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क्या पायलट को प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद दोबारा मिलेगा? कांग्रेस ने 4 फॉर्मूले की रणनीति बनाई, लेकिन 5 सवाल अब भी मौजूद

सचिन पायलट के राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद राजस्थान में सरकार का संकट फिलहाल टल गया है। पायलट और उनके बागी विधायकों को आश्वासन दिया गया है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। राजस्थान संकट को सुलझाने के लिए 4 फॉर्मूले की रणनीति को अमल में लाया गया। 5 सवालों में समझें कि खतरा टला है, लेकिन खत्म नहीं हुआ। अविनाश पांडे को प्रदेश प्रभारी पद से हटाने की बात भी कही जा रही है।

4 फाॅर्मूले: जो राहुल व प्रियंका ने सियासी समीकरण सुलझाने को बनाए

1. गहलोत ही रहेंगे मुख्यमंत्री
राहुल गांधी से समझौते में यह तय हो गया है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही रहेंगे। हालांकि सारी बगावत इसी मुद्दे को लेकर हुई थी कि गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाए।

2. पायलट को क्या पद? तय नहीं
सचिन पायलट को क्या पद मिलेगा? अभी यह तय नहीं हुआ है। सूत्रों की मानें तो उन्हें वापस डिप्टी सीएम और प्रदेशाध्यक्ष का पद दिए जाने की संभावना बहुत कम है।

3. तीन सदस्यीय कमेटी गठित
प्रदेश में सरकार चलाने के लिए 3 सदस्यीय कमेटी गठित होगी। इसमें कौन सदस्य होंगे अभी उनके नाम तय नहीं। यह कमेटी बागी विधायकों की समस्याएं दूर करेगी।

4. सरकार-संगठन में आएंगे बागी
सचिन पायलट का समर्थन करने वाले 18 बागी कांग्रेस विधायकों को प्रदेश सरकार या संगठन में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। किसे क्या पद मिलेगा, अभी तय नहीं।

5 सवाल: जो बताते हैं कि खतरा सिर्फ टला है, पर खत्म नहीं हुआ

1. क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बदले जाएंगे?
नहीं। गहलोत ही सीएम रहेंगे। सीएम बदलने की मांग केंद्रीय नेतृत्व ने मंजूर नहीं की है।

2. क्या सचिन की वापसी पर पीसीसी अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद उन्हें फिर मिलेगा?
ये आसान नहीं। गहलोत खेमा सचिन की वापसी नहीं चाहता। दो बार कैबिनेट बैठक में भी यही मैसेज दिया कि अब सचिन स्वीकार नहीं। फिर भी केंद्रीय नेतृत्व के साथ समझौता हुआ है तो सम्मानजनक पद मिल सकता है।

3. क्या सरकार पर खतरा अभी बरकरार है?
सचिन की वापसी से अभी सरकार पर संकट टल गया है। गहलोत खेमे के 102 व सचिन गुट के 22 मिलाकर संख्या 124 हो गई है। लेकिन गहलोत खेमे के 100 विधायक 12 अगस्त तक जैसलमेर में ही रहेंगे। साफ है कि सरकार नहीं मान रही कि खतरा खत्म हो गया।

4. क्या तल्ख बयानों, आरोप-प्रत्यारोप से पड़ी दरारें राहुल-प्रियंका से मीटिंग से खत्म हो जाएंगी?
नहीं, दरारें रहेंगी। पिछले एक माह से दोनों गुटों में व्यक्तिगत हमले की भाषा से दूरियां बढ़ गई हैं। सचिन की वापसी गहलोत से प्रत्यक्ष मीटिंग के बिना हो रही है। ऐसे में फिलहाल नहीं लगता कि व्यक्तिगत दरारें भरी हैं। हालांकि, गहलोत कह चुके हैं कि सचिन केंद्रीय नेतृत्व की मंजूरी से लौटते हैं तो सबसे पहले मैं गले लगाऊंगा। पर अंदरखाने दूरियां यूं खत्म होती लग नहीं रहीं।

5. क्या हटाए गए मंत्रियों को फिर वो पद मिलेगा?
जिस तरह के समझौते की खबरें आ रही हैं, उससे लगता है कि मिल सकता है। इन्हें वही मंत्रालय मिलेंगे, यह कहना अभी मुश्किल है।

अंकगणित जो कहता है कि फिलहाल सरकार को कोई खतरा नहीं

पायलट गुट के जाने के बाद सरकार अपने पास 102 विधायकों के समर्थन का दावा कर रही थी। इनमें 2 बीटीपी और 2 सीपीएम के विधायक थे। पायलट के पास कांग्रेस के 19 और 3 निर्दलीय मिलाकर कुल 22 विधायक थे। पायलट की वापसी से अब सरकार के पास 124 विधायक हो गए, जो बहुमत से 23 ज्यादा हैं।

बयानबाजी भी चलती रही
राजस्थान के संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता। लेकिन बागियों की वापसी नहीं होनी चाहिए के स्टैंड पर हम अब भी कायम हैं।
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि राजस्थान में 31 दिन रामलीला के बाद भाई-बहन जागे। प्रदेश में जो हालात हैं, लगता नहीं कि कांग्रेस स्थिर, मजबूत और ईमानदार सरकार चला पाएगी। उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ बोले कि सियासी स्तर पर पूरी पटकथा कांग्रेसियों ने ही लिखी। इसमें नायक भी इन्हीं के थे और खलनायक भी। इस लड़ाई में उनका लालच सामने आ चुका है।

गहलोत से मिले भंवरलाल, कहा : 15-20 आदमियों से नेतृत्व परिवर्तन होता है क्या?

पायलट की आलाकमान से मुलाकात के बाद उनके गुट के विधायक भंवर लाल शर्मा भी जयपुर पहुंचे और मुख्यमंत्री गहलोत से मिले। इस मुलाकात में उन्होंने कहा कि आप सोचिए 15-20 आदमियों से नेतृत्व परिवर्तन होता है क्या? पार्टी तो बहुमत से चलती है और मैं बहुमत के साथ हूं।

निष्कर्ष: लोक हारा, तंत्र जीत गया
करीब एक महीने चली राजस्थान की सियासी जंग तो खत्म हो गई, लेकिन इसमें ‘लोकतंत्र’ बिखर गया, क्योंकि इस दौरान दिखे राजनीति के भ्रष्टाचार ने ‘तंत्र’ को तो जीत दिला दी, लेकिन ‘लोक’ यानी जिन लोगों से लोकतंत्र बना है, वे हार गए। इन 31 दिनों में जब कोरोना अपने चरम पर था और उन्हें अपने जनप्रतिनिधियों की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब उनमें से कुछ तो होटलों में बंद थे और कुछ उन्हें खरीदने के लिए बोलियां लगा रहे थे। उम्मीद है राजनीति का यह युद्ध विराम स्थाई होगा।

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