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फिजिकल हेल्थ- डिप्रेशन की दवा से कार्डियक अरेस्ट का रिस्क 5 गुना बढ़ता जोखिम, डॉक्टर से जानें एंटी डिप्रेसेंट दवाइयां क्यों खतरनाक

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, पूरी दुनिया में लगभग 3.1% लोग एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं खा रहे हैं। इसका मतलब है कि पूरी दुनिया में 25 करोड़ लोग एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं खा रहे हैं। अब हालिया स्टडीज में सामने आ रहा है कि ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ से हो रही मौतों से एंटी-डिप्रेसेंट गोलियों का सीधा कनेक्शन है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, जिन लोगों को कोई कार्डियोवस्कुलर डिजीज है, उन्हें डिप्रेशन का जोखिम ज्यादा होता है। जिन लोगों को डिप्रेशन है, उन्हें अचानक कार्डियक अरेस्ट का जोखिम ज्यादा होता है। अगर कोई एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं भी खा रहा है तो अचानक कार्डियक अरेस्ट का जोखिम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।

इसलिए ‘फिजिकल हेल्थ’ में आज एंटी-डिप्रेसेंट गोलियों की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ क्या है?
  • एंटी-डिप्रेसेंट गोलियों से शरीर को क्या नुकसान हो रहा है?
  • किन साइड इफेक्ट से अचानक कार्डियक डेथ हो रही हैं?

भारत में कितने लोग एंटी-डिप्रेसेंट खा रहे हैं

भारत में दवा कंपनियों और रिटलेर्स के बीच डिस्ट्रिब्यूशन से जुड़ी कंपनी फार्मा रैक के मुताबिक, भारत में मूड में सुधार के लिए और डिप्रेशन में खाई जाने वाली दवाओं की बिक्री में बीते कुछ सालों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। आजकल लोगों के बीच मूड बूस्टर और सेरोटॉनिन रिलीज करने वाली दवाएं बहुत तेजी से पॉपुलर हो रही हैं। लोग इन्हें तनाव, बेचैनी और उदासी से राहत पाने का आसान तरीका मानने लगे हैं।

क्या है ‘सडेन कार्डियक डेथ’

‘सडेन कार्डियक डेथ’ यानी अचानक दिल का रुक जाना। एक बिल्कुल सामान्य, एक्टिव दिखने वाला इंसान, जो अभी तक हंस रहा था, दौड़ रहा था, बात कर रहा था, अचानक उसका दिल धड़कना बंद हो जाता है। यह कोई फिल्मी ड्रामा नहीं है, बल्कि मेडिकल साइंस की सबसे खामोश, लेकिन जानलेवा घटनाओं में से एक है।

एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं से शरीर को क्या नुकसान हो रहा है?

एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं कई बार मेंटल हेल्थ के लिए बहुत जरूरी हो सकती हैं। खासकर तब, जब कोई गंभीर डिप्रेशन से जूझ रहा हो, लेकिन इनका असर सिर्फ दिमाग पर नहीं, पूरे शरीर पर पड़ता है। इसका सबसे ज्यादा असर हमारे नर्वस सिस्टम, हॉर्मोन बैलेंस और दिल की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी पर होता है।

ये दवाएं ब्रेन में सेरोटॉनिन, डोपामिन, नॉरएड्रेनालिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर का लेवल बढ़ाती हैं। इनसे मूड सुधरता है। कोई भी दवा कितनी भी फायदेमंद क्यों न हो, उसके साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। अगर लंबे समय तक कोई भी दवा बिना कंसल्टेंशन के ली जाए तो साइड इफेक्ट और बढ़ जाते हैं। एंटी डिप्रेसेंट के साइड इफेक्ट दूसरी दवाओं से ज्यादा हैं-

एंटी डिप्रेसेंट दवाइयों का ‘सडेन कार्डियक डेथ’ से क्या कनेक्शन

हमारे दिल की धड़कन एक खास रफ्तार और लय में चलती है। ठीक उस तरह, जैसे कोई म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट की बीट- बिल्कुल सटीक, नियमित और तय टाइमिंग पर चलती है। लेकिन कुछ एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं ये लय बिगाड़ सकती हैं।

खासकर-

  • ट्राईसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स (TCAs)
  • सेलेक्टिव सेरोटॉनिन रेप्यूटेक इन्हिबिटर्स (SSRIs)

कौन-सी मेडिकल कंडीशन बनती है?

ये दवाएं दिल की धड़कन को तेज, अनियमित और खतरनाक बना सकती हैं। इन कंडीशन को कहते हैं

इनका मतलब है-

दिल की धड़कन अचानक बेतरतीब हो जाना। कभी बहुत तेज, कभी एकदम धीमा हो जाना। इस कंडीशन में दिल ब्लड पंप करना बंद कर देता है और व्यक्ति कुछ सेकंड्स में ही बेहोश होकर गिर जाता है। अगर तुरंत CPR या मेडिकल मदद न मिले तो मौत हो सकती है।

एंटी डिप्रेसेंट से 5 गुना ज्यादा बढ़ सकता है ‘सडेन कार्डियक डेथ’ का जोखिम

डेनमार्क में डिप्रेशन का सामना कर रहे लोगों को पर एक स्टडी में पता चला कि एंटी-डिप्रेसेंट गोलियां खा रहे लोगों को अचानक कार्डियक डेथ का खतरा दूसरों की अपेक्षा अधिक होता है।

अगर कोई एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं ले रहा है, उसे अचानक कार्डियक डेथ का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है। स्टडी के मुताबिक, जो लोग 1–5 साल तक एंटी-डिप्रेसेंट ले रहे हैं, उन्हें अचानक कार्डियक डेथ का जोखिम 56% अधिक होता है। जो लोग 6 साल या उससे अधिक समय से एंटी-डिप्रेसेंट गोलियां खा रहे हैं, उन्हें SCD का जोखिम 2.2 गुना तक बढ़ जाता है।

इसमें भी सबसे अधिक खतरा 30-39 साल की उम्र के लोगों को है। जो लोग 1–5 साल से एंटी-डिप्रेसेंट ले रहे हैं, उन्हें अचानक कार्डियक डेथ का जोखिम 3 गुना अधिक होता है। जो लोग 6 साल या उससे अधिक समय से एंटी-डिप्रेसेंट गोलियां खा रहे हैं, उन्हें SCD का जोखिम 5 गुना तक बढ़ जाता है।

एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं लेने से जुड़े कॉमन सवाल और जवाब

सवाल: क्या एंटी-डिप्रेसेंट से डिपेंडेंसी या एडिक्शन हो सकता है?

जवाब: एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं नशीली नहीं होती हैं यानी इनसे फिजिकल एडिक्शन नहीं होता है। हालांकि, इन्हें अचानक बंद करने पर डिसकंटीन्यूएशन सिंड्रेम हो सकता है। जिसके कारण चक्कर, बेचैनी, नींद की समस्या जैसे लक्षण हो सकते हैं।

सवाल: एंटी-डिप्रेसेंट का असर होने में कितना समय लगता है?

जवाब: ज्यादातर एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं का असर 2 से 6 सप्ताह में दिखता है क्योंकि इन्हें न्यूरोट्रांसमीटर रीसैप्टर पर काम करने में समय लगता है। यह बदलाव न्यूरोप्लास्टिसिटी यानी मस्तिष्क की अनुकूलन क्षमता के जरिए होता है।

सवाल: क्या डिप्रेशन में एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं जरूरी होती हैं?

जवाब: नहीं, हल्के-फुल्के डिप्रेशन के मामलों में कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी, लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव, एक्सरसाइज और माइंडफुलनेस प्रभावी हो सकते हैं। हालांकि, मॉडरेट से सीवियर डिप्रेशन में एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं जरूरी मानी जाती हैं। खासकर अगर व्यक्ति में सुसाइडल थॉट्स, फंक्शनल इम्पेयरमेंट या नींद-भूख पर बड़ा असर हो रहा है तो ये दवाएं दी जाती हैं।

सवाल: इनके इतने साइड इफेक्ट क्यों होते हैं?

जवाब: एंटी-डिप्रेसेंट मस्तिष्क के अलावा शरीर के दूसरे हिस्सों पर भी असर डालते हैं, क्योंकि सेरोटॉनिन और नॉरएड्रेनालिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर आंत, हार्ट और सेक्सुअल ऑर्गन्स में भी होते हैं। इसलिए कुछ दवाएं गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसकंफर्ट, सेक्सुअल डिसफंक्शन, वेट गेन या हार्ट रेट में बदलाव की वजह बन सकती हैं।

सवाल: क्या बहुत दिन तक एंटी-डिप्रेसेंट खाना नुकसानदायक है?

जवाब: लंबे समय तक एंटी-डिप्रेसेंट खाने से शरीर और मस्तिष्क इन दवाओं के साथ होमियोस्टेटिक एडजस्टमेंट कर लेते हैं। हालांकि, हालिया रिसर्च में पता चला है कि हार्ट हेल्थ प्रभावित होती है। लंबे समय एंटी-डिप्रेसेंट खाने से SCD का रिस्क बढ़ सकता है।

सवाल: क्या एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं से ब्रेन डैमेज होता है?

जवाब: नहीं, साइंटिफिक रिसर्च के मुताबिक एंटी-डिप्रेसेंट मस्तिष्क को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। इसके उलट ये ब्रेन के हिप्पोकैम्पस और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स जैसे हिस्सों में न्यूरोजेनेसिस यानी नई कोशिकाओं का निर्माण को बढ़ा सकती हैं, जो डिप्रेस्ड लोगों में अक्सर कम हो जाती हैं।

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