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उत्तराखंड, असम, हिमाचल के 45 गांव बनेंगे क्लाइमेट स्मार्ट विलेज

अल्मोड़ा। सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय दृष्टि से पिछड़े हिमालयी राज्यों के गांवों को समृद्ध बनाने की पहल शुरू हुई है। इन राज्यों के गांवों को क्लाइमेट स्मार्ट विलेज (जलवायु अनुकूल गांवों) के रूप में विकसित किया जाएगा। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिकों ने इसकी कवायद शुरू कर दी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक पहले चरण में तीन हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, असम और हिमाचल प्रदेश के 45 गांवों को इसके लिए चयनित किया गया है। वहां अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन के कारणों का पता लगाकर इसे नियंत्रित करने के उपाय खोजकर इन गांवों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचाया जा सके।

वैज्ञानिकों की सर्वे के मुताबिक हिमालयी राज्यों के गांवों में प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते उपजे सूखे, चक्रवात, बाढ़, ओलावृष्टि, गर्मी, ठंड के कारण ग्रामीण इन गांवों से पलायन कर रहे हैं और ये वीरान हो रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए अब जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान इन गांवों में अनियमित जलवायु परिवर्तन, पारंपरिक कृषि को छोड़ने के साथ ही सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के कारणों का पता लगाकर इन्हें जलवायु अनुकूलन गांव के रूप में विकसित करेगा। इन गांवों की पारंपरिक फसलों, प्राकृतिक जल स्रोतों सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों को सहेजकर इनका ग्रामीणों की आजीविका के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाएगा। यह कार्य क्लस्टर के रूप में होगा।

अल्मोड़ा। वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमालयी राज्यों के गांवों में जलवायु परिवर्तन के कारण यहां उपलब्ध पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों, पारंपरिक खेती से किनारा कर आजीविका के लिए पलायन करने के लिए मजबूर हैं। इन गांवों में उपलब्ध पर्याप्त जल स्रोतों, जड़ी-बूटियों सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर रोजगार से जोड़ा जाएगा। आधुनिक तकनीकों का सहारा लेकर स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों को रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाएंगे जिससे गांवों से पलायन थमेगा।

देश के हिमालयी राज्यों के गांवों को क्लाइमेट स्मार्ट विलेज के रूप में विकसित किया जाएगा। इन गांवों में हो रहे अनियमित जलवायु परिवर्तन के कारणों का पता लगाकर इसे नियंत्रित करने के उपाय खोजे जाएंगे। पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से इसका समाधान कर यहां की प्राकृतिक संपदाओं से ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। – डॉ. सुनील नौटियाल, निदेशक, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल, अल्मोड़ा।

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