अनियमितता मिलने पर क्लीनिक सील
काशीपुर। स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे अपंजीकृत एवं मानकों की अनदेखी कर धड़ल्ले से क्लीनिक संचालित हो रहे हैं। विभाग की टीम ने छापा मारा तो एक क्लीनिक में अनियमितताएं पाई गईं। इस पर टीम ने क्लीनिक को सील कर दिया। दस्तावेज पूर्ण करने तक क्लीनिक बंद रखने के निर्देश दिए गए हैं। स्थ्य विभाग की टीम ने शहर में गहलौत क्लीनिक का निरीक्षण किया। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अमरजीत सिंह साहनी ने बताया कि क्लीनिक का यूएमसी पंजीकरण, ग्लोबल पॉल्यूशन, बीएमडब्ल्यू का पंजीकरण पाया गया लेकिन सीईए का पंजीकरण नहीं था जो ऑनलाइन माध्यम से 27 फरवरी 2024 को सीएमओ कार्यालय में आवेदन करना पाया गया लेकिन अधिकृत पंजीकरण नहीं पाया गया। मानकों के विपरीत क्लीनिक में महिलाओं का बांझपन संबंधी इलाज भी होना पाया गया जबकि संबंधित चिकित्सक इसके लिए अधिकृत नहीं है। क्लीनिक में दो कर्मचारी मिले जिन्हें तीन हजार रुपये वेतन देना बताया गया जो कि मानकों के विपरीत है।
क्लीनिक की संचालिका डॉ. माधुरी गहलौत पूर्व में सरकारी अस्पताल रामनगर में 2021 में महिला चिकित्सक के रूप में कार्यरत रहीं। जनवरी से वह गहलौत क्लीनिक संचालित कर रही हैं। टीम ने सीईए का पंजीकरण आने तक क्लीनिक बंद रखने के निर्देश दिए हैं।
काशीपुर। स्वास्थ्य टीम के मुताबिक ओपीडी पर्चे पर डॉ. अरुण चौहान का नाम दर्शाया गया है। लेकिन वह वर्तमान में दिल्ली में कार्यरत हैं। ओपीडी शुल्क 50 रुपये प्रति मरीज लिया जाता है। क्लीनिक में गंदगी मिलने पर पांच हजार रुपये का चालान किया गया। सूत्रों के मुताबिक डॉ. माधुरी ने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर 2019 से संजीवनी अस्पताल में कार्य शुरू किया। इसके बाद रामनगर, बाजपुर में ग्रीन सिटी हॉस्पिटल और न्यू ग्रीन सिटी हॉस्पिटल शुरू किया था। ये अस्पताल भी अनियमितताएं मिलने पर सील कर दिए गए थे।
गहलौत क्लीनिक काशीपुर, की संचालक डॉ. माधुरी गहलौत ने बताया कि डॉ. अमरजीत सिंह साहनी ने टीम के साथ क्लीनिक का निरीक्षण किया। टीम को व्यवस्थाएं ठीक मिलीं। सीईए पंजीकरण के लिए सीएमओ कार्यालय में आवेदन कर रखा था जो प्राप्त हो चुका है।
सीएमओ, ऊधमसिंह नगर, डॉ. मनोज शर्मा ने बताया कि गहलौत क्लीनिक में अनियमितता की जानकारी मिली है। इस कारण सील की कार्रवाई की गई है। दिए गए समय में संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। इस क्लीनिक में बांझपन का इलाज किया जाना भी अनियमितता है क्योंकि नियमानुसार एमबीबीएस डॉक्टर बांझपन का इलाज नहीं कर सकते हैं।