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आदिवासियों के दमन और अत्याचार में सबसे ऊपर मध्य प्रदेश, आदिवासी वोटबैंक को लुभाने की कवायद के बीच आयी NCRB रिपोर्ट

भोपाल। आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अत्याचार और अपराध के मसले पर एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट ने शिवराज सरकार के आदिवासियों को लुभाने के सारे प्रयासों की पोल खोलकर रख दी है। इस सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक देश में आदिवासियों पर सबसे अधिक अत्याचार मध्य प्रदेश में होता है। जबकि आदिवासियों को सुविधा देने के मामले में भी मध्य प्रदेश सबसे फिसड्डी राज्य है।

एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक 2020 में मध्य प्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ हुए अत्याचार के कुल 2401 मामले दर्ज किए गए। जो कि 2019 के आंकड़ों की तुलना में 25 फीसदी ज्यादा रहे। 2019 में प्रदेशभर में आदिवासियों के खिलाफ अपराध के 1922 मामले दर्ज किए गए थे। वहीं 2018 में कम से कम 1868 और 2017 में 2289 आदिवासी अत्याचार की रिपोर्ट्स दर्ज की गयीं।

देश की कुल आदिवासी आबादी का 14 फीसदी से ज्यादा हिस्सा मध्य प्रदेश का है, जोकि प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 21 फीसदी है। लेकिन इतनी बड़ी तादाद में होने के बावजूद उनकी ताकत बेहद कम है। पूरे देश के मुकाबले एमपी के आदिवासी सबसे ज्यादा अत्याचार के शिकार हैं।  कोरोनाकाल के दौरान आदिवासियों के खिलाफ दमन में पहले से कहीं ज्यादा वृद्धि देखने को मिली है।।

एनसीआरबी की इस रिपोर्ट पर विपक्ष अब शिवराज सरकार पर हमलावर हो गया है। पूर्व सीएम कमल नाथ ने एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट को लेकर कहा है कि यह महज़ रिपोर्ट नहीं है बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के 16 वर्षों के कार्यकाल का रिपोर्टकार्ड है। कमल नाथ ने कहा कि बीजेपी के कार्यकाल के दौरान आदिवासियों, दलितों, महिलाओं और वंचितों पर अत्याचार बढ़े हैं, बीजेपी सरकार में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, उनके भीतर से कानून का डर चला गया है।

आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के मामलों को लेकर शिवराज सरकार अपनी जवाबदेही मानने को तैयार नहीं है। रिपोर्ट के इतर शिवराज सरकार में नंबर दो के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि आंकड़े से यह पता चलता है कि पुलिस हर मामले को दर्ज करती है और हर व्यक्ति को प्रदेश में न्याय मिलता है।

जय आदिवासी युवा संगठन के प्रवक्ता आनंद राय ने कहा कि राज्य सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि प्रदेश के आदिवासी खतरे में हैं। लेकिन एनसीआरबी के इस आंकड़े ने सारी पोल खोलकर रख दी है। प्रदेश का आदिवासी आज खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है।

अत्याचार के अलावा मध्य प्रदेश के आदिवासी सुविधाओं के मामले में पीछे हैं। केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में 2067 उपस्वास्थ्य केंद्र, 467 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 101 सामुदायिक केंद्रों की कमी है। इतना ही नहीं हाल ही में नीति आयोग की एक रिपोर्ट भी सामने आई है, जिसमें मध्य प्रदेश की ढाई करोड़ की आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन पर मजबूर है। गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन गुजार रहे लोगों में सबसे अधिक आदिवासी ही हैं।

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