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उजाला सिग्नस ब्राइटस्टार हॉस्पिटल, मुरादाबाद ने पल्मोनरी हाइपरटेंशन, लीवर डैमेज, सेप्सिस से ग्रसित 58 वर्षीय COPD मरीज की जान बचाई

मुरादाबाद: उजाला सिग्नस ब्राइटस्टार हॉस्पिटल, मुरादाबाद के डॉक्टरों ने पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस से प्रभावित 58 वर्षीय COPD से पीड़ित महिला की जान बचाई है। पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस की वजह से महिला का फेफड़ा क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके अलावा उसका ह्रदय भी काफी प्रभावित हो गया था। इस केस में टीबी का इलाज न होने से COPD हुआ था। COPD से फिर OSA हो गया। और फिर जाकर  पल्मोनरी आर्टरी हाइपरटेंशन (PAH) हो गया। PAH की वजह से महिला के ह्रदय को नुकसान हुआ। इस बीमारी का डायग्नोसिस डॉ. दीपक शर्मा (MBBS, DNB कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजिस्ट) और उनकी योग्य टीम के द्वारा किया गया। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) एक क्रॉनिक इंफ्लेमेटरी लंग डिजीज है। इस बीमारी से पीड़ित होने पर फेफड़े में हवा सही से नहीं जा पाती है।

COPD से पीड़ित होने के अलावा महिला ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) से भी पीड़ित थी। यही नहीं महिला डायबिटीज मेलिटस और हाइपरटेंशन और कोलेलिथियसिस, और एक्यूट लीवर फेलियर से भी ग्रसित थी। इन सब बीमारियों की वजह से यह केस काफी गंभीर बन गया था। महिला का पीएएसपी (पल्मोनरी आर्टरी सिस्टोलिक प्रेशर) 50 एमएमएचजी से ज्यादा हो गया था। सामान्य पीएएसपी 25 mmHg से कम होता है।

इलाज के दौरान महिला डायबिटीज मेलिटस, हाइपरटेंशन, कोलेलिथियसिस (पित्त की पथरी), कोलेडोकोलिथियसिस (सामान्य पित्त नली में पित्त पथरी), b/1 प्लयूरल एफ्युजन (ऊतकों के बीच तरल पदार्थ का निर्माण जो फेफड़ों और छाती में होता है) को भी ठीक किया गया इसके अलावा सेप्सिस, और एक्यूट लिवर फेलियर और लीनव  एंजाइम (1,000 से ज्यादा) का भी समाधान किया गया।

डॉ दीपक शर्मा ने इस केस के बारे में बताते हुए कहा, “महिला को कई सारी बीमारियाँ थी इसलिए यह एक दुर्लभ और गंभीर केस हो गया था। लीवर भी  काफी डैमेज हो गया था इसलिए चिंता बढ़ गयी थी। इलाज के दौरान हमने इंटरमिटेंट BiPap और रातोंरात BiPap सपोर्ट दिया। दवाओं या फार्माकोथेरेपी के साथ इंसेंटिव स्पिरोमेट्री और चेस्ट फिजियोथेरेपी के अलावा महिलाको लॉन्ग टर्म ऑक्सीजन थेरेपी, जिसे एलटीओटी भी कहा जाता है, भी की गयी।”

पीड़ित महिला को शुरू में नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन (एनआईवी) या BiPap सपोर्ट पर रखा गया। पीएएच (पल्मोनरी आर्टरी सिस्टोलिक प्रेशर) को सामान्य बनाने के लिए इको (इकोकार्डियोग्राफी) की गयी। सेप्सिस को एंटीबायोटिक से मैनेज किया गया। डॉ. दीपक के अनुसार मरीज अब पूरी तरह से ठीक हो गयी है। हालांकि डायबिटीज और हाइपरटेंशन एंटीबायोटिक दवाओं और CO2 नार्कोसिस के के कारण इलाज लम्बा चलेगा।

डॉ दीपक शर्मा ने आगे कहा, “पीड़िता अब अच्छे से उबर रही है। वर्तमान में वह ओपीडी फॉलो-अप पर है। वह ओवरनाइट डोमिसिलरी बायपैप सपोर्ट और एलटीओटी पर है। घर पर दवाओं के सेवन से उसकी स्थिति में और सुधार होने की उम्मीद है। ऐसे केस में हम NIV/BiPap सपोर्ट को समय पर शुरू करने को ज्यादा तवज्जो देते हैं। पल्मोनरी हाइपरटेंशन से सावधानीपूर्वक निपटने के साथ-साथ सेप्सिस की जल्दी रोकथाम भी इस केस में काफी जरूरी थी। ऐसे मरीजों को आगे कोई समस्या न हो इसके लिए समय पर कंसल्टेशन प्राप्त करना चाहिए।”

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