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कोई शौक पाल लीजिए, मेमोरी लॉस, एंग्जायटी, डिप्रेशन सब ठीक होगा

फेमस एक्ट्रेस काजोल मेंटल हेल्थ पर काफी मुखर होकर बात करती हैं। वह सोशल मीडिया और पैपराजी को इसके लिए जिम्मेदार भी बता चुकी हैं। हाल ही में कार के पीछे वाली सीट पर बैठकर बुनाई करते हुए उनकी एक फोटो वायरल हुई है। डॉक्टर्स मानते हैं कि अच्छी मेंटल हेल्थ के लिए यह बहुत प्रभावी होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के मुताबिक दुनिया का हर चौथा शख्स जिंदगी में एक बार मेंटल इलनेस का सामना करता है। मौजूदा वक्त में 35 करोड़ लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। WHO के आंकड़ों के मुताबिक मलेरिया से हर साल 6 लाख 19 हजार लोगों की मौत होती है। जबकि 7 लाख लोग खुद ही आपनी जान ले रहे हैं। इसके पीछे मेंटल इलनेस बड़ी वजह है।

बीमारों की फौज खड़ी है

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक स्टडी के मुताबिक तो हर दूसरा शख्स कभी-न-कभी दिमागी बीमारी से जूझता है। यानी हमारे आसपास दिमागी रूप से बीमार लोगों की बड़ी फौज है। चूंकि भारत में इसे लेकर जागरुकता इतनी कम है कि हम कई बार खुद की मेंटल इलनेस को इग्नोर कर आगे बढ़ जाते हैं।

दादी-नानी इसलिए रहती थीं मेंटली फिट

बचपन में मां का बनाया स्वेटर ज्यादातर लोगों ने पहना होगा। यह एक कला थी जिसके जरिए रिश्ते भी मजबूती से बुने जाते थे। घर के काम से फुर्सत पाकर दादी-नानी नई-नई डिजाइन के स्वेटर बुनती थीं। इससे उन्हें खुशी और सुकून मिलता था। भले ही हमारे पूर्वजों को नहीं पता था, लेकिन इसके पीछे बड़ा साइंस है। कई मेडिकल स्टडीज बताती हैं कि मेंटल फिटनेस के लिए बुनाई या कोई भी पसंदीदा काम करना शानदार तरीका है। इसकी सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें कोई अतिरिक्त खर्च नहीं आता है।

पसंदीदा काम से सुधरती मानसिक सेहत

पसंदीदा काम करने से मेंटल हेल्थ में सुधार होता है। कढ़ाई-बुनाई करना मजेदार शौक है। इसमें आपकी क्रिएटिविटी को खूब स्पेस मिलता है। आप अपनों के लिए कुछ अच्छा बुनकर रिश्तों में गहराई ला सकते हैं। आपकी मेंटल हेल्थ को जो फायदे मिलेंगे वह खास है। यह एंग्जायटी, स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसी स्थितियों में बेहद कारगर है।

डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों को पसंदीदा काम करके काफी राहत मिलती है। जब आप कुछ ऐसा करते हैं जिसमें आपको आनंद आता है, कुछ क्रिएटिव होता है तो बॉडी सेरोटोनिन और डोपामाइन रिलीज करता है। ये दोनों हॉर्मोन डिप्रेशन से उबरने में मदद करते हैं। द ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी की एक स्टडी के मुताबिक डिप्रेशन से जूझ रहे 80% उत्तरदाताओं को क्रॉचिंग/बुनाई के बाद अधिक खुशी महसूस हुई।

स्ट्रेस से मिलता आराम

स्ट्रेस से नई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। इसके चलते कई बार हार्ट फेल्योर और माइग्रेन की दिक्कतें सामने आई हैं। दिमाग को स्ट्रेस से राहत देने के लिए कढ़ाई-बुनाई बेहद लाभकारी है। असल में इस दौरान आपका पूरा ध्यान अपने हाथों की गति पर केंद्रित होता है। बार-बार एक ही तरह से हाथ चल रहे होते हैं। यह प्रक्रिया दिमाग को व्यस्त करके शरीर को राहत देती है।

अनिद्रा की समस्या दूर होती है

दिनभर का काम करके थकने के बाद भी नींद नहीं आना तकलीफदेह है। द ब्रिटिश जर्नल की एक स्टडी के मुताबिक कढ़ाई-बुनाई करने से यह समस्या दूर हो जाती है। आपको हाथों का बार-बार एक ही तरह की आवृत्ति में रहना एक विशेष ध्यान में ले जाता है। इसके बाद आपको अच्छी और सुकून भरी नींद आती है।

एकाग्रता से दें एंग्जायटी को मात

मनपसंद काम करने से एकाग्रता बढ़ती है, जो आपकी एंग्जायटी को कम कर सकता है। इस दौरान आपका ध्यान हर उस चीज से हट जाता है, जिसके कारण आपको एंग्जायटी घेरती है। एंग्जायटी महसूस होने पर आप बुनाई की सुइयां ही लेकर बैठ सकते हैं। इससे आप राहत महसूस करेंगे।

मेमोरी पॉवर होती मजबूत

द ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी के मुताबिक कढ़ाई या बुनाई जैसे शाैक आपके मस्तिष्क को सक्रिय रखते हैं। इससे डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसे गंभीर बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है। मायो क्लिनिक की एक स्टडी के मुताबिक बुनाई से डिमेंशिया को 50% तक कम किया जा सकता है।

आत्मविश्वास बढ़ता है

बुनाई या कढ़ाई को पूरा करने पर आपको एक उपलब्धि का एहसास होता है, संतुष्टि महसूस होती है। क्योंकि आप इस दौरान कुछ नया रच रहे होते हैं। इसके बाद आपकी आर्ट को जो सराहना मिलती है उससे आपको सुखद अनुभूति मिलती है। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता है।

कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे अकेलापन बड़ा कारण होता है। आप यह बुनाई-कढ़ाई किसी अपने के लिए कर रहे होते हैं। इससे आप उनके और नजदीक जा पाते हैं। अपने मन की बातें कह पाते हैं, यह अकेलापन दूर करने में मददगार होता है। इसके लिए कई ग्रुप एक्टिविटची भी होती हैं, आप उनमें भी हिस्सा ले सकते हैं।

क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कैसे करते हैं इलाज?

लखनऊ के मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र की असिस्टेंट साइकोलॉजिस्ट नीरा सिंह कहती हैं कि सबसे पहले तो हमें ये समझना होगा कि मेंटली बीमार लोग पागल नहीं होते हैं। वे कोई अजीब हरकत कर रहे लोग नहीं होते हैं, जिससे आप उनकी दिमागी बीमारी का स्वरूप या स्टेज पहचान सकें। इसके लिए क्लिनिकल साइकोलॉजी में कुछ तकनीक हैं जिनसे इनकी पहचान की जाती है।

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