बकरी चराने से लेकर करोड़पति तक का सफर, छत्तीसगढ़ की इस महिला ने कैसे बदली तकदीर
जीवन की चुनौतियों और संघर्षों का सामना करना हम सभी के लिए एक आम बात है लेकिन इन चुनौतियों से घबराने के बजाय हिम्मत से आगे बढ़ने की कहानी है फूलबासन बाई यादव की. एक समय बकरी चराने और गरीबी से जूझने वाली फूलबासन आज 8 लाख से ज्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं. बता दें कि फूलबासन बाई यादव का जन्म राजनांदगांव जिले के सुकुलदैहान गांव में हुआ. गरीब परिवार में जन्मी फूलबासन की छोटी उम्र में शादी हो गई. शादी के बाद भी घर की आर्थिक स्थिति खराब थी. परिवार चलाने के लिए उन्होंने गाय-बकरी चराने का काम किया. हालात इतने खराब हो गए कि उन्होंने आत्महत्या करने तक की सोच ली थी.
दो मुट्ठी चावल और 2 से बदली जिंदगी
परिस्थितियों से हार मानने के बजाय उन्होंने कुछ महिलाओं को इकट्ठा किया और दो मुट्ठी चावल और 2 जमा करके स्व सहायता समूह बनाने की शुरुआत की. धीरे-धीरे ये समूह बड़ा होता गया और महिलाएं इससे जुड़ती चली गईं. ये समूह सिर्फ छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में ही नहीं, बल्कि अन्य राज्य और देश भर के कई हिस्सों में चल रहा है.
8 लाख से ज्यादा महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर
आज फूलबासन के नेतृत्व में मां बम्लेश्वरी स्व सहायता समूह से 8 लाख से अधिक महिलाएं जुड़ चुकी हैं. 14,000 से ज्यादा समूह चल हो रहे हैं और 40 करोड़ रुपये से ज़्यादा की बचत महिलाओं ने की है. ये महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने परिवारों को भी आर्थिक मदद कर रही हैं. बता दें कि कुछ साल पहले फूलबासन बाई यादव ने मशहूर शो कौन बनेगा करोड़पति में आकर 50 लाख की राशि जीती थी. जिसे भी उन्होंने अपने समूह में लगा दिया. यही नहीं, इस समय फूलबासन बाई यादव नारी शक्ति के लिए बड़ी मिसाल बन कर सामने आई है.
फूलबासन का मानना है कि महिलाओं को खुद के पैरों पर खड़ा होना जरूरी है. इसलिए वे लगातार महिलाओं को जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं. उनके प्रयासों से आज हजारों महिलाएं अपनी जिंदगी संवार रही हैं और समाज में बदलाव ला रही हैं. महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए किए गए कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने फूलबासन बाई यादव को पद्मश्री से सम्मानित किया. इसके अलावा कौन बनेगा करोड़पति और कई बड़े मंचों पर उन्हें सम्मान मिला है.