हिमालयी क्षेत्र में हैं आजीविका की काफी संभावना
अल्मोड़ा। आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में राजभाषा कार्यान्वयन समिति, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान द्वारा भारतीय हिमालयी पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारक एवं प्रबंधन विषय पर दो दिवसीय आनलाइन राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन हो गया है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि बढ़ती वनाग्नि की घटनाओं, ग्लेशियरों पर बढ़ रहे दबाव और जैव विविधिता में कमी के कारण हिमालयी पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है जो कि जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है। उन्होंने इस पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में आजीविका की काफी संभावना हैं। ईको जैविक कृषि, परंपरागत उत्पाद, संस्कृति, बागवानी, व्यवस्थित पर्यटन से हिमालयी पर्यावरण संरक्षण के साथ ही रोजगार संवर्धन भी होगा।
सीएसआईआर हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर, (हिमाचल प्रदेश) के निदेशक डॉ. संजय कुमार ने हिमालयी जैव संपदा से उद्यमिता सृजन: चुनौतियां और अवसर शीर्षक पर व्याख्यान दिया। उन्होंने उनके संस्थान द्वारा किए हिंग, केसर, जंगली गेंदा, कुटकी, मोक फ्रूट, फल और फूलों से निकाले गए रंग, विभिन्न जैव विविधता आधारित औषधि और आजीविका के साधनों आदि के बारे में जानकारी दी। जीबी पंत पर्यावरण संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल ने बताया कि भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में हो रहे विभिन्न विकासात्मक कार्यों को राजभाषा हिंदी के माध्यम से जन-मानस तक पहुंचाया जा रहा है।
असम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आरएम पंत ने कहा कि ईको जैविक कृषि, परम्परागत उत्पाद, संस्कृति, बागवानी, टूरिज्म को आजीविका संवर्धन से जोड़कर रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। व्यवस्थित टूरिज्म को बढ़ावा देना होगा। दिवेचा जलवायु परिवर्तन केंद्र, भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर के वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुलकर्णी के ‘गर्म जलवायु में हिमालय की बर्फ और हिमनद’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने हिमनद की भारतीय हिमालय क्षेत्र में स्थिति, उनके पिघलने के कारकों वनाग्नि, तापमान में वृद्धि की जानकारी दी।
कार्यशाला में भारतीय हिमालयी क्षेत्रों के विभिन्न विषय विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने ग्लेशियर, भूगर्भ जल, मृदा की गुणवत्ता, जैव विविधता, वन पारिस्थितिकी, जलवायु परिवर्तन, आजीविका आदि विषयों पर विचार साझा किए। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक इं. किरीट कुमार, डॉ. जीसीएस नेगी, डॉ. जेसी. कुनियाल, डॉ. के. चंद्रशेखर और डा. वसुधा अग्निहोत्री ने विभिन्न सत्रों का संचालन किया। कार्यशाला में संस्थान की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की डॉ. वसुधा अग्निहोत्री, इं. आशुतोष तिवारी, डॉ. शैलजा पुनेठा, डॉ. कपिल केसरवानी, डॉ. सुबोध ऐरी, महेश सती, डॉ. सतीश चंद्र आर्य आदि मौजूद रहे।