बता दें कि संग्रामपुर के जरौटा निवासी पत्रकार मधुसूदन मिश्रा की बुजुर्ग मां की अचानक सांस फूलने लगी, जिसके बाद उन्हें अमेठी सीएचसी ले जाया गया. जहां पर न तो कोई डॉक्टर था और न कोई फार्मासिस्ट था. सीएचसी अधीक्षक को सूचना दी गई. आधे घंटे बाद डॉक्टर देवेश आए और इलाज करने के बजाय तुरंत अस्पताल परिसर में स्थित अपने आवास पर चले गए.कुछ देर बाद वो आए और बिना किसी जांच परीक्षण के उन्होंने मरीज को रेफर कर दिया. इधर, मां की बिगड़ती तबियत को देखते हुए मधुसूदन तत्काल निजी वाहन से मुंशीगंज के इस प्राइवेट अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. मधुसूदन का कहना है कि अगर सीएचसी में डॉक्टर मौजूद होते और समय से इलाज हो जाता तो मां जिंदा होतीं.
अब सवाल खड़ा होता है कि आखिर स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी इस पर क्या कार्रवाई करेंगे? या फिर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे और ऐसी ही लापरवाही लोगों की जान लेती रहेगी? आखिर जिम्मेदार किस काम का वेतन लेते हैं? इस पूरे मामले की जांच कर जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि आगे चलकर किसी और जान गंवानी न पड़े.