जंग लड़ रहे 200 भारतीय रूस से लौटेंगे PM मोदी ने पुतिन को मनाया, भारतीय वहां की फौज में कैसे पहुंचे
8 जुलाई की शाम PM नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सरकारी आवास ‘नोवो-ओगरियोवो’ पहुंचे थे। इस निजी मुलाकात में PM मोदी ने रूसी सेना में शामिल 200 भारतीयों की सुरक्षित वापसी की मांग रखी। मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि इस मांग पर पुतिन राजी हो गए हैं।
दरअसल, 200 से ज्यादा भारतीय रूसी सेना की ओर से यूक्रेन में जंग लड़ रहे हैं। इनमें से 4 इस जंग में जान गंवा चुके हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया के जरिए बाकी बचे भारतीय देश वापस लौटने की गुहार लगा रहे थे। अब PM मोदी और पुतिन की इस मुलाकात के बाद बचे भारतीय युवाओं के देश लौटने की उम्मीद बढ़ गई है।
सवाल-1: रूस में कितने भारतीय नागरिक रूस की तरफ से लड़ रहे हैं?
जवाब: 5 जुलाई को भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि यूक्रेन के खिलाफ रूस की ओर से लड़ने वाले भारतीय नागरिकों की जल्द से जल्द रिहाई को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि PM मोदी की रूस यात्रा के दौरान इस पर चर्चा होने की उम्मीद है।
क्वात्रा ने कहा था कि हमारा अनुमान है कि 30 से 40 भारतीय नागरिक रूस की तरफ से यूक्रेन युद्ध में शामिल हैं। 10 नागरिकों को भारत वापस लाया जा चुका है। हालांकि, अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि भारत के करीब 200 नागरिक रूसी सेना में सिक्योरिटी स्टाफ के तौर पर भर्ती किए गए हैं।
सवाल-2: अब तक भारतीयों को वापस लाने के क्या प्रयास किए गए?
जवाब: बीते कुछ महीनों में भारत ने रूस के सामने ऐसे कई मामलों को उठाया है, जिनमें भारतीयों को अच्छी नौकरी या एजुकेशन का वादा करके रूस ले जाया गया और उन्हें यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए भेज दिया गया।
- 15 मार्च को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, ‘हम रूसी सेना में सहायक स्टाफ के तौर पर काम कर रहे भारतीयों की रिहाई के लिए रूस पर ‘कड़ा दबाव’ डाल रहे हैं।’
- यह बयान तब आया जब भास्कर सहित कुछ प्रमुख मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट्स में बताया कि कई भारतीय धोखे से रूसी सेना की तरफ से यूक्रेन के खिलाफ जंग में उतार दिए गए हैं। 15 मार्च तक ऐसे दो भारतीय अपनी जान गंवा चुके थे। ये लोग थे- हैदराबाद के मोहम्मद असफान और गुजरात के हेमल अश्विनभाई मंगुकिया।
- मंगुकिया की 21 फरवरी को रूस-यूक्रेन सीमा पर एक मिसाइल हमले में मौत हुई थी। इससे पहले 26 फरवरी को विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वह रूसी सेना में कार्यरत भारतीयों की रिहाई की मांग को लेकर प्रयास कर रहा है।
- विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने 12 जून को कहा, ‘हम शुरुआत से ही लगातार रूसी अधिकारियों के साथ इस मामले पर चर्चा कर रहे हैं। हमारे सारे प्रयास इसलिए हैं कि भारतीय रूस में सुरक्षित रहें। हमने रूसी सेना में शामिल सभी भारतीय नागरिकों की रिहाई और भारत वापसी की मांग की है।
- भारत ने मांग की थी कि अब रूसी सेना में भारतीय नागरिकों की किसी भी तरह की भर्ती पर पूरी तरह रोक लगाई जाए। ऐसी गतिविधियां हमारी आपसी साझेदारी के अनुरूप नहीं हैं। 15 जून तक रूसी सेना में शामिल 4 भारतीयों के मारे जाने की खबर आई थी।
- बीते सप्ताह 4 जुलाई को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कजाकिस्तान में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से मुलाकात की और रूसी सेना के लिए जंग लड़ रहे भारतीय नागरिकों का मुद्दा उठाया। जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सालाना शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे थे।
सवाल-3: प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन के बीच सहमति कैसे बनी?
जवाब: PM मोदी 8 और 9 जुलाई को मॉस्को में थे। तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उनकी पहली द्विपक्षीय यात्रा है। इससे पहले वह 2019 में रूस गए थे। मोदी भारत और रूस के बीच 22वें वार्षिक शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता कर रहे हैं। इस दौरान वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, निवेश, ऊर्जा, सहयोग, शिक्षा और संस्कृति जैसे मुद्दों पर बात कर रहे हैं।मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 8 जुलाई को अनौपचारिक बातचीत में पीएम मोदी ने पुतिन के सामने रूसी सेना में काम कर रहे भारतीयों की रिहाई का मुद्दा उठाया था। रूसी सेना में सिक्योरिटी असिस्टेंट के बतौर काम कर रहे लोगों की सर्विस खत्म करने और उनकी वापसी की मांग पर रूस सहमत हो गया है।
रूस के बाद, पीएम मोदी 9 और 10 जुलाई को ऑस्ट्रिया में रहेंगे। यह 41 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली ऑस्ट्रिया यात्रा होगी।
सवाल-4: भारतीयों को नौकरी के लिए रूस किसने भेजा?
जवाब: फरवरी-मार्च में आई मीडिया रिपोर्ट्स में रूसी रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया कि बीते एक साल में लगभग 100 भारतीय रूस गए हैं। BBC की एक खबर के मुताबिक मार्च में कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर से कुल 16 भारतीय नागरिक रूस गए। इन्हें रूस भेजने वाले नेटवर्क में दो एजेंट रूस के थे और दो भारत के…।हमने पड़ताल की तो पता चला कि बाबा व्लॉग्स नाम के एक यूट्यूब चैनल पर रूस से जुड़े कई वीडियोज हैं। इनमें रूस में रोजगार दिलाने का दावा किया गया था। इस चैनल को चलाने वाले का नाम है फैसल खान। बाद में CBI ने फैसल खान को इसी मामले में आरोपी भी बनाया।
खान के चैनल पर कई वीडियो थे, जिनमें बेहतर नौकरी के लिए रूस जैसे देशों में भेजने की प्रक्रिया और खर्च वगैरह के बारे में बताया गया था। वीडियोज के डिस्क्रिप्शन में फैसल के अलावा पूजा और सूफियान नाम के व्यक्तियों के फोन नंबर्स दिए गए थे। हमने इन नंबर्स पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन सभी नंबर बंद आ रहे थे।
फैसल खुद दुबई में रहता है। उसके अलावा राजस्थान का मोइन, तमिलनाडु का पलनीसामी रमेश कुमार भी इस नेटवर्क का हिस्सा हैं। यही नेटवर्क भारतीयों को नौकरी का लालच देकर रूस भेजता था।
सवाल-5: रूस में नौकरी के लिए कितने रुपए लिए गए?
जवाब: फैसल ने यह स्वीकार किया है कि उसने शुरुआत में हर व्यक्ति से 3 लाख रुपए लिए, लेकिन उसमें से खुद सिर्फ 50 हजार रुपए रखे और बाकी रकम रूसी एजेंट्स को भेज दी।एजेंट्स ने वादा किया था कि रूस में हर व्यक्ति को हर महीने एक लाख से लेकर डेढ़ लाख रुपए की सैलरी मिलेगी, बाद में और बढ़ेगी। ट्रेनिंग के दौरान सभी को 40 से 50 हजार रुपए दिए गए। फैसल का कहना था कि आगे और पैसे मिलेंगे।
सवाल-6: रूस भेजने के लिए किस रूट का इस्तेमाल किया गया?
जवाब: फैसल खान के अलावा कुछ और एजेंट्स ने मिलकर कुल 35 लोगों को रूस भेजने का प्लान बनाया था। सबसे पहले, 9 नवंबर 2023 को तीन लोग चेन्नई से शारजाह भेजे गए। वहां से 12 नवंबर को इन्हें रूस की राजधानी मॉस्को ले जाया गया। फैसल खान के लोगों ने इसके बाद 6 और भारतीयों को, फिर कुछ दिन बाद 7 अन्य भारतीयों को रूस पहुंचाया।रूस में नौकरी करने गए कुछ लोगों के नाम भी सामने आए। इनमें हैदराबाद के मोहम्मद अफसान, तेलंगाना के नारायणपेट इलाके के सूफियान, उत्तर प्रदेश के अरबान अहमद, कश्मीर से जहूर अहमद, गुजरात के हेमिल और कर्नाटक के गुलबर्ग के सैय्यद हुसैन, समीर अहमद और अब्दुल नईम शामिल हैं। मोहम्मद अफसान की यूक्रेन रूस की सीमा पर मौत हो चुकी है।
इन सभी से कहा गया था कि उन्हें हेल्पर का काम करना होगा, न कि सेना में सैनिकों की तरह युद्ध लड़ना होगा। इनके घर वालों का कहना है कि रूस पहुंचने के बाद सभी को कुछ दिन की ट्रेनिंग दी गई और फिर 24 दिसंबर 2023 को रूसी सेना में शामिल कर लिया गया।
फैसल खान ने BBC से बात की थी। उसने कहा था कि शुरू में ही सेना में हेल्पर की नौकरी देने की बात बता दी गई थी, ये सामान्य नौकरियां नहीं थीं।
भारतीय मूल के एक रूसी अधिकारी ने द हिंदू को बताया था कि नौकरी करने आने वालों को कॉन्ट्रैक्ट साइन करने से पहले ही बता दिया जाता है कि उनकी नौकरी ‘आर्मी सिक्योरिटी हेल्पर्स’ की है। साथ ही नौकरी के जोखिम के बारे में भी बताया जाता है।
कॉन्ट्रैक्ट में ये भी बताया गया कि 6 महीने से पहले नौकरी में छुट्टी या नौकरी से निकालने का प्रावधान नहीं है। भारतीयों को हर महीने 1 लाख 95 हजार रुपए और एडिशनल बेनिफिट्स के तौर पर 50 हजार रुपए देने की बात भी शामिल थी।
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सवाल-7: क्या हेल्पर की नौकरी बता जंग लड़ने भेज दिया गया?
जवाब: रूस गए भारतीय युवा लंबे वक्त से अपने परिजनों से संपर्क नहीं कर पा रहे थे। कुछ दिनों पहले मदद की गुहार लगाते उनके कुछ वीडियो सामने आए।ऐसे ही एक वीडियो में तेलंगाना के सूफियान, कर्नाटक के सैयद इलियास हुसैन, समीर अहमद कह रहे हैं, ‘हमें सिक्योरिटी हेल्पर के तौर पर काम करने की नौकरी दी गई थी, लेकिन यहां रूसी सेना में शामिल कर लिया गया। रूसी ऑफिसर्स हमें जंग के मोर्चे तक ले आए। हमें जंगल में तैनात कर दिया गया है। बाबा व्लॉग के एजेंट ने हमें धोखा दिया है।’
एक दूसरे वीडियो में उत्तर प्रदेश के अरबाज हुसैन अपने हाथ में लगी चोट दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें जंग के मैदान में भेज दिया गया और वे बड़ी मुश्किल से वहां से बचकर निकले हैं। अरबाज किसी भी तरह उन्हें बचाने की गुहार लगा रहे हैं।
BBC के मुताबिक, ट्रेनिंग शुरू होने के पहले रूसी ऑफिसर्स ने उन सभी से एक बॉन्ड पर साइन करने के लिए कहा था। रूस जाने वाले मोहम्मद अफसान के भाई इमरान के मुताबिक इस बॉन्ड की भाषा रूसी थी। लड़कों को एजेंट पर भरोसा था, इसलिए सभी ने उस पर दस्तखत कर दिए।
फैसल खान का वीडियो व्लॉग देखने के बाद अफसान ने उससे संपर्क किया और रूस चले गए। रूस जाने के बाद इमरान ने आखिरी बार 31 दिसंबर को अफसान से बात की थी। अफसान ने बताया था कि उनको मिल रही ट्रेनिंग अलग है और ऐसा नहीं लगता कि ये ट्रेनिंग हेल्पर के काम के लिए है।
उसके बाद अफसान ने अपने परिवार से कोई संपर्क नहीं किया। घर वालों को भी नहीं पता था कि अफसान कहां और किस स्थिति में हैं।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस पहुंचे भारतीयों को सेना के हथियार और गोला-बारूद के रख-रखाव की ट्रेनिंग दी गई थी और फिर जंग के मोर्चे पर भेज दिया गया।
इमरान के मुताबिक, एजेंट्स से बात की तो वे कहते थे कि ये ट्रेनिंग का हिस्सा है। इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं है। इमरान ने ये भी कहा कि उत्तर प्रदेश से रूस गए एक लड़के के पैर में दो गोलियां लगी थीं।
रूस जाकर फोन का इस्तेमाल करने की भी मनाही थी। तेलंगाना के सैयद सूफियान 16 नवंबर 2023 को रूस गए थे। उससे पहले वह दुबई में काम करते थे। उनकी मां का कहना था कि 18 जनवरी के बाद से उनका अपने बेटे से कोई संपर्क नहीं हो पाया। सूफियान से जब उनकी बात हुई थी तो उसने कहा था कि उसके पास फोन नहीं है।
फैसल खान के मुताबिक, जंग के मैदान में फोन का इस्तेमाल करने में खतरा है। यूक्रेनी सेना सिग्नल ट्रेस करके रूसी सेना की लोकेशन का पता लगा सकती है, इसलिए जंग के दौरान फोन के इस्तेमाल पर रोक है। हफ्ते में सिर्फ एक बार फोन का इस्तेमाल करने को मिलता है।
सवाल-8: भारतीय लोग वैगनर ग्रुप में शामिल किए गए या रूसी सेना में?
जवाब: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रूस पहुंचे भारतीयों को पुतिन की प्राइवेट आर्मी वैगनर में शामिल किया गया था। BBC ने जब फैसल से बात की थी तो उसने दोनों बार अलग-अलग जवाब दिए थे। पहले कहा कि भारतीयों को वैगनर में शामिल किया गया है और बाद में कहा रूसी सेना में शामिल किया गया है।इमरान कहते हैं कि उनके भाई अफसान ने उन्हें रूसी भाषा में लिखे बॉन्ड पेपर की कॉपी भेजी थी। इमरान ने उसका ट्रांसलेशन किया। इसके मुताबिक, भारतीय युवाओं को वैगनर ग्रुप में नहीं बल्कि रूसी सेना में शामिल किया गया था। गौरतलब है कि रूसी सेना में काम करते हुए नेपाल के कम से कम 10 नागरिक भी मारे गए थे। जिसके बाद नेपाल ने अपने नागरिकों को रूस और यूक्रेन में काम करने का परमिट देना बंद कर दिया था।