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आसमान पर टिकी बागवानों की निगाहें, बारिश-बर्फबारी का इंतजार; बागीचों में नहीं शुरू हो पा रही चिलिंग प्रक्रिया

शिमला। शिमला जिला में बागवानों की नजरें आसमान पर टिकी हुई है। शिमला में जिला के बागीचों में सेब व अन्य फलों के पौधों में चिलिंग प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। ऐसे में बागवानों को बारिश बर्फबारी का इंतजार है। बागवानी विशेषज्ञ का कहना है कि पौधों में चिलिंग प्रक्रिया के शुरू होने के लिए औसतन तापमान सात डिग्री से नीचे होना चाहिए। राजधानी शिमला सहित जिला के अन्य क्षेत्रों में सुबह और शाम के समय तो तापमान 7 डिग्री से नीचे आ गया हैं, लेकिन दिन के समय तापमान अभी भी 15 से 16 डिग्री के बीच में हैं। यहीं कारण है कि सेब व अन्य फलों के पौधो में चिलिंग प्रक्रिया शुरू नहीं होने पाई है। अगर आने वाले दिनों में बारिश बर्फबारी होती है तो फिर तापमान में गिरावट आ सकती है। तापमान में गिरावट के बाद ही पौधों में चिलिंग प्रक्रिया शुरू होगी। बागवानी विशेषज्ञ डॉ एसपी भारद्वाज का कहना है कि चिलिंग प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही पौधा सुप्तावस्था यानि डोरमेसी में जाता है। पौधे और फल के उचित विकास के लिए पौधे का सुप्तावस्था में जाना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि सेब की रॉयल किस्म के लिए 800 से एक हजार चिलिंग ऑवर की जरूरत होती हैं, जबकि अर्ली वैराइटी के पौधों के लिए 600 से 800 चिलिंग ऑवर का होना जरूरी है।

इसके अलावा स्टोन फ्रूट के लिए इससे भी कम चिलिंग ऑवर की आवश्यकता होती है। चैरी के लिए 500 चिलिंग ऑवर, आडू के लिए 300 से 400 और खुमानी और प्लम के लिए इससे भी कम चिलिंग ऑवर की आवश्कता रहती है।

बागवानी विशेषज्ञ डॉ एसपी भारद्वाज ने बागवानों को सलाह दी है कि बागीचों में अभी चूने के लेप को लगाने के अलावा कोई कार्य नहीं करे। सुबह और शाम के समय जहां वातावरण में ठंड है, तो वहीं दिन के समय तेज धूप पड़ रही है। इससे पौधों के तनो की चमड़ी फटने का डर है। पौधों की चमड़ी फटने से सेब के पौधों में कैंकर जैसी बीमारियों के फैलने की संभावना रहती है। ऐसे में पौधों के तनो में चूने का लेप लगाना अनिवार्य है।

शिमला जिला में कई बागवानों ने सेब के पौधों में प्रूनिंग का कार्य शुरू कर दिया है। बागवानी विशेषज्ञ का कहना है कि अभी प्रूनिंग के लिए सही समय नहीं है। अभी प्रूनिंग करने पौधों के जख्म नहीं भर पाएंगे। इससे पौधों का विकास प्रभावित होगा।

वहीं आने वाले सीजन में सेब की फसल पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। प्रूनिंग यानि कांटछांट के लिए फरवरी सही समय है। इस दौरान पौधों सेप यानि रस संचार शुरू हो जाता है। इस दौरान पौधों के जख्म आसानी से भरते हैं तो वहीं पौधें का विकास भी सही तरीके से होता है

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