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उत्तराखंड के पांच जिलों का दुग्ध उत्पादन घटा, देहरादून, हरिद्वार व ऊधम सिंह नगर में सबसे अधिक गिरावट

हल्द्वानी : प्रदेश के पांच जिलों में दुग्ध उत्पादन पांच से लेकर 47 प्रतिशत तक घट गया है। पहले भूसे की उपलब्धता न होने से दुधारू पशुओं के भोजन में दिक्कत शुरू हुई तो बाद में लंपी स्किन डिजीज ने उनकी दूध देने की क्षमता घटा दी। जिसका सबसे अधिक खामियाजा देहरादून, हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर के दुग्ध उत्पादकों को उठाना पड़ रहा है

साल 2021 में उत्तराखंड दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में 17 फीसदी ग्रोथ के साथ आगे बढ़ा था, लेकिन साल जाते-जाते प्रदेश में भूसे की भारी कमी के चलते दूध उत्पादन में भारी गिरावट आने लगी। राज्य में भूसे की कमी को दूर करने के लिए सरकार की तरफ से कुछ कड़े फैसले भी लिए गए और दूसरे राज्यों से भी बातचीत की गई। स्थिति में कुछ सुधार आ ही रहा था कि लंपी स्किन डिजीज ने दुधारू पशुओं को चपेट में लेना शुरू कर दिया

पशुपालन विभाग के मुताबिक देहरादून और हरिद्वार में लंपी स्किन डिजीज वायरस के तकरीबन 18 हजार मामले पंजीकृत किए गए। इससे संक्रमित पशुओं की मृत्यु हो गई या ठीक होने के बाद उनकी दूध देने की क्षमता कम हो गई। जिसका असर यह हु़आ कि पिछले वर्ष की तुलना में देहरादून में 47 प्रतिशत, हरिद्वार में 18 प्रतिशत, ऊधम सिंह नगर में 11 प्रतिशत, अल्मोड़ा में छह प्रतिशत व बागेश्वर जिले में पांच प्रतिशत दुग्ध उत्पादन कम हो गया है।

औसत                दुग्ध             उत्पादन

जिला                 वर्ष 2021      वर्ष 2022

देहरादून             15385         8184

हरिद्वार               9461           7738

ऊधम सिंह नगर   44517         39624

अल्मोड़ा              10172         9519

बागेश्वर                 758            719

नैनीताल               90432         93925

 

पिथौरागढ़            5607            5783

चंपावत               13100          13483

उत्तरकाशी           840              840

टिहरी                  428              553

पौड़ी                    2862           3067

रुद्रप्रयाग              226              238

चमोली                 1769           1937

नोट: दूध की मात्रा प्रति लीटर में दी गई है।

भूसे की कालाबाजारी पर अंकुश न लग पाने के कारण दाम इतने बढ़ गए हैं कि शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों के पशुपालकों को मवेशियों के लिए चारा भी नहीं मिल रहा। बाजारों में इन दिनों 1200 से लेकर 1400 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भूसा मिल रहा है। एक वर्ष पहले यही कीमत 500 से 700 रुपये के बीच थी।

 

डेरी फेडरेशन के निदेशक संजय खेतवाल के मुताबिक दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए सरकार की ओर सस्ते में चारा उपलब्ध कराने समेत विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। साथ ही पशुपालकों से दूध खरीदे जाने में भी अलग से प्रोत्साहन राशि दी जा रही है।

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