नवरात्रि पर जरूर करें MP में स्थित इस चमत्कारी मंदिर में माता के दर्शन, दिन में तीन बार बदलते हैं देवी के भाव
हिंदू धर्म में नवरात्रि का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व के लिए लोग सालों भर इंतजार करते हैं। बता दें कि नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा होती है। जिसका शुभारंभ महालया से होता है। इस पर्व का महत्व बंगाल में विशेष रूप से देखने को मिलता है, जहां पूजा का आयोजन सबसे अधिक उत्साह के साथ किया जाता है। दुर्गा पूजा को खास कर पश्चिम बंगाल में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग उनके स्वागत के लिए काफी दिन पहले से ही तैयारी करने लगते हैं। बाजारों में लोगों की काफी ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है।
सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। सड़कों, गलियों को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाकर तैयार कर दिया गया है। शाम होते ही शहर मानो दुल्हन की तरह सजकर तैयार दिखती है। पश्चिमी राज्यों में गरबा की धूम है, तो वहीं पूर्वी राज्यों में ढोल-नगाड़ो पर महिलाओं का पारंपारिक नृत्य…
चमत्कारी मंदिर
हालांकि, आज हम आपको एक ऐसी चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां नवरात्रि पर जाना बेहद शुभ माना जाता है। यह अपनी अनोखी परंपरा और रीति-रिवाजों के लिए जाने जाते हैं। यूं तो यहां सालों भर लोगों की भीड़ एकत्रित होती है, लेकिन यह समय बेहद खास होता है। सुरक्षा की दृष्टि से भारी मात्रा में पुलिस बल तैनात किए जाते हैं। ट्रैफिक रुट बनाएं जाते हैं, ताकि दिक्कतों का सामना ना करना पड़े। इस दौरान इलाके सहित पूरे शहर में रौनक देखने को मिलती है।
मां कालिका मंदिर
दरअसल, हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मां कालिका मंदिर की। यूं तो पूरा बुंदेलखंड इस समय देवी की भक्ति में डूबा हुआ है। वहीं, भटनवारा गांव का नजारा भी इन दिनों कुछ और ही है। यहां स्थित मां कालिका का मंदिर भक्तों की आस्था का ऐसा केंद्र है, जहां हर कोई माथा टेकने के लिए उमड़ रहा है। सतना मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर अमरपाटन मार्ग पर बसा यह मंदिर प्राचीनता और माता की प्रतिमा से जुड़े रहस्यमयी चमत्कारों के लिए भी चर्चाओं में रहता है।
दिन में तीन बार बदलते हैं मां के भाव
मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां विराजी माता को लोग यक्षिणी स्वरूप में मानते हैं। सबसे बड़ी मान्यता यह है कि माता की प्रतिमा दिन में तीन बार अपने भाव बदलती है। सुबह के समय चेहरे पर एक अलग शांति दिखाई देती है, दोपहर में आंखों से तेज इतना प्रचंड हो जाता है कि कोई भक्त सीधे नजरें नहीं मिला पाता और शाम के समय स्वरूप फिर सौम्य हो जाता है। पुजारी कहते हैं कि सूरज की रोशनी के साथ माता का तेज बढ़ता-घटता है। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि भक्त रोजाना इसे महसूस करते हैं।
मां की प्रतिमा से निकला पसीना
इस मंदिर से जुड़ी घटनाएं भी लोगों की आस्था को और गहरा कर दी हैं। बुजुर्ग ग्रामीणों का कहना है कि साल 1974 में प्रतिमा से अचानक पसीना निकलने लगा था। भक्तों ने इसे अपनी आंखों से देखा और पूरा गांव दंग रह गया। इसके अलावा, 12 अप्रैल 2004 की घटना आज भी लोगों को याद है। उस दिन मंदिर में भंडारे का आयोजन हो रहा था। किसी त्रुटि के चलते व्यवस्था बिगड़ी और तभी माता की प्रतिमा का सिर धीरे-धीरे हिलने लगा। जब तक गलती सुधारी नहीं गई, प्रतिमा शांत नहीं हुई। उस घटना के बाद से भक्त इसे माता के जीवित स्वरूप का प्रमाण मानते हैं।
700 साल पुराना इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार, माता की प्रतिमा करीब 700 से 800 साल पुरानी है। कुछ विद्वान इसका संबंध मौर्य काल से भी जोड़ते हैं। उस दौर में भटनवारा परिहार राजवंश की रियासत में आता था और मंदिर का निर्माण भी राजपरिवार ने ही कराया था। कहा जाता है कि प्रतिमा पहले पास की करारी नदी के किनारे मिली थी। चोरों ने इसे चुराने की कोशिश भी की, लेकिन माता का चमत्कार ऐसा हुआ कि वे इसे दूर तक नहीं ले जा सके। बाद में राजा को स्वप्न में आदेश मिला और यहीं भव्य मंदिर की स्थापना की गई।
नवरात्रि में उमड़ती है भीड़
नवरात्रि के दिनों में मंदिर का वातावरण अद्भुत होता है। मां कालिका के जयकारों से पूरा भटनवारा गूंजता है। दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और माता के दरबार में अपनी मनोकामना रखते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां की आस्था का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। हमारी कई मनोकामनाएं माता ने पूरी की हैं। इसीलिए हर साल पूरे परिवार के साथ दर्शन करने आते हैं। भक्त मानते हैं कि मां कालिका के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। चाहे वह संतान सुख की कामना हो या स्वास्थ्य की परेशानी हो… व्यापार में तरक्की की इच्छा हो या फिर कुछ और… मां कालिका सबकी सुनती हैं।
