रेस्टोरेंट में काम किया, शादी-फंक्शन में डीजे बजाया:आज बना गिनीज बुक में दर्ज होने वाला इंडिया का पहला टैटू आर्टिस्ट
पापा दिल्ली में सिक्योरिटी गार्ड के सुपरवाइजर की नौकरी करते थे, घर बमुश्किल चल पाता था। आर्थिक हालत ऐसे थे कि पढ़ाई करने के लिए मैं 10वीं बोर्ड एग्जाम खत्म होने के अगले दिन से ही सड़कों पर, रेस्टोरेंट में काम करने लगा।
16-17 साल की उम्र रही होगी, पहली नौकरी पर्चा बांटने से शुरू की थी। मुझे प्रतिदिन के 100 रुपए मिलते थे। फिर रेस्टोरेंट में कई सालों तक पढ़ाई के साथ-साथ काम करता रहा, बाद में पार्टी-फंक्शन में जाकर डीजे भी बजाने लगा।
मैं लोकेश वर्मा, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शुमार इंडिया का पहला टैटू आर्टिस्ट हूं। मेरी गिनती वर्ल्ड के टॉप-10 टैटू आर्टिस्ट में होती है। इस वक्त इंडिया में तीन और यूरोप के लक्जमबर्ग में एक टैटू स्टूडियो है।
मेरे लिए दिल्ली की एक मिडिल क्लास फैमिली में पैदा होकर यूरोप तक पहुंचने का सपना देखना आसान नहीं था।
फिर भी मैंने दिल्ली की तंग गलियों से यूरोप तक का सफर तय किया, अपनी अलग पहचान बनाई, नाम कमाया। हर चुनौतियों को बतौर अवसर लिया, जिसकी बदौलत मैं यहां तक पहुंचा।
पापा आर्मी से रिटायर्ड हैं, लेकिन वो लो रैंक पर थे। सैलरी इतनी भी नहीं कि घर-परिवार का बेहतर तरीके से गुजर-बसर हो सके।
पापा अपनी नौकरी के दौरान अहमदाबाद पोस्टेड थे, यहां के अहमदाबाद मिलिट्री हॉस्पिटल में पैदा हुआ। सामान्य बच्चों की तरह मेरी भी परवरिश होने लगी, मां बच्चों को पढ़ाने का काम करती थीं, लेकिन मेरी देखरेख के लिए उन्होंने वो काम भी छोड़ दिया।
पापा आर्मी में थे, इसलिए सेंट्रल स्कूल में आसानी से एडमिशन हो गया। जब बड़ा हुआ तो पता चला कि हम एक्स्ट्रा खर्च नहीं कर सकते हैं। बाहर कहीं रेस्टोरेंट में जाकर खाना भी नहीं खा सकते हैं। जो घर पर मम्मी बनातीं, हमलोग वही खाना खाते।
ये 1990 के आस-पास की बात है। जब मुझे पता चला कि घर में पैसे की काफी दिक्कतें हैं। पापा भी तब तक रिटायर हो चुके थे। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही सिक्योरिटी गार्ड के सुपरवाइजर की नौकरी करनी शुरू कर दी थी।
स्कूल की पढ़ाई भी खत्म नहीं हुई थी, मुझे अपना खर्च, किताब-कॉपी के पैसे भी निकाल पाना मुश्किल हो रहा था। इसके बाद मैंने काम करने का फैसला किया। बमुश्किल 17 साल की उम्र रही होगी मेरी।
पहली नौकरी स्कूल-कॉलेज के बाहर पर्चे बांटने की थी। मैं हर रोज दोपहर में सड़क किनारे खड़े होकर पर्चे बांटता, बदले में मुझे 100 रुपए मिलते थे।
12वीं में एडमिशन ले चुका था। मुझे लगा कि इस कमाई से न घर का खर्च चल सकता है और न अपना। मैंने रेस्टोरेंट्स में काम करने का फैसला किया। दिल्ली के कई रेस्टोरेंट्स के चक्कर लगाने लगा, लेकिन काम नहीं मिला।
आखिर में मुझे मैकडोनल्डस (मैक डी) की एक यूनिट में काम मिल गया। यहां ट्रेनिंग के दौरान रोस्टर के मुताबिक झाड़ू-पोछा से लेकर टॉयलेट तक साफ करना होता था। मैंने भी सभी काम को किया।
दरअसल, उस वक्त मुझे पैसों की सबसे ज्यादा जरूरत थी। इसलिए जो भी काम मिलता था, मैं करने के लिए तैयार रहता।
रेस्टोरेंट में काम करने के साथ ही मैंने B Com के बाद MBA कर लिया, लेकिन कहीं भी नौकरी नहीं मिली। एक दोस्त के कहने पर DJ का काम शुरू कर दिया। पार्टी-फंक्शन में DJ बजाने जाता था। बचपन से ही मुझे स्केचिंग का भी शौक था, कई तरह के पोर्ट्रेट बनाता।
एक रोज दिल्ली में ही मैं DJ बजाने के लिए गया था, यहां एक व्यक्ति ने अपनी बांह पर टैटू बनवा रखा था। जिसके बाद मैंने भी टैटू में अपना करियर आजमाने की ठानी।
मैंने सेविंग के कुछ पैसे बचाकर रखे थे, उससे मशीनें खरीदीं और अपने ऊपर ही टैटू बनाना शुरू कर दिया। फिर पापा को टैटू बनाया। दोस्तों को जब पता चला, तो वो भी टैटू बनवाने लगे। फिर मैं जबरदस्ती दोस्त और उनके फ्रेंड्स को पकड़-पकड़कर टैटू बनाने लगा।
दोस्तों पर, अपने ऊपर प्रैक्टिस कर-करके मैंने टैटू बनाना सीखा, खुद का टीचर खुद ही था। इसलिए कोई गलती और डर की गुंजाइश नहीं थी।
टैटू बनाने के बदले पैसे तो नहीं मिलते थे, लेकिन टैटू बनाना धीरे-धीरे सीख गया। दिल्ली के वसंत विहार इलाके में एक सैलून की दुकान चलती थी, उसके एक हिस्से में छोटा सा कमरा था, जिसमें मैंने टैटू बनाने का स्टूडियो सेटअप किया था।
आज मेरे यूरोप के लक्ज़मबर्ग में टैटू स्टूडियो हैं, यहां मैंने अपना कारोबार इसलिए शुरू किया क्योंकि इस लोकेशन से कई देशों की सीमाएं बहुत नजदीक हैं।
कभी मेरे घर में बिजली नहीं होती थी, हैंडपम्प से पानी भरना पड़ता था। पापा को रिटायर होने के बावजूद नौकरी करनी पड़ी थी। आज मेरे पास सब कुछ है। कभी रेस्टोरेंट में काम करने के दौरान मुझे महीने के 3 हजार रुपए मिलते थे, आज टैटू बनाने का प्रति घंटे के हिसाब से करीब 15 हजार रुपए चार्ज करता हूं।