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सीटों का बंटवारा कहीं नहीं हुआ; कांग्रेस और लोजपा दोनोें ने गठबंधन छोड़ने के संकेत दिए

सीटों के सवाल पर राजग और महागठबंधन में ‘बंधन’ से अधिक ‘गांठें’ पड़ रहीं हैं। दोस्ती का दंभ भरने वाली पार्टियां बुरी तरह उलझ गईं है। हम और रालोसपा ने महागठबंधन से नाता तोड़ा नया रिश्ता जोड़ा तो आज भाकपा-माले ने भी एकतरफा 30 सीटों का ऐलान कर संकेत दे दिया कि अब वह ‘एकला चलो’ की राह ही पकड़ेगी।

कांग्रेस भी आंखें तरेर रही है और सीटों की उसकी डिमांड पूरी नहीं हुई तो वह भी महागठबंधन से इतर राह पकड़ेगी। दिल्ली में कांग्रेस नेताओं के तल्ख बयान से यही धुन निकल रही है। उधर, राजग गठबंधन में लोजपा के तेवर नरम नहीं हुए हैं।

पार्टी ने हालांकि खुलेआम भाजपा-जदयू से अलग होने की विधिवत घोषणा अभी नहीं की है, लेकिन दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के बयान का आशय साफ है, मनचाही सीटें नहीं मिलीं तो उनकी राह अलग होगी। माले की तरह लोजपा भी अकेले मैदान में होगी। कभी राजग बनाम महागठबंधन के बीच सीधे मुकाबले का चुनावी तस्वीर पहले चरण के नामांकन के एक दिन पहले पूरी तरह पलट गई है। ताजा घटनाक्रम चुनाव को बहुकोणीय बनाते दिख रहे हैं। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं है। 2015 के विधानसभा चुनाव के पूर्व भी ऐसी ही नौबत आई थी। तब गठबंधनों का स्वरूप अलग था।

लोजपा की अधिक सीटों की दावेदारी भाजपा ने मान ली थी और उसे 42 सीटें मिली थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी राजद-कांग्रेस के बीच ऐसी ही खटास पैदा हुई थी। कांग्रेस तब 12 सीटों का दावा कर रही थी और लेकिन उसे 9 सीटों पर समझौता करना पड़ा।

एवज में मिलने वाली राज्य सभा की एक सीट भी उसे नहीं मिली। यही आधार है कि जदयू के अलग होने के बाद खाली हुई 101 सीटों में से वह अधिकतम अपने हिस्से चाहती है।

पार्टी मां के समान है और इससे ऊपर कुछ भी नहीं

लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग ने कहा हम हर परिस्थिति के लिए तैयार हैं। उन्होंने चेताया कोई यह सोचता है कि हमें दबा देगा या अस्तित्व को मिटा देगा तो गलतफहमी में है। हम किसी सूरत में पार्टी हित से समझौता नहीं करने वाले। पार्टी हमारे लिए मां के समान है और पार्टी हित से ऊपर किसी व्यक्ति का कोई हित नहीं। अपने पिता की बातों को याद करवाते हुए चिराग ने कहा कि पापा हमेशा कहते रहे हैं कि सबसे ऊपर राष्ट्र और उसके बाद पार्टी तब व्यक्तिगत हित। ऐसे में लोजपा के हर कार्यकर्ता के लिए अपने व्यक्तिगत हित से ऊपर पार्टी का हित है।

राजद के दबाव में कांग्रेस नहीं, अलग लड़ सकती है

कांग्रेस और राजद के बीच सीट शेयरिंग का मामला अब नाजुक मोड़ पर पहुंच गया है। गोहिल ने बिहार चुनाव से जुड़े सभी केन्द्रीय नेताओं समेत बिहार कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं के बाद कहा महा गठबंधन में अगर कुछ ऊपर नीचे होता है तो हम भी अन्य दल के साथ मिलकर अलग लड़ने को तैयार हैं। इस चुनाव में उतरने के लिए पूरे दम खम के हमारे नेता तैयार हैं। गोहिल ने साफ कहा है कि हमारे साथ अलग-अलग दल हैं जो शुरू से हमारे साथ चलने को तैयार हैं। अगर दबाव बनाने की हम पर कोई कोशिश करता है तो हम बिल्कुल दबाव में नहीं आयेंगे और अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे।

भाकपा माले ने 30 सीटों की पहली सूची जारी की

राजद ने भाकपा माले को महागठबंधन में 20 सीट नहीं दी, तो माले ने 30 सीटों की पहली सूची बुधवार को जारी कर दी। भाकपा माले ने राजद को दो टूक कह दिया – संघर्ष और आधार वाली सीट नहीं छोड़ सकते। विधानसभा की पहली सूची में पटना के फुलवारीशरीफ, पालीगंज, मसौढ़ी व भोजपुर में संदेश और जगदीशपुर शामिल हैं। भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि एनडीए के खिलाफ विपक्ष की कारगर एकता नहीं होना दुखद होगा। अब भी राजद संघर्ष वाली सीट दे तो संपूर्ण तालमेल हो सकता है। फिलहाल अब मुकाबला तो करना ही है।

राजग पर असर… लोजपा को मौका, भाजपा को नुकसान नहीं

  • 1.लोजपा पर: फरवरी 2005 में लोजपा ने अकेले 29 सीटें जीती। अब अवसर सीटें बढ़ाने व चुनौती अपने बूते उन्हें जीतने का है।
  • 2.जदयू पर : लोजपा गठबंधन में अपना वोट ट्रांसफर करा लेती है। अलग होने पर पार्टी प्रत्याशिायों के वोट घटेंगे।
  • 3.भाजपा पर: भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी भी नहीं उतारने का ऐलान कर रखा है। संदेश साफ भाजपा को लोजपा के जाने से नुकसान नहीं होगा।

महागठबंधन पर असर… राजद, कांग्रेस दोनों को ही नुकसान

  • 1.राजद पर: बड़े भाई की भूमिका निभाने में असफल रहने का आरोप झेलना होगा। सीटें कम हुई तो राजद को ही जिम्मेदार।
  • 2.कांग्रेस पर : कांग्रेस, सीटों के सवाल पर गठबंधन तोड़ती है तो उसे एक बड़े वोट बैंक सपोर्ट से भी हाथ धोना पड़ेगा।
  • 3.भाकपा-माले पर: अलग होने से भी उसे कोई घाटा नहीं होगा। आधा दर्जन से अधिक सीटों पर वह अकेले जीतती रही है।

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