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जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना जरूरी : हेम पांडे

अल्मोड़ा। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ। इसमें वैज्ञानिकों ने कहा कि आज पर्यावरण असंतुलन विश्व की बड़ी चिंता बन गया है। ऐसे में सभी संस्थानों को इससे होने वाले नुकसान को कम करने के उपाय खोजने होंगे।

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए केंद्र सरकार के पूर्व सचिव हेम पांडे ने कहा कि हिमालयी राज्यों के सात हजार गांवों को जलवायु अनुकूलन गांव बनाया जा रहा है। पर्यावरण असंतुलन से जल स्रोत सूख रहे हैं। ऐसे में जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए सभी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं को आपस में मिलकर कार्य करना होगा।

इसी क्रम में डाॅ. पीसी तिवारी ने कहा कि हिमालयी राज्यों में पर्यावरण संतुलन के लिए काम करने की जरूरत है। इसके लिए जंगलों का विकास करना होगा। शिक्षा विभाग, पंचायती राज्य, वन पंचायतों आदि को आपस में जोड़ कर इसके लिए कार्य करना होगा। डॉ. संजीव भच्चर और महेंद्र लोधी ने हिंदू कुश हिमालय में जल धाराओं की उपस्थिति, उपयोगिता बताई।

संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल ने कहा कि संस्थान जलवायु परिवर्तन के कारणों का पता लगाने के साथ ही इसके प्रभावों को कम करने की दिशा में काम कर रहा है, जिसमें सफलता मिलेगी। यहां डाॅ. आरके मैखुरी, डाॅ. रमा मैखुरी, डाॅ. जॉन वॉरबर्टम, डाॅ. राजेंद्र कोत्रू, डाॅ. शेखर घिमिरे, डाॅ. नवीन जुयाल आदि मौजूद रहे।

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