राजस्थान गहलोत की विशेष सत्र बुलाने की मांग पर राज्यपाल ने कहा- आपके पास बहुमत है तो फिर सत्र की क्या जरूरत; 6 आपत्तियां बताईं
कांग्रेस सरकार की ओर से निशाने पर लिए जाने के बाद राजभवन ने भी सख्त रुख अपना लिया। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं होता। किसी भी तरह के दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए। जब सरकार के पास बहुमत है तो सत्र बुलाने की क्या जरूरत है?
सरकार ने 23 जुलाई को रात में बहुत कम समय में नोटिस के साथ सत्र बुलाने की मांग की। कानून के जानकारों से इसकी जांच करवाई गई तो 6 पॉइंट्स में कमियां पाई गईं। इसे लेकर राजभवन ने पूरा नोट जारी किया है।
सत्र बुलाने पर 6 आपत्तियां
- सत्र किस तारीख से बुलाना है, इसका ना कैबिनेट नोट में जिक्र था, ना ही कैबिनेट ने अनुमोदन किया।
- अल्प सूचना पर सत्र बुलाने का ना तो कोई औचित्य बताया, ना ही एजेंडा। सामान्य प्रक्रिया में सत्र बुलाने के लिए 21 दिन का नोटिस देना जरूरी होता है।
- सरकार को यह भी तय करने के निर्देश दिए हैं कि सभी विधायकों की स्वतंत्रता और उनकी स्वतंत्र आवाजाही भी तय की जाए।
- कुछ विधायकों की सदस्यता का मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में है। इस बारे में भी सरकार को नोटिस लेने के निर्देश दिए हैं। कोरोना को देखते हुए सत्र कैसे बुलाना है, इसकी भी डिटेल देने को कहा है।
- हर काम के लिए संवैधानिक मर्यादा और नियम-प्रावधानों के मुताबिक ही कार्यवाही हो।
- सरकार के पास बहुमत है तो विश्वास मत के लिए सत्र बुलाने का क्या मतलब है?
70 साल में पहली बार किसी राज्यपाल ने कैबिनेट की सलाह नहीं मानी
राजस्थान में कैबिनेट की सलाह के बावजूद राज्यपाल कलराज मिश्र विधानसभा का सत्र नहीं बुला रहे। संविधान के एक्सपर्ट पीडीटी आचारी के मुताबिक कैबिनेट की सिफारिश के बाद राज्यपाल को सत्र बुलाना ही होता है। संविधान के मुताबिक एक बार इनकार के बाद अगर कैबिनेट सत्र बुलाने की दोबारा मांग करती है तो, राज्यपाल को मानना पड़ता है। संविधान लागू होने के बाद 70 साल में पहली बार किसी राज्यपाल ने कैबिनेट की सलाह नहीं मानकर सत्र बुलाने से इनकार किया है।
सवाल-जवाब में जानिए, विधानसभा सत्र बुलाने के संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए बाध्य हैं?
संविधान के आर्टिकल-174 में प्रावधान है कि राज्य कैबिनेट की सिफारिश पर राज्यपाल सत्र बुलाते हैं। इसके लिए वे संवैधानिक तौर पर इनकार नहीं कर सकते।
राजस्थान में क्या विकल्प हैं?
राज्यपाल सिर्फ सुझाव दे सकते हैं कि कोरोना की वजह से सत्र दो-तीन हफ्ते बाद बुलाया जाए। केंद्रीय कैबिनेट संसद सत्र का फैसला ले और राष्ट्रपति इनकार कर दें तो महाभियोग लाया जा सकता है। राज्यपाल के मामले में ऐसी व्यवस्था नहीं है। राज्य सरकार राष्ट्रपति से मदद मांग सकती है।
क्या मामला कोर्ट में होने से राज्यपाल फैसला नहीं ले रहे?
विधानसभा सत्र बुलाने का सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में चल रहे केस से कोई संबंध नहीं। गहलोत बहुमत साबित करने के लिए सत्र बुलाना चाहते हैं।
राजस्थान में यह स्थिति कैसे खत्म हो सकती है?
अब मामला राजभवन, कोर्ट और विधानसभा तीनों जगह पहुंच चुका है। ऐसे में जिस तरह के हालात बने हैं उससे लग रहा है कि यह विवाद अब लंबा चल सकता है। दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की सरकार है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि बागी विधायक अयोग्यता के मामले को लेकर कोर्ट पहुंचे हैं।
5 साल पहले अरुणाचल में भी सत्र को लेकर हुआ था टकराव
संविधान के एक्सपर्ट फैजान मुस्तफा के मुताबिक 14 जनवरी 2016 को अरुणाचल प्रदेश के सीएम नबाम तुकी ने राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाने को कहा, लेकिन उन्होंने एक महीने पहले ही 16 दिसंबर 2015 को सत्र बुला लिया। इससे संवैधानिक संकट पैदा हो गया। तुकी ने विधानसभा भवन पर ताला लगा दिया। इसे विधानसभा स्पीकर नबाम रेबिया ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। राज्यपाल ने कहा कि उनके फैसले में कोर्ट दखल नहीं दे सकता। मामला 5 जजों की बेंच को सौंपा गया। 13 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की सिफारिश के खिलाफ समय से पहले सत्र बुलाने का फैसला गलत था।
राजभवन घेरने की बात कहकर सीएम खुद अपराधी बने: भाजपा
पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कह कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिस तरह की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल किया, वह कोई सीएम या गृहमंत्री नहीं कर सकता। खुद गृहमंत्री जिन पर कानून व्यवस्था को बनाए रखने का काम है वे राजभवन को घेरने की बात कहकर अपराधी घोषित हो जाते हैं।
हम अपनी मर्जी से दिल्ली में हैं, किसी ने बंधक नहीं बनाया: पायलट गुट
पायलट खेमे के 3 विधायकों- दौसा के मुरारीलाल मीणा, नीमकाथाना के सुरेश मोदी और चाकसू के वेदप्रकाश सोलंकी ने कहा है कि हमें किसी ने बंधक नहीं बना रखा। हम मर्जी से दिल्ली में बैठे हैं। तीनों विधायकों ने वीडियो जारी कर कहा कि गहलोत को अपने तरीकों में बदलाव करना चाहिए। वे कुर्सी से क्यों चिपके हैं? कांग्रेस की एकता के लिए कुर्सी छोड़ें।
विधायकों को अयोग्य ठहराने के मामलों में कोर्ट के 2 फैसले
1. उत्तरप्रदेश: 2003 में मायावती सरकार को गिराने के लिए सपा के मुलायम सिंह ने दावा पेश किया। बसपा के 12 विधायकों ने उन्हें समर्थन दिया था। स्पीकर ने बागियों को अलग दल के रूप में मान्यता दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने बागियों की सदस्यता रद्द कर दी।
2. हरियाणा: 2009 में हजकां के 5 विधायक कांग्रेस में शामिल हुए। उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग पर स्पीकर ने फैसला नहीं लिया। अक्टूबर 2014 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पांचों विधायकों को अयोग्य करार दिया था।