Sat. Nov 16th, 2024

गीता उपदेश के अनुसार इन 2 चीजों को हमेशा करना चाहिए स्वीकार, जीवन हो जाता है सफल

हम सभी बचपन से ही श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में सुनते आ रहे हैं। स्कूलों में उसकी किताबें हमें पढ़ाई जाती थी, जिसमें गीता का उपदेश दिया गया है। इन किताबों में हमें महाभारत का पूरा ज्ञान मिला है। इसके अलावा, हमने इस दौरान यह भी पढ़ा था कि भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। दरअसल, उस दौरान उन्होंने कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग के बारे में विस्तार पूर्वक बताया था। बता दें कि अर्जुन अपने परिजनों, गुरुजनों और मित्रों के खिलाफ युद्ध करने के विचार से दुखी और भ्रमित थे। जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन मांगा। तब माधव ने अर्जुन को बताया कि कर्म करना मनुष्य का धर्म है और हमें बिना किसी फल की अपेक्षा के अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। श्रीकृष्ण ने समझाया कि एक क्षत्रिय का धर्म अपने राष्ट्र और न्याय की रक्षा करना है। युद्ध से पीछे हटना कायरता है और यह उसके कर्तव्य का उल्लंघन होगा। अर्जुन की सभी शंकाओं को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने अपना विश्व रूप प्रकट किया, जिससे अर्जुन को पता चला कि सृष्टि के सभी जीव भगवान के ही अंग हैं। इन उपदेशों से अर्जुन की दुविधा दूर हुई और उन्होंने धर्म के मार्ग पर चलते हुए युद्ध लड़ने का संकल्प लिया। जिसके बाद महाभारत का युद्ध 18 दिन चला और पांडवों की जीत के साथ समाप्त हुआ। हालांकि, इस युद्ध में अनेक वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए, जिससे युद्ध का परिणाम बहुत ही विनाशकारी भी रहा। वहीं, गीता उपदेश में बताई गई बातों को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाला हर एक व्यक्ति सच्चा और नेक इंसान बनता है। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको इसमें बताई गई कुछ बातें बताएंगे। आइए जानते हैं विस्तार से…

गीता उपदेश के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि क्रोध के समय खुद पर नियंत्रण रखना और गलती के समय झुकना चाहिए। यह इंसान के संस्कारों की पहचान होती है।

क्रोध

गीता उपदेश के अनुसार, क्रोध और अहंकार से बचना चाहिए। गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि क्रोध मनुष्य के लिए सबसे बड़ा शत्रु है।

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति॥

इसका अर्थ है कि क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से स्मृति का नाश होता है, स्मृति के नाश से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश से व्यक्ति का पतन हो जाता है। इसलिए क्रोध पर नियंत्रण रखना आवश्यक है ताकि हम अपनी बुद्धि और विवेक को बनाए रख सकें।

गलती

भगवान कृष्ण ने अर्जुन को यह भी सिखाया कि गलती करने पर उसे स्वीकार करके सही मार्ग अपनाना चाहिए और अपनी गलतियों से सीखना चाहिए।

अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः॥

इसका अर्थ विनम्रता, क्षमा, सरलता, गुरु के प्रति श्रद्धा, शुद्धता, स्थिरता और आत्म-संयम है। हमें अपने अहंकार को त्याग कर विनम्रता से जीवन जीना चाहिए। गलती स्वीकार करने और विनम्रता से उसे सुधारने से व्यक्ति के चरित्र का विकास होता है और वह सही मार्ग पर चलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *