जल का उपयोग संरक्षण से अधिक होना भविष्य के लिए खतरा
अल्मोड़ा। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के भूमि और जल संसाधन प्रबंधन केंद्र, ईआईएसीपी केंद्र की ओर से विश्व जल दिवस के तहत बिसरा में हुई गोष्ठी में भूमिगत जल की उपयोगिता बताई गई। वक्ताओं ने कहा कि आज जल का दोहन जल संरक्षण से काफी अधिक हो रहा है जो गंभीर चिंताजनक है। इससे पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों का अस्तित्व खतरे में है।
केंद्र समन्वयक वैज्ञानिक महेंद्र सिंह लोधी ने शुभारंभ करते हुए कहा कि बारिश में कमी और समय में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, वृक्षों का अत्यधिक कटाव, गैर वैज्ञानिक तरीकों से पानी का दोहन, भूजल स्तर में कमी, वर्षा के पानी के संकलन में कमियां, अपशिष्ट जल प्रबंधन की कमियों से विश्व में जल की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है। उन्होंने भूमि गत जल की महत्ता और पर्यावरणीय आधारित जीवन शैली के बारे में जानकारी दी। वैभव गोसावी ने जल स्रोतों के पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यांकन और प्रबंधन के माध्यम से हिमालय में जल सुरक्षा परियोजना के बारे में बताया। वैज्ञानिक डॉ. वसुधा अग्निहोत्री ने पूर्व में जल संरक्षित करने, वर्तमान में जल संरक्षित करने के तरीके बताए। आशुतोष तिवारी ने भूमिगत जल स्रोतों के आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि स्रोतों के आसपास स्वच्छता का ध्यान नहीं रखने पर पेयजल दूषित हो सकता है। कार्यक्रम में कमल किशोर टम्टा, विजय सिंह बिष्ट, संस्थान के शोधार्थी और ग्रामीण मौजूद रहे