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महिला बोली- किसी ने छुआ तो बेटा नहीं होगा ओझा के कहने पर सबसे दूरी बनाई; स्वास्थकर्मी पकड़कर ले गए अस्पताल

दमोह में बेटे की चाह में एक परिवार बंदेज नामक अंधविश्वास में उलझ गया। कपल बेटा चाहते थे, ऐसे में वे ओझा (बाबा) के चक्कर में पढ़ गए। बाबा ने बंदेज करते हुए महिला से कहा- अब सबसे दूरी बना लो। यदि किसी बाहरी ने टच किया तो तुम्हें कभी बेटा नहीं होगा।

ओझा की बात मानकर महिला ने खुद को सबसे दूर कर लिया। वह रोजमर्रा के अपने काम तो करती थी, लेकिन न किसी से मिलती न ही कोई उसे छू सकता था। समय पर इलाज नहीं मिल पाने से उसका हीमाग्लोबिन गिरकर 3.6 ग्राम पर आ गया। सीवियर एनीमिया की शिकार हो गई। स्थानीय स्वास्थ्यकर्मियों ने डिलीवरी के एक दिन पहले जैसे-तैसे उसे अस्पताल पहुंचाया, जहां उसे ब्लड चढ़ाकर प्रसव करवाया गया। डॉक्टर का कहना है ऐसे केस में जान जाने का भी खतरा होता है।

6 बेटियों के बाद बेटे की चाह

कृपाल आदिवासी अपनी पत्नी कमलेशरानी आदिवासी के साथ अमझेर गांव में रहता है। इसके पहले पत्नी 6 बार गर्भवती हुई। उसकी चार बेटियां जीवित हैं। एक की मौत हो गई है, जबकि एक का अबॉर्शन हो गया था। जिसका अबॉर्शन हुआ था, वह भी बेटी ही थी। 6 बेटियों के बाद पत्नी 7वीं बार गर्भवती हुई तो दोनों को फिर से बेटे की चाह जाग गई। वे ओझा के पास चले गए।

ओझा ने बंदेज किया और कहा- तुम्हें बाहरी दुनिया से संपर्क खत्म करना होगा, यानी सबसे दूरी। महिला ने उसकी बात मान ली और वैसा किया, इस बंदेज के कारण उसने अपने साथ बच्चे की जान को भी खतरे में डाल दिया।

महिला के बारे में मीटिंग में पता चला

सीबीएमओ उमाशंकर पटेल ने बताया कि 21 तारीख को मडियादो में सेक्टर समिति की बैठक थी। मीटिंग में कुंझा सीएचओ ने बताया कि अमझेर गांव की रहने वाली कमलेशरानी आदिवासी (38) प्रेग्नेंट है और उसका 9वां महीना चल रहा है। वह 7वीं बार प्रेग्नेंट है। महिला हाई पर रिस्क है, उसे सीवियर एनीमिया है। हालत बहुत खराब है। इस घटना को गंभीरता से लिया गया।

अगले दिन सोमवार को सिविल अस्पताल से पीसीएम देवेंद्र सिंह और अंतरा फाउंडेशन से धीरेंद्र जी को भेजा गया। उन्हें कहा गया कि आप गांव जाकर महिला को किसी भी तरह से सिविल अस्पताल या जिला अस्पताल में भर्ती करवाइए। टीम गांव पहुंची और महिला और उसके पति की काउंसिलिंग की।

पहले तो महिला ने अस्पताल में भर्ती होने से मना कर दिया, लेकिन समझाइश और दोनों को जान का खतरा बताने पर वह तैयार हो गई। टीम उसे लेकर जिला अस्पताल पहुंची। सबसे पहले उसे ब्लड चढ़ाया गया। अगले दिन उसने बेटे को जन्म दिया। जिसका वजन 3 किलोग्राम है।

महिला बोली- बंदेज में हूं, कहीं नहीं जाऊंगी

आशा सुपरवाइजर मनीषा अहिरवार ने बताया कि गांववाले आज भी रूढ़ीवादी प्रथा को बहुत मानते हैं। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। बंदेज प्रथा के कारण कई बार बहुत समस्या आती है। कमलेशरानी पति कृपाल आदिवासी भी इनमें से एक हैं। वह प्रेग्नेंट हुई तो हमने उसे स्वास्थ्य केंद्र आकर जांच करवाने और दवाई लेने को कहा।

महिला का हीमोग्लोबिन पहले से ही कम था। वह एनीमिया से पीड़ित थी। जब भी हम घर जाते तो महिला और परिजन कहते- हमने बंदेज करवाया है। हम कहीं नहीं जाएंगे, आप बार-बार घर आकर हमें परेशान मत करिए।

महिला का कहना था कि यदि वह सेंटर गई और किसी ने छू लिया तो फिर से लड़की हो जाएगी। मुझे इस बार लड़की नहीं लड़का चाहिए। मेरा बंधेज है। मैं किसी से नहीं मिलूंगी, कोई मुझे नहीं छुए।

कई गांवों में आज भी अंधविश्वास फैला है

सीबीएमओ उमाशंकर पटेल ने बताया, मडियादो के आसपास के कई आदिवासी बाहुल्य गांव में इस तरह का अंधविश्वास फैला हुआ है, जिसे खत्म करना बहुत आवश्यक है। एक टीम बनाएंगे और ग्रामीणों की काउंसिलिंग करेंगे। उन्हें भरोसा दिलाएंगे कि अंधविश्वास से बेटा-बेटी पैदा नहीं होते हैं।

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