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गुजारा भत्ता और गुजरे जमाने की राजनीति वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की कलम से

लाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करने के साथ ही देश में कांग्रेस विरोधी सियासत भी शुरू हो गयी है। लेकिन उन लोगों का क्या होगा जो देश में मुस्लिम आबादी बढ़ने से बेहद परेशान नजर आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत किसी भी महिला को गुजरा भत्ता देने की मांग कर सकती है ,इसमें धर्म कहीं भी आड़े नहीं आता।

माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है या नहीं ,ये प्रमाणपत्र देने की जरूरत किसी राजनीतिक दल को नहीं है ,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट किसी राजनितिक दल का अनुषांगिक संगठन नहीं है। ,लेकिन इस बात पर गौर जरूर की जाना चाहिए कि  दस साल सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा इस फैसले के बाद विपक्ष जैसी बयानबाजी कर रही है। भाजपा को एक बार फिर शाहबानो और राजीव गांधी याद आ गए हैं। इस फैसले के बहाने भाजपा एक बार फिर से कांग्रेस से सवाल करने लगी है। वजह सिर्फ एक है कि  भाजपा इस फैसले को अपनी बैशाखी सरकार के खाते में दर्ज करना चाहती है। भाजपा भूल जाती है कि  सुप्रीम कोर्ट के फैसले किसी दल विशेष के फायदे या नुक्सान के लिए नहीं होते। वे व्यक्तियों से जुड़े होते हैं ,खासकर उन व्यक्तियों से जो माननीय अदालत की शरण में खड़े होने का साहस जुटाते हैं।
 भला हो अब्दुल समद की पत्नी  का जो उसने   गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।  तलाकशुदा महिला ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि समद ने उसे तीन तलाक दिया है. फैमिली कोर्ट ने 20 हजार रुपये प्रति महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।  माननीय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने दो अलग-अलग लेकिन एकमत फैसलों में यह बात कही।  जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सिर्फ शादीशुदा महिलाओं पर ही नहीं बल्कि सभी महिलाओं पर लागू होगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले राजनीतिक दलों के लिए ‘ सिलेक्क्टिवह’  हो सकते हैं लेकिन कानून के लिहाज से वे हमेशा उचित माने जाते हैं।  तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के माले में 10  जुलाई का फैसला इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि 1985 में  भी शाहबानो के मामले  सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी पर लागू होती है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।  हालांकि इस फैसले को तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार ने , मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 लाकर  इसे कमजोर कर दिया था  जिसमें कहा गया कि मुस्लिम महिला केवल इद्दत के दौरान (तलाक के 90 दिन बाद) ही गुजारा भत्ता मांग सकती है।
मुझे याद आता है कि  साल 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने 1986 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, लेकिन फैसला सुनाया कि तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने का पुरुष का दायित्व तब तक जारी रहेगा जब तक वह दोबारा शादी नहीं कर लेती या खुद का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हो जाती। बात 34  साल पुरानी है लेकिन गड़े मुर्दे उखाड़ने में दक्ष  भाजपा सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले का भी राजनीतिक लाभ लेने पर आमादा है। भाजपा की मजबूरी भी है कि  वो इस फैसले का राजनीतिक इस्तेमाल करे क्योंकि हाल के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को सिरे से ख़ारिज करते हुए उसे बैशाखियों के सहारे चलने के लिए विवश कर दिया।
सवाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का नहीं है ।  सुप्रीम कोर्ट का फैसला 34  साल पहले के फैसले से भिन्न थोड़े ही है। फैसला  तब भी सही था और आज भी सही है ।  गलत तो ये है कि  मुस्लिमों को देश में दो नंबर का ही नहीं बल्कि संदिग्ध नागरिक मानने वाली भाजपा इस फैसले का सियासी इस्तेमाल कर रही है। भाजपा यदि सचमुच मुसलमानों की हितैषी है तो उसने लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का हौवा खड़ा कर ध्रुवीकरण करने का दुस्साहस क्यों किया ? क्यों नहीं एक भी मुस्लिम को संसद का टिकिट दिया ? क्या आज के केंद्रीय मंत्रिमंडल में मुस्लिम समाज का कोई प्रतिनिधि है ? माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भाजपा को बल्लियों उछलते देख कर मुझे तो हंसी आती है। आपकी आप जानें। क्योंकि मै किसी भी दल के दोहरे चरित्र पर केवल हंसने   का साहस कर सकता हूँ फिर चाहे वो कांग्रेस  हो या भाजपा। कांग्रेस की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986  में जो गलती की उसकी सजा कांग्रेस को  देश की जनता और मुस्लिम समाज दे चुका है। अब कांग्रेस को एक बार से ज्यादा बार कैसे दी जा सकती है ?
देश के अवाम को ये जान लेना चाहिए कईकोर्ट का निर्णय कोर्ट का है किसी सत्तारूढ़ दल का नहीं। इस फैसले में भाजपा की कोई भूमिका नहीं है। इसलिए उसे इस फैसले पर सवाल करने का भी कोई हक नहीं बनता।भाजपा के साथ ही गोदी  मीडिया भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर उसी तरह नुक्ताचीनी कर रहा है जैसा कि  भाजपा कर रही है।इस मामले में क्या कोई ये बता सकता है की तीसरी बार सत्ता में आयी भाजपा ने तलाकशुदा महिलाओं को गुजाराभत्ता देने के लिए क्या कुछ किया ? भाजपा ने तो पिछले दस साल में मुसलमानों के खिलाफ जितना मुमकिन था उतना बुलडोजर संहिता  का इस्तेमाल किया , भारतीय दंड संहिता का नहीं। ।मुस्लिम आरक्षण का विरोध किया। आज भी भाजपा शासित राजयों में मुसलमान निशाने पर है।  भाजपा कभी मुसलमानों की रसोई में झांकती है तो कभी उनके हिजाब को लेकर वितण्डावात खड़ा करती है।
बहरहाल में मुस्लिम समाज की तमाम तलाकशुदा महिलाओं के हक में आये इस फैसले का तहेदिल से इस्तकबाल करता हूँ  और भाजपा को भी इस बात के लिए शुक्रिया अदा करता हूँ कि  उसकी सरकार ने सीआरपीसीमें धारा १२५ बनी रहने दी,अन्यथा उसका क्या ,वो तो आईपीसी को बीएनएस [भारतीय न्याय संहिता ] बना ही चुकी है।

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