175 वर्ष पुराना है कुलैथ में जगन्नाथ जी का मंदिर, 12 काे निकलेगी रथ यात्रा

ग्वालियर। ग्वालियर से करीब 14 किमी दूर स्थित कुलैथ गांव में लगभग 175 साल पुराने मंदिर में विराजे हैं जग्न्नाथ जी। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 12 जुलाई को पुरी के साथ ही कुलैथ में भी रथ यात्रा निकलेगी।इसके बाद दो दिन यहां मेला लगेगा। जिसमें दर्शनार्थियों को जगन्नाथ जी को लगाए गए भोग का प्रसाद वितरित किया जाएगा। जैसे ही पुरी में जगन्नाथ यात्रा की घोषणा होगी वैसे ही ग्वालियर के कुलैथ में शाम के समय यात्रा शुरू हो जाएगी, और गाजे-बाजे के साथ भगवान जगन्नाथ मंदिर में विराजेगे।7 दिन पूर्व 4 जुलाई को मंदिर के पट बंद कर दिए जाएंगे। इस बीच भगवान जगन्नाथ जी का विशेष श्रृंगार किया जाएगा और 11 को मंदिर के पट खोले जाएंगे।12 जुलाई को मेला आयोजित किया जाएगा। 13 जुलाई को घट फूटेंगे।
पुरी की रथ यात्रा का कुलैथ की रथ यात्रा से संबंधः पुरी में जब रथ यात्रा को विराम दिया जाता है तब कुलैथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ जी की गाजे-बाजे के साथ रथ यात्रा प्रारंभ होती है। रथयात्रा को पूरे गांव की परिक्रमा के बाद गांव में ही बनाई गई जनकपुरी में विराम दिया जाता है। जनकपुरी में भगवान जगन्नाथ जी की आरती उतारी जाती है। दूसरे दिन शाम को भगवान जगन्नाथ जी को घट चढ़ाए जाते है और प्रसाद वितरित किया जाता है। रात्रि में भगवान जगन्नाथ जी मंदिर के लिए प्रस्थान किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देते हैंः कुलैथ में जगन्नाथ जी मंदिर के पुजारी किशोरी लाल के मुताबिक पुरी में जिस वक्त रथ यात्रा होती है तो साढ़े तीन घंटे के लिए रथ के पहिये थम जाते हैं और उस वक्त पुरी में घोषणा की जाती है कि जगन्नाथ जी पुरी से ग्वालियर कुलैथ में पहुंच गए हैं। इस दौरान कुलैथ में स्थित तीनों मूर्तियों की आकृतियां चमत्कारिक ढंग से बदल जाती हैं, और उनका बजन भी एकाएक बढ़ जाता है। जैसे ही मुख्य पुजारी किशोरीलाल जी को इस बात का आभास होता है कि जगन्नाथ जी कुलैथ में पधार चुके हैं। वैसे ही कुलैथ मंदिर की मूर्ति को रथ में बिठाकर रथ को खींचने की शुरूआत की जाती है। कुलैथ और पुरी में दोनों ही मंदिरों में चावल से भरे घट के अटका( मटका) चढ़ाए जाते हैं। श्रद्धालु बताते हैं कि, यह अटके अपने आप फट जाते हैं।
चावल के घट का चमत्कारः कुलैथ मंदिर के पुजारी किशोरीलाल श्रीवास्तव के अनुसार उनके बाबा सांवलेदास बाल अवस्था में जगन्नाथ मंदिर में दंडवत करने गए थे और वहां से वे जगन्नाथजी को ग्वालियर लेकर आए थे। सन 1844 में उन्हें सपना आया कि वे कुलैथ में मंदिर बनवाए, लेकिन वे मूर्ति पूजा के उपासक नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने मंदिर का निर्माण नहीं कराया और वे दो वर्ष तक भटकते रहे। इसके बाद उन्हें 1846 में पुनः सपने में आदेश मिला कि वे चमत्कार देखें। यदि वे चावल के घट भरकर घर में एक स्थान पर रखेंगे तो वह चार भागों में विभक्त हो जाएगा। उन्होंने वैसा ही किया और वह घट चार भागों में विभाजित हो गए। उन्हें फिर सपना आया कि गाँव के पास बहने वाली सांक नदी में चंदन की लकड़ी की दो मूर्तियाँ रखी हैं, उन्हें लाकर उनके हाथ पैर बनवाए। उन्होंने उन मूर्तियों को लाकर कुलैथ गांव में स्थापित कर दिया, तभी से यहां पर मंदिर में भगवान विराजमान हैं। 1846 में घर में ही मंदिर की स्थापना की गई। तब से आज तक वहां पूजा-अर्चना जारी है।