राजनीतिक नियुक्तियां:बड़ा सवाल : जब प्रदेश की आय 30 फीसदी से ज्यादा गिर चुकी है तो राज्य सरकार कैसे कर सकेगी नियुक्तियों पर करोड़ों रुपए खर्च
राजस्थान कांग्रेस संगठन में नियुक्तियों का रास्ता साफ होते ही सियासी नजरें राजनीतिक नियुक्तियों पर टिक गई हैं। लंबे समय से गहलोत सरकार के विधायक इस इंतजार में हैं कि राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए उन्हें मंत्री का दर्जा मिल जाएगा। ऐसे विधायकों की तादाद कम नहीं है जो अपने लिए राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए मंत्री का दर्जा हासिल करना चाहते हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि कोरोना संकट काल में सरकार राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने को क्या तैयार है।
कोरोना संकट के बाद सरकार की आर्थिक स्थिति चरमरा चुकी है। ऐसे में जब राज्य की आय में ही 30 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है क्या सरकार विधायकों की सहुलियत के लिए गाड़ी, बंगला और स्टॉफ की सुविधाओं का खर्च उठा पाएगी। गत वसुंधरा सरकार में जब संसदीय सचिव बनाए गए थे तब भी वित्त विभाग ने इन पर होने वाले खर्च का आकलन किया था।
सरकार की मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए इस बात की संभावना बहुत कम है कि वह बड़ी संख्या में राजनीतिक नियुक्तियां करे। दरअसल वित्त विभाग मौजूदा समय में हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है। भले ही गहलोत अपने कैंप के सभी विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियों का तौहफा देना चाहें तो भी प्रदेश के आर्थिक हालात उन्हें इसकी इजाजत नहीं देंगे। वैसे भी राज्य सरकार की ओर से कम खर्च करने पर जाेर दिया जा रहा है। वाहनाें के खरीद पर पहले ही राेक लगाने के लिए सकुर्लर जारी हाे चुका है।
एक दर्जा प्राप्त मंत्री के लिए लाखों का खर्च
यदि सरकार विधायकों को कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री या उपमंत्री का दर्जा देती है तो इसके लिए उसे जेब से करोड़ों रुपए खर्चने होंगे। इनमें मंत्री का दर्जा देने पर वेतन और सत्कार भत्ते के रूप में करीब 80 हजार रुपए, राज्य मंत्री के लिए 76 हजार रुपए व उपमंत्री के लिए 70 हजार रुपए देने होंगे। इनके अलावा एक वाहन, निशुल्क चिकित्सा सुविधा, ए क्लास की सुविधा वाला यात्रा भत्ता, दैनिक भत्ता जो प्रतिदिन 1 हजार रुपए राज्य में तथा 1250 रुपए राज्य के बाहर होने पर लागू होता है। इसके अलावा फ्री टेलीफोन सुविधा। यदि बंगला नहीं दिया जाता है तो मासिक आवास भत्ता।
मंत्रियों ने नहीं दिया संपत्ति का ब्योरा
पिछली वसुंधरा सरकार में पांच साल तक मंत्रियों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया। अब गहलोत सरकार के मंत्री भी उसी राह पर चल पड़े हैं। विधानसभा चुनावों में शपथ पत्र पर संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने के बाद अब 2 साल गुजर चुके हैं लेकिन किसी भी मंत्री ने अब तक अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया है। जबकि केंद्र सरकार मंत्री हर साल अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करते हैं। हर साल 31 अगस्त तक संपत्तियों का ब्यौरा देना होता है, लेकिन राज्य सरकार के एक भी मंत्री ने अपनी संपत्ति की सूचना सार्वजनिक नहीं किया है।