें 5 लाख रुपए प्रतिवर्ष कि केवल घास दिखती थी जिसे कुल 16 हजार प्रतिवर्ष के हिसाब से 25 वर्ष के लिए लीज पर दे दिया गया था इसी प्रकार सारे उद्यानों को टाटा ,बिरला एवं डाबर तथा अन्य बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को कौड़ियों के भाव लीज में दे दिया गया था इसके खिलाफ समिति के द्वारा 2003 से 2012 तक लगातार कानूनी लड़ाई लड़कर सारे उद्यान उत्तराखंड सरकार को वापस करवाए गए जिनकी सरकार द्वारा 77 उद्यानों की बताई गई कुल कीमत उस समय कुल 15 अरब रुपया थी। बैठक के दौरान श्री साह द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि उत्तराखंड में कुमाऊं की संस्कृति को संरक्षित करने हेतु कुमाऊनी भाषा में अब तक कुल 4 फिल्मों का निर्माण किया जा चुका है जिसमें मधुली ,बाटुई, हैरी पिटार एवं जय हिंद प्रमुख रूप से चर्चित रही जिनमें से मधुली फिल्म उत्तराखंड की प्रथम ऐतिहासिक कुली बेगार प्रथा की पृष्ठभूमि पर बनाई गई फिल्म है जो की सन 1916 से 1921 के मध्य कुली बेगार प्रथा के खिलाफ हुए आंदोलन को प्रदर्शित करती है तथा यह भी अवगत कराया गया कि उक्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म मधुली को विगत 2 वर्ष पूर्व यूट्यूब में आम जनता के लिए देखने हेतु उपलब्ध कराई गई है तथा इस फिल्म को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल देहरादून में बेस्ट फिल्म अवार्ड से भी नवाज़ा गया है तथा उक्त फिल्म कि दर्शकों द्वारा भी अत्यधिक सराहना की गई है।

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