नवोदय पर्वतीय कला केंद्र में तरासे जा रहे छलिया नर्तक
पिथौरागढ़। नवोदय पर्वतीय कला केंद्र में उत्तराखंड के बहुचर्चित छलिया नृत्य के लिए नए छलिया नर्तकों को तराशा जा रहा है। केंद्र में नवयुवक कलाकारों को छलिया नृत्य के साथ ही रंग, राग, वाद्य एवं मूर्ति का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद सभी प्रशिक्षित कलाकारों को एक मंच पर लाकर छलिया नृत्य का मंचन किया जाएगा।
केंद्र के निदेशक हेमराज बिष्ट ने बताया कि युद्ध प्रसंग, रण यात्राओं में शामिल रहने वाले वाद्ययंत्र वर्तमान में सामाजिक या धार्मिक उत्सवों पर अपने क्रियाकलापों को विभिन्न रूपों में उजागर कर वीर, शृंगार, रौद्र, करुण आदि रसों से अभिभूत करते रहते हैं। उन्होंने बताया कि ढोल, दमुवा, तुतुरी, झाली, विणै, अलगोजा, हुड़का, थाल, डमरु, ढोलकी, मुरयो, रणसिंघा, मशकबीन वाद्य यंत्रों के साथ छलिया नृत्य पर्वतीय समाज में रचाबसा प्रसिद्ध लोकनृत्य है।
इस लोक नृत्य का वर्णन नाट्यशास्त्र और अशोक मल्ल के नृत्याध्याय में भी मिलता है। हजारों लोक कलाकार छलिया नृत्य से आजीविका चला रहे हैं। इसको देखते हुए युवाओं को भी इस लोक कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण में इंद्र प्रसाद, भीम राम कोहली, रमेश लाल, भूपाल सिरौला, जीवन पंत, नितिन चौहान, कैलाश पुनेठा, भुवन जोशी, रोहित कार्की, भवानी बिष्ट, माया पंत, पूजा बोरा, भूपेंद्र सिंह, प्रेमा ऐरी, पूजा बिष्ट सहयोग दे रहे हैं