विधानसभा उपचुनाव:नए साल में विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उपचुनावों में होगी गहलोत सरकार की कड़ी परीक्षा

निकाय, पंचायत चुनावों के बाद नए साल में दो सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस सरकार की असल परीक्षा होगी। कैबिनेट मंत्री मास्टर भंवर लाल मेघवाल व विधायक कैलाश चंद्र त्रिवेदी के निधन के बाद कांग्रेस के कब्जे वाली ये दोनों से सीटें खाली हो चुकी हैं।
मेघवाल सुजानगढ़ व त्रिवेदी सहाड़ा सीट से विधायक थे। इससे पहले पिछले साल मंडावा व खींवसर सीट पर उपचुनाव हो चुके हैं। उपचुनाव से पहले ये दोनों सीटें पहले भाजपा व उसके सहयोगी दल आरएलपी के कब्जे वाली थीं। उपचुनाव के बाद इनमें से मंडावा सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। जबकि खींवसर सीट फिर से आरएलपी के खाते में चली गई। दोनों सीटों के उपचुनाव के नतीजे प्रदेश में आगे का पाॅलिटिकल नरेटिव और परशेप्शन तय करेंगे।
अब आने वाले उपचुनावों में कांग्रेस पर अपना गढ़ बचाने का दबाव होगा। वह भी ऐसे वक्त में जब वह साल के आखिर उसे पांच राज्यों में हुए चुनावों में भाजपा के सामन उसे करारी हार का सामना करना पड़ा है। नियमानुसार सीट खाली होने के छह माह के भीतर उपचुनाव करवाने होते हैं।
त्रिवेदी का निधन 6 अक्टूबर को व मेघवाल का देहावसान 16 नवंबर को हो गया। यदि दोनों सीटों पर एक साथ उपचुनाव करवाए जाते हैं तो छह महीने की समयावधि को ध्यान में रखते हुए अप्रैल तक चुनाव संपन्न करवाने होंगे।
देशभर में मिल रही जीत को राज्य में भुना पाएगी भाजपा!
भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी राज्य विधानसभा के दाेनाें ही उपचुनाव एक बड़ी चुनाैती के ताैर पर है। देश भर में भाजपा की जीत हाे रही हैं, लेकिन क्या राजस्थान में उस जीत काे पार्टी जारी रख पाएगी। खासताैर पर तब, जब पार्टी के भीतर गुटबाजी चरम पर है। पार्टी जब तक गुटबाजी से नहीं उबरेगी, तब तक उपचुनाव में जीत का स्वाद चखना भाजपा के लिए मुश्किल है। ऐसे में यह देखना राेचक हाेगा कि भाजपा नेतृत्व की ओर से दाेनाें ही उपचुनाव में कितना दमखम दिखाया जाता है।
उप चुनावों से पहले इन चुनौतियों से भी निपटना होगा
विधानसभा उपचुनावों से पहले गहलोत सरकार को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना होगा। राजनीतिक नियुक्तियों से लेकर मंत्रिमंडल फेरबदल व संगठन में नई नियुक्तियों के फैसले भी लेने होंगे। प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों व प्रदेश कांग्रेस कमेटी की नई टीम को लेकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढ़ती जा रही है।
बिहार चुनाव व यूपी, एमपी, कर्नाटक, गुजरात में उपचुनावों में कांग्रेस पहले ही हार का सामना कर चुकी है। इसके लिए जमीनी स्तर पर कांग्रेस के संगठन की शून्यता को जिम्मेदार बताया है। राजस्थान में भी पिछले 4 माह से पीसीसी की नई टीम का ऐलान नहीं हो सका है। इसी बीच यहां पंचायत व निगम चुनाव भी हो चुके हैं। लेकिन विधानसभा उपचुनावों से पहले कांग्रेस को संगठन में तैनाती करनी ही होगी।