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जंगल की सड़क, उम्मीद की गाड़ी; राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने दी हरी झंडी

देहरादून। सड़क, किसी भी क्षेत्र के विकास की पहली पायदान होती है। इस लिहाज से देखें तो 20 साल सात माह की आयु पूरी कर चुके उत्तराखंड के दोनों मंडलों गढ़वाल व कुमाऊं को राज्य के भीतर सीधे आपस में जोड़ने वाली जंगल की सड़क ने अब जाकर उम्मीद जगाई है। बात हो रही है आजादी से पहले चली आ रही कंडी रोड की। कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ ही लैंसडौन वन प्रभाग से गुजरने वाले इस वन मार्ग के लालढांग-चिलरखाल हिस्से के निर्माण को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने हरी झंडी दे दी है। कोशिशें परवान चढ़ी तो जल्द ही उम्मीदों की यह सड़क आम यातायात के लिए खुल जाएगी। यानी, देहरादून व हरिद्वार से कोटद्वार आने जाने को उप्र से होकर गुजरने के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बनने से कंडी रोड के अगले हिस्से चिलरखाल-लालढांग-रामनगर के निर्माण को कदम उठाए जाने की उम्मीद भी जगी है।

कारीडोर निर्बाध रखने की है चुनौती

यह किसी से छिपा नहीं कि उत्तराखंड में बाघों का कुनबा खूब फल-फूल रहा है। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व की बाघ संरक्षण में मुख्य भूमिका है। बाघों ने शिखरों तक दस्तक दी है। 14 हजार फीट की ऊंचाई तक इनकी मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। इस परिदृश्य के बीच यह बात भी सामने आई है कि एक दौर में बाघों का मूवमेंट कार्बेट से नेपाल की सीमा तक था। विभाग के पुराने नक्शे इसकी तस्दीक करते हैं। इसे देखते हुए अब कार्बेट से दुधवा नेशनल पार्क तक बाघों के मूवमेंट पर सर्वे की तैयारी है। जाहिर है कि उस दौर में बाघों की आवाजाही के रास्ते (कारीडोर) निर्बाध रहे होंगे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। जगह-जगह मानवीय हस्तक्षेप ने दिक्कतें बढ़ाई हैं। ऐसा ही हाल हाथियों के परंपरागत गलियारों को लेकर है। 11 चिह्नीत गलियारों में से दो-तीन ही निर्बाध हैं। लिहाजा, इन्हें खोलने की चुनौती सबसे बड़ी है।

 

 

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