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स्पेशल ओलंपिक ने मुझे स्वावलम्बी बनाया और आजादी भी दी- साहिल सिंह

नई दिल्ली। डाउंस सिंड्रोम से पीड़ित 23 साल के साहिल सिंह वलर्ड डाउन सिंड्रोम डे 2020 पर डाउन सिंड्रोम इंटरनेशनल द्वारा एक स्पीकर (सेफ्ट एडवोकेट) के तौर पर हिस्सा लेने के लिए जेनेवा आमंत्रित किए गए थे। साहिल के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। छोटी सी उमर में साहिल लगातार इस तरह के इंटरनेशनल इवेंट्स और फोरम्स में हिस्सा लेते रहे हैं।

साहिल ने 2015 में पहली बार इस सिलसिले की शुरुआत की थी। साहिल ने उस साल चेन्नई में आयोजित 12वें वलर्ड़ डाउन सिंड्रोम कांग्रेस में हिस्सा लिया था। इस इवेंट में ही साहिल को पहली बार डाउन सिंड्रोम से पीड़ित कुछ अन्य लोगों से मिलने और उनसे काफी कुछ सीखने का मौका मिला था।

इसके बाद साहिल ने खुद को एक ग्रोइंग लीडर के तौर पर पेश किया और कई इवेंट्स में हिस्सा लिया। साहिल को 2019 में नई दिल्ली में आयोजित एथलीट लीडरशिप यूनिवर्सिटी प्रोग्राम के लिए बुलाया गया। इसके बाद साहिल ने नेशनल यूथ समिट 2019 में हिस्सा लिया और फिर जनवरी 2020 में नई दिल्ली में आयोजित यूथ एक्टीवेशन समिट का हिस्सा बने। एनएनएफ फंडेड यूनीफाइड स्पोटर्स एक्टीविचीज ने साहिल के व्यक्तित्व को एक नई ऊंचाई दी।

साहिल को सितम्बर 2019 में चंडीगढ़ में आयोजित इंटरनेशनल डाउन सिंड्रोम कांफ्रेंस में एक शानदार सफलता हाथ लगी। इस इवेंट के माडरेटर साहिल ने कीनोट एड्रेस के लिए सिंगापुर की पेडियाट्रिक मेडिसीन की मशहूर डाक्टर भवानी श्रीराम को स्टेज पर बुलाया और उनके साथ सेशन की अगुवाई की। साथ ही सेशन के अंतर में साहिल ने डाक्टर श्रीराम को सम्मानित भी किया।

साहिल और उनके परिजनों के लिए ये तमाम उपलब्धियां अनापेक्षित थीं क्योंकि साहिल की हालत यह थी कि वह चार साल की उमर तक सिर्फ चार शब्द बोल पाते थे। आमतौर पर बच्चे 6 से 9 महीने में बोलना शुरू कर देते हैं लेकिन साहिल ने अपना पहला शब्द दो साल में बोला था।

साहिल बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। वह एक अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ खेलों में काफी अच्छे हैं। शुरआती दिनों की अपनी कोच पूनम और फिर बाद में मोहम्मद एयाज की देखरेख में साहिल ने अनापेक्षित सफलता हासिल करते हुए एथलेटिक्स, तैराकी, क्रिकेट, बास्केटबाल और साफ्टबाल में कई पदक और सर्टिफिकेट हासिल किए।

साहिल की खासियत यह है कि वह डिस्ट्रीक, स्टेट, नेशनल और इंटरनेशल स्तर पर खेले हैं। यही नहीं, साहिल के ने एनआईओएस के द्वारा योगा का छह महीने का सर्टिफिकेट कोर्स भी किया है।

साहिल ने इंटरनेशनल स्तर पर दिसम्बर 2013 में आस्ट्रेलिया के न्यूकैसल में आयोजित स्पेशल ओलंपिक्स एशिया पैसेफिक रीजनल गेम्स में हिस्सा लिया। यहां साहिल ने एक्वेटिक्स 50 मीटर फ्री स्टाइल में रजत पदक जीता और 25 मीटर फ्रीस्टाइल इवेंट में चौथा स्थान हासिल किया।

अभी साहिल अपने स्कूल में स्पेशल ओलंपिक्स एवं योगा के सहायक कोच हैं।

किसी नियिमत दिन साहिल को अपने पालतू कुत्ते व्हीस्की को सुब-सुबह वाक पर ले जाना अच्छा लगता है। इसके अलावा वह अपने स्कूल जाते हैं और फिर क्रिकेट अकादमी का दौरा करते हैं। अंत में साहिल जिम जाना नहीं भूलते। साहिल ने अपनी काबिलियत और इच्छाशक्ति के दम पर खुद के अंदर अपना ध्यान रखने की शक्ति विकसित कर ली है।

साहिल को लेकर उनकी मां, जो कि लखनऊ में एक महिला रोक विशेषज्ञ हैं, कोई चिंता नहीं करतीं। उल्टे उन्हें साहिस पर गर्व है। साहिल की मां डाक्टर भावना एम. सिह कहती हैं कि जब वह अकेला होता है तब वह ज्यादा सहज होता है।

साहिल को भी अपने दम पर रहना अच्छा लगता है और वह मानते हैं कि स्पेशल ओलंपिक्स ने उन्हें इस काबिल बनने में काफी हद तक मदद की है। साहिल ने कहा-, मुझे आजादी पसंद है। और यही कारण है कि मुझे स्पेशल ओलंपिक्स पसंद है। मैंने कई दोस्त बनाए हैं। मैं क्रिकेट अकादमी खोलना चाहता हूं। मैं वहां भी कई दोस्त बनाना चाहता हूं।–

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