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उत्तराखंड में बारिश की बेरुखी से गिरा झीलों का जलस्‍तर, लेकिन सुधर रही पारिस्थितिकी पढ़ें, खास रिपोर्ट

नैनीताल : Naini Lake: वर्षा की बेरुखी से नैनी झील समेत समीपवर्ती अन्य झीलों के गिरते जलस्तर से भले ही स्थिति चिंताजनक बनी हुई है, मगर सेहत के लिहाज से झीलों की पारिस्थितिकी में लगातार सुधार हो रहा है। इन झीलों में पंतनगर विश्वविद्यालय के मत्स्य विभाग की ओर से किए जा रहे कार्यों और अध्ययनों में संतोषजनक आंकड़े सामने आए है। पूर्व में गिरती जलीय गुणवत्ता के कारण यूट्रोफिक श्रेणी में रखी गई नैनीझील के साथ ही भीमताल, सातताल और नकुचियाताल झील सुधार के बाद मेसोट्राफिक श्रेणी में आ गई है। जिसे और बेहतर करने और झील में जंतु प्लवक और पादप प्लवक की मात्रा नियंत्रित करने के लिए मछलियों की प्रजातियों में संतुलन स्थापित किया जा रहा है। जिससे गुणवत्ता में और सुधार आएगा।

करीब दो दशक पूर्व नैनी झील की जलीय गुणवत्ता बेहद गिर गई थी। झील में आक्सीजन की मात्रा गिरने के कारण मछलियां भी मरने लगी थीं। एरिएशन से किसी तरह स्थिति को नियंत्रण में लाया गया। जिससे झील की सतही स्थिति में तो सुधार आया, मगर गहराई में प्रदूषण कम नहीं हो पाया।

पंतनगर विश्व विद्यालय मत्स्य विभाग के डॉ आशुतोष मिश्रा ने बताया कि 2006 से उनका संस्थान नैनीझील और भीमताल, सातताल, नकुचियाताल की जलीय गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कार्य कर रहा है। बताया कि एरिएशन और झील में मछलियों की प्रजातियों में संतुलन स्थापित कर पादप प्लवक और जंतु प्लवक की मात्रा नियंत्रित की जा रही है। जिससे नैनी झील समेत अन्य झीलों की गुणवत्ता में भी सुधार आ रहा है।

पूर्व में नैनीताल और नकुचियाताल झील यूट्रोफिक श्रेणी में दर्ज थी। साथ ही सातताल झील ओलिगोट्राफिक थी। जिनमें सुधार के बाद अब चारों झीलें मेसोट्राफिक श्रेणी में आ गई है।

डा. आशुतोष मिश्रा ने बताया कि कुछ वर्षों पूर्व तक झील में आक्सीजन का स्तर बेहद गिर गया था। झील के ऊपरी सतह में आक्सीजन की मात्रा दो मिलीग्राम प्रति लीटर पहुंच गई थी। जिससे मछलियां भी मरने लगी थीं। मगर लंबे समय से किए जा रहे परीक्षण में सतह पर आक्सीजन लेवल छह मिलीग्राम प्रति लीटर और झील के भीतर तीन मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई है।

झील के पानी की पारदर्शिता पूर्व में 80 सेंटीमीटर दर्ज की गई तो जो बढ़कर 150 सेमी तक पहुंच गई है। साथ ही पूर्व में झील में नाइट्रेट व फास्फोरस की मात्रा करीब दो मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर दर्ज की गई थी, जो अब गई गुना कम हो गई है। फास्फोरस की मात्रा घटक .3-.4 और नाइट्रेट की मात्रा .4-.5 मिलीग्राम प्रति लीटर पहुंच गई है। जिससे झील में जंतु प्लवक व पादप प्लवक में संतुलन बन रहा है।

डा. आशुतोष ने बताया कि पानी की गुणवत्ता के आधार पर झीलों को यूट्रोफिक, ओलिगोट्राफिक और मेसोट्राफिक श्रेणी में रखा जा सकता है। यूट्रोफिक झील में फास्फोरस व नाइट्रोजन बढ़ने के कारण जैविक उत्पादकता बहुतायत में होती है।

पानी की गुणवत्ता निम्न स्तरीय होने के साथ ही गहराई में आक्सीजन स्तर शून्य रहता है। वहीं, ओलिगोट्राफिक झील में पादक उत्पादकता तो सीमित होती है, मगर पानी साफ होने के बावजूद पोषक तत्वों की कमी बनी रहती है। जिससे ऐसी झीलों में जीवन न्यून रहता है। वहीं मेसोट्राफिक झील मध्यवर्ती उत्पादकता वाली झीले है। जिसमें उगने वाले पादप में पोषण तत्व का स्तर मध्यम रहता है। पानी साफ होने के साथ ही अन्य गुणवत्ता बनी रहती है।

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